अंतिम विज्ञान, प्रश्नोत्तरी के रूप में
सारी गीता प्रश्नोत्तरी के रूप में है। अर्जुन प्रश्न करता है और कृष्ण भगवान उत्तर देते हैं। कृष्ण भगवान ने गीता में प्रवचन नहीं किया है। पूछे गए प्रश्नों के उत्तर ही दिए हैं। वे प्रवचन करते ही नहीं न! अंतिम विज्ञान व्याख्यान के रूप में नहीं होता, प्रश्नोत्तरी के रूप में होता है। अंत में अर्जुन को जो जो संदेह हुआ, शंकाएँ हुई उनके जवाब दिए हैं, बस। उसका नाम धर्म। गीता परिप्रश्नेन हुई है।
परिप्रश्नेन यानी अर्जुन प्रश्न पूछे और कृष्ण भगवान उनके उत्तर दें। यही पूरी गीता का सार है |
मतलब कृष्ण भगवान ने क्या कहा? परिप्रश्न यानी प्रश्न पूछकर आखिरी स्टेशन पर आना। बाकी बिना प्रश्न पूछे आखिरी स्टेशन पर नहीं आ सकते।
महावीर भगवान ने भी प्रश्नोत्तरी के रूप में ही कहा है। भगवान महावीर और गौतम स्वामी उन्होंने भी प्रश्नोत्तरी के रूप में ही सत्संग किया है। गौतम स्वामी और ग्यारह गणधर पूछा करते हैं और भगवान महावीर उनके उत्तर देते हैं। गणधरों ने जो पूछा था, उनके उत्तर के रूप में ही महावीर भगवान का पूरा शास्त्र लिखा गया है।
प्रश्नकर्ता: ये सभी आपके पास रोज़ाना आते हैं तब क्या वे सभी सारी ज़िंदगी आते ही रहेंगे?
दादाश्री: नहीं, नहीं। यह ज्ञान लेने के बाद सारे प्रश्नों का अंत आ जाता है। फिर प्रश्न ही नहीं उठता न! सारे प्रश्नों के आप ज्ञाता हो जाएँ फिर पूछने को ही कहाँ रहा? और यहाँ भी यह सब प्रश्नोत्तरी के रूप में ही है। हमने यह ज्ञान कैसा दिया है? प्रश्न पैदा ही नहीं होते!
दादावाणी दिसंबर 2008 (Page #16 - Paragraph #10, Page #17 - Paragraph #1 to #4)
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