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मूर्तिपूजा का महत्व क्या है?

हमें भगवान की मूर्ति की पूजा क्यों करनी चाहिए?

मूर्तिपूजा हमारे जीवन में बहुत महत्त्व का आधार है! मूर्तिपूजा के पीछे कई कारण और जबरदस्त फायदे हैं। उनमें से कुछ निचे दर्शाए गए हैं:

  1. पूरा दिन, एक व्यक्ति अधिक पैसा बनाने, अधिक गहने खरीदने, एक बड़ा घर खरीदने, एक अच्छे कार, आदि के बारे में सोचने में व्यस्त है, हालांकि, जब वह भगवान की मूर्ति देखता है, तो वह कुछ बेहतर सोचता है। उसका मन अपने जीवन और भौतिक वस्तुओं के बारे में सोचना बंद कर देता है। वह भगवान में स्थिर होता है, और इस वजह से वह शांति और सुख का अनुभव करता है। वह व्यक्ति फिर धर्मध्यान की और मुड़ता है और इससे उनमे आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने की शक्ति प्राप्त होती है।
  2. जब कोई जीवन में चुनौतियों का सामना करता है, तो परमेश्वर में उसका दृढ़ और अटूट विश्वास उन्हें स्थिति से निपटने की ताकत देता है। वह उसके रास्ते में आये किसी भी प्रकार के संकट का सामना कर के अकेले ही बिना किसी को नुकसान पहुंचाए आगे निकल जाता है।
  3. जब कोई सच्चे दिल से और श्रद्धा के साथ भगवान की पूजा करता है, तब वह पुण्य कर्म को बांधता है। इन बीजों का परिणाम अगले जीवन में एक अच्छी पत्नी, एक अच्छा जीवन, अच्छे माता-पिता, अच्छे बच्चे, अच्छे पैसे, अच्छी किस्मत, एक अच्छा घर, एक अच्छा धर्म और एक अच्छा वातावरण के रूप में प्राप्त होता है। यह सभी आसानी से बिना किसी पुरुषार्थ से ही प्राप्त हो जाता हैं।
  4. जब कोई ऐसे अच्छे वातावरण से घिरा होता है, तो उसके विचार भी परिपक्व होते हैं, वह अपने आध्यात्मिक विकास में अधिक ऊँचा उठता है और अधिक पुण्य कर्मों को बांधता है जिससे बेहतर परिणाम मिलते हैं। जब पुण्यानुबंधी पुण्य कर्म को उनके कर्म खाते में जमा हो जाता है, तो वह व्यक्ति ज्ञानी पुरुष से मिलने में सक्षम होता है। और परिणाम स्वरुप उसके लिए परम मोक्ष के द्वार खुलते है।
  5. जब तक ईश्वर के निराकार के स्वरूप की पहचान नहीं हो जाती, तब तक मूर्तिपूजा जीवन में एक बड़ा और आवश्यक आधार है। मूर्ति की मदद से, हम भगवान के गुणों और सच्चे स्वरुप को याद करते है। और जब वह उस दशा में पहुँच जाता है जहाँ वह निराकार ईश्वर का अनुभव करता है, तो यह आधार स्वतः ही निराधार हो जाएगा।

हम भगवान की मूर्तियों को क्यों सजाते हैं और उन्हें आकर्षक बनाते हैं?

मनुष्य का मन ऐसा है कि वह आकर्षक चीजों को देखना पसंद करता है और यह वहाँ स्थिर हो जाता है। इसलिए जब कोई भगवान की मूर्ति को अच्छे वस्त्र, आभूषणों और मालाओं से सजा हुआ देखते है, तो उसका मन वहाँ स्थिर हो जाता है और वह सोचता है, 'वाह, प्रभु सुंदर दीखते है' और इस प्रकार वह भगवान के लिए भक्ति उत्पन्न होता है। इसी भक्ति का परिणाम स्वरुप वह पुण्य कर्म को बांधता हैं।

यही वजह से भगवान की मूर्तियों को खूबसूरती से बनाया जाता है। भगवान की आकर्षक मूर्तियों को देखकर लोगोंमे उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो इसीलिए उन्हें हर रोज़ आकर्षक वस्त्रो से सुशोभित किया जाता हैं। मूर्तिपूजा (आराधना) प्रारंभिक चरणों में बहुत ही सहायक है। बाद में, जैसे हमारी आराधना बढ़ती जाती है, वैसे हमारी श्रद्धा कायमी बनी रहती चाहे फिर कितने ही बाह्य संजोग आए।

'मूर्ति, पत्थर का एक टुकड़ा है, एक पत्थर की पूजा करने से क्या लाभ हो सकते है?'

हम यह नहीं जानते है कि जब भगवान जीवित थे तो वह कैसे दिखते थे। भगवान की मूर्ति को मूर्तिकार की कल्पना से बनाया गया है, इसलिए अगर हम इस मूर्ति की पूजा करते हैं, तो इससे हमें क्या लाभ हो सकते है?

यहाँ तक कि पत्थर भी उसकी श्रद्धा और भक्ति का फल देता है। यह हमारे भीतर की श्रद्धा है जो परिणाम देती है। हमारी श्रद्धा एसी होनी चाहिए कि भले ही मूर्ति के माध्यम से भजना करे पर वह जैसे प्रत्यक्ष भगवान की प्रार्थना कर रहे हैं वैसा फल हमे देती है। ईश्वर तक हमारी सीधी पहुँच नहीं है, इसलिए हम मूर्ति के माध्यम से उनके साथ जुड़ सकते हैं। जब हमे भगवान की प्राप्ति हो जाती है, तब हमें किसी भी प्रकार के माध्यम की आवश्यकता नहीं रहती है।

तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ को माननेवाले महाभारत के पांच पांडवों में से एक भीम की एक दिलचस्प कहानी है। उनकी परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि वह न तो भगवान की पूजा कर सकते था और न ही उनके पास भगवान की मूर्ति थी, के जिसका उपयोग वह पूजा करने के लिए कर सके। इसलिए उन्होंने एक मटका लिया, उस पर नेमिनाथाय नमः ’(मैं भगवान नेमिनाथ को नमस्कार करता हूँ) लिखा और मटके को भगवान मानते हुए, हर दिन अत्यंत भक्ति के साथ पूजा करना शुरू कर दिया। इसके परिणाम स्वरुप उन्हें बाद में भगवान नेमिनाथ के प्रत्यक्ष दर्शन प्राप्त हुए।

तो, अंततः यह हमारी श्रद्धा है जो मायने रखती है; और वही परिणाम देती है!

यदि ईश्वर निराकार है, तो हमें मूर्ति की आवश्यकता क्यों है?

मूर्तिपूजा भारत के सबसे बड़े विज्ञानों में से एक है।

किस मूर्ति की पूजा की जा रही है? जिनके भीतर भगवान प्रकट हुए है, उनकी मूर्ति की, जिन्हें अपने सच्चे स्वरुप की प्राप्ति की है, संपूर्ण प्रकाशक है। इसलिए यदि आप मूर्ति को नमन करते हैं, तो यह प्रत्यक्ष भगवान तक पहुंचता है। इन मूर्तियों की पूजा करने से वीतरागता के बीज बोए जाते हैं।

मनुष्य जीवन का ध्येय मोक्ष प्राप्त करना है, जहाँ कायम ज्ञाता-द्रष्टा की अवस्था है, अकर्तापद। इस अवस्था तक पहुँचने के लिए हमें भगवान की मूर्ति की पूजा करनी होगी।

हमें किस मूर्ति की पूजा करनी चाहिए?

इस दुनिया में कई तरह के देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। हर मूर्ति की पूजा अपने स्थान पर सही है। प्रत्येक के व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास के आधार पर, हर कोई एक विशेष देवता की पूजा करने का विकल्प चुनता है, चाहे वह देवी या भगवान गणेश, भगवान हनुमान, भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान महावीर, भगवान शिव, जीसस या अल्लाह, आदि हो, तदनुसार आध्यात्मिक विकास के पंथ में उनकी प्रगति होती रहती है। आध्यात्मिक विकास के अंतिम चरण में, वह केवलज्ञानी प्रभु (वीतराग भगवान) की पूजा करता है जिसका अंतिम परिणाम मोक्ष है।

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