प्रश्नकर्ता: जिस तरह वेजिटेरियन अंडा नहीं खाया जा सकता, उसी तरह गाय का दूध भी नहीं पीया जा सकता।
दादाश्री: अंडा नहीं खाया जा सकता, पर गाय का दूध अच्छी तरह लिया जा सकता है। गाय के दूध का दही खाया जा सकता है, कुछ व्यक्तियों से मक्खन भी खाया जा सकता है। नहीं खाया जा सके ऐसा कुछ नहीं।
भगवान ने किसलिए मक्खन नहीं खाने का कहा था? वह अलग वस्तु है। वह भी कुछ ही व्यक्तियों के लिए ना कहा है। गाय के दूध की खीर बनाकर खाना चैन से। उसकी बासुंदी बनाओ न, तब भी हर्ज नहीं। किसी शास्त्र ने आपति उठाई हो तो मैं आपको कहूँगा कि आपत्ति नहीं उठाई है जाओ, वह शास्त्र गलत है। फिर भी ऐसा कहते हैं कि ज्यादा खाएगा तो बेचैनी होगी। वह आपको देखना है। बाकी लिमिट में खाना।
प्रश्नकर्ता: परन्तु दूध तो बछड़े के लिए कुदरत ने दिया है। हमारे लिए नहीं दिया।
दादाश्री: बात ही गलत है। वह तो जंगली गायें और जंगली भैंसें थीं न, उनका बछड़े पीए तो सारा दूध पी जाए। और अपने यहाँ तो अपने लोग गाय को खिलाकर पालते-पोषते हैं। इसलिए बछड़े को दूध पिलाना भी है और हम सबको दूध लेना भी है। और वह आदि-अनादि से ऐसा व्यवहार चालू है। और गाय को अधिक पोषण देते हैं न, तो गाय तो पंद्रह-पंद्रह लिटर दूध देती है। क्योंकि उसे जितना अच्छा खिलाते-पिलाते हैं, उतना उसका दूध नोर्मल चाहिए, उससे कई अधिक होता है। इस प्रकार से लेना चाहिए और बच्चे को भूखा मारना नहीं।
Book Name : अहिंसा (Page #58 Paragraph #3 to #7 & Page #59 Paragraph #1)
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