अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
पापों का प्रायश्चित
प्रश्नकर्ता: अपने किए हुए पाप भगवान के मंदिर में जाकर हर रविवार को कबूल कर लिए हों तो फिर पाप मा़फ हो जाएँगे न?
दादाश्री: इस तरह यदि पाप धुल जाते हों न तो कोई बीमार-वीमार होता ही नहीं न? फिर तो कोई दुःख होता ही नहीं न? परन्तु यह तो अपार दुःख पड़ता है। मा़फी माँगने का अर्थ क्या है कि आप मा़फी माँगो तो आपके पाप का मूल जल जाता है। इसलिए वह फिर से फूटता नहीं, परन्तु उसका फल तो भुगतना ही पड़ता है न?
प्रश्नकर्ता: कोई-कोई जड़ तो फिर से फूट निकलती हैं।
दादाश्री: ठीक से जला नहीं हो, तो वापिस फूटता रहता है। वर्ना, जड़ भले कितनी ही जल गई हो, फिर भी फल तो भुगतने ही पड़ते हैं। भगवान को भी भुगतने पड़े! कृष्ण भगवान को भी यहाँ तीर लगा था! उसमें किसीका चलता ही नहीं। मुझे भी भोगना पड़ता है!
हर एक धर्म में मा़फी होती है। क्रिश्चियन, मुस्लिम, हिन्दू सभी में होती है, परन्तु अलग-अलग तरह से होती है।
प्रश्नकर्ता: भगवान ने जो चार प्रकार के सुख दिए हैं, वे चारों ही प्रकार के सुख किसी एक व्यक्ति को आते ही नहीं न?
दादाश्री: ये सुख हैं ही नहीं। सभी कल्पनाएँ हैं। यह सच्चा सुख है ही नहीं।
प्रश्नकर्ता: कौन-सा सच्चा और कौन-सा झूठा सुख, वह अनुभव हुए बिना किस तरह समझ में आएगा?
दादाश्री: खुद को अनुभव होता ही है। बाहर की किसी भी वस्तु की मदद के बिना ऐसा सुख उत्पन्न होता है कि कभी देखा ही नहीं हो!
प्रश्नकर्ता: वह हमेशा रहना चाहिए।
दादाश्री: वह सुख फिर जाता ही नहीं। इन सभी को (ज्ञान लेने के बाद) वैसा सुख उत्पन्न हुआ है, फिर वह गया ही नहीं। फिर उस सुख के ऊपर आप पत्थर डालते रहो, तो आपको लगेंगे ज़रूर, लेकिन हमारी आज्ञा में रहो तो कुछ होगा नहीं। हमारी आज्ञा बिल्कुल आसान है!
1) क्या अब आप पूरे दिन में एक भी कर्म बाँधते हो? आज कौन-कौन से कर्म बाँधे? जो भी बाँधोगे वह आपको भुगतना पड़ेगा। खुद की ज़िम्मेदारी है। इसमें भगवान की किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं है।
2) भगवान के वहाँ सही-गलत कुछ भी नहीं होता। भगवान तो इतना ही कहते हैं कि किसी को दुःख हो जाए तो हमें प्रतिक्रमण करना है। हमारे से दुःख नहीं पहुँचना चाहिए।
3) भगवान ऐसा कहते हैं कि ‘‘तू जो जो कर रहा है, उसकी प्रतिक्रिया तुझे दंड देती रहेगी। तुझे दंड देने के लिए मुझे नहीं आना पड़ता।’’
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