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लोग मुझे हरबार जज करते हैं। मैं कहीं फिट नहीं बैठता। मेरा स्थान कहाँ है?

यह महसूस करना कि लोग आपके बारे में अभिप्राय देते हैं, तो यह परिस्थिति आपके लिए द्विधाभरी, निराशाजनक और दर्दनाक हो सकती है। यह आपको असुरक्षित और इन्फीरियर महसूस करवाती है। अनिवार्य रूप से, हम सभी ने अपने जीवन में कभी न कभी इसका अनुभव किया है, लेकिन कुछ लोगों के लिए, जजमेंट महसूस करने का प्रभाव बेहद निराशाजनक हो सकता है।

हम क्या कर सकते हैं?

इस बात को मान लें कि इस दुनिया में आप जिस किसी से भी मिलेंगे, उसका अपना अभिप्राय होगा। यह आपके जीवन को आसान बना देगा। अच्छी बात यह है कि आपको दूसरों के अभिप्रायों को पसंद करने या उनसे सहमत होने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन आपको उनका सम्मान करना होगा। यहाँ तक कि अगर आप अपने घर में भी देखेंगे, तो आप अनुभव करेंगे कि हर किसी का व्यू पोइन्ट अलग रहेगा। उदाहरण के लिए, जब यह तय करने की बात आती है कि रात के खाने में क्या खाएँ तब परिवार का प्रत्येक सदस्य अलग-अलग व्यंजन को पसंद करता है और सभी को खुश करना असंभव होगा, इसलिए ऐसी परिस्थिति में समझौता करना पड़ता है।

इसी तरह जीवन में आप कभी भी सबको खुश नहीं कर पाएंगे। आप जो भी निर्णय लेंगे या जो भी आप करेंगे, आपको जज किया जाएगा और लोग आपके बारे में अभिप्राय बनाएँगे। बस मज़बूत रहें और सभी को खुश करने की कोशिश करने के बजाय प्रयास करें कि उन्हें दुःख न पहुंचे।

हर किसी का अपना व्यू पोइन्ट होता है। हम जिसे सही समझते हैं वह किसी और के लिए सही नहीं भी हो सकता। उदाहरण के तौर पर, हम सोचते हैं कि रात में देर से खाना बुरा है लेकिन कुछ लोगों के पास रात को देर से खाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प ही नहीं होता क्योंकि वे देर तक काम करते हैं। इसमें कोई सही या गलत नहीं है, बस अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। यही कारण है कि एक ही स्थिति को लोग अलग-अलग तरह से समझते हैं।

धारणाएं और अभिप्राय कौन बनाता है?

अच्छे-बुरे में भेद करना बुद्धि का काम है। सम्यक् बुद्धि हमें अच्छी चीज़ें दिखाएगी और विपरीत बुद्धि हमें बुरी चीज़ें दिखाएगी। विपरीत बुद्धि की वजह से, हम अत्यधिक दुःख भुगतते हैं, जबकि विपरीत बुद्धि से हम शांति का अनुभव करेंगे। चोर की दृष्टि से चोरी करना कोई बुरी बात नहीं है। इसलिए, जब चोर को जज (आंका) किया जाता है, तो उसे दुःख महसूस होगा, क्योंकि उसकी दृष्टि अलग है।

इसके अलावा, दूसरों के अभिप्रायों या धारणाओं से बचने के लिए, हमें पोज़िटिव(सकारात्मक) दृष्टि रखनी चाहिए और उनके साथ एडजस्टमेंट करते रहना चाहिए। हालांकि, यदि आप किसी ऐसी चीज़ में दृढ़ता से विश्वास करते हैं जो दूसरों के विचार के अनुरूप नहीं है, तो वह करना जारी रखें जो आपको सही लगता है, लेकिन कोशिश करें कि इससे किसी को दुःख न पहुँचे।

'मैं कहीं फिट नहीं बैठता। मेरा स्थान कहाँ है?'

इस दुनिया में अपना स्थान बनाने के लिए हमें अपना ध्येय निर्धारित करना होगा। ध्येय के बिना जीवन अस्पष्ट और द्विधाभरा होगा। हमारे पास कोई दिशा नहीं होगी और हम लक्ष्यहीन होकर घूमते रहेंगे।

मानव जीवन प्राप्त करने के बाद, हमें दो चीज़ों को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए:

  • अपना जीवन इस प्रकार से जिएँ कि हम अपने मन, वाणी और वर्तन से किसी भी जीव को दु:ख न दें।
  • जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने का प्रयास करें। मानव जीवन का सार कर्म के बंधन से शाश्वत मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करना है। आत्मज्ञान के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करके पूर्ण स्वरूप बनना है।

परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी ख़राब क्यों न हों, इस लक्ष्य को प्राप्त करने से हम स्वयं के निरंतर आनंद का अनुभव कर पाएंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि हर कोई इसी दुनिया का है। चुनौती यह है कि हम अपने जीवनकाल में क्या-क्या चुनाव करते हैं।

“जीवन के ध्येय दो प्रकार से नक्की होते हैं। यदि हमें ज्ञानीपुरुष नहीं मिलें तो हमें संसार में इस प्रकार जीना चाहिए कि हम किसी के लिए दुःखदायी नहीं बनें। हमसे किसी को किंचित्मात्र भी दुःख नहीं हो, यही सबसे बड़ा ध्येय होना चाहिए और बाकी तो प्रत्यक्ष ‘ज्ञानीपुरुष’ मिल जाएँ तो उनके सत्संग में ही रहें, उससे तो आपके हरएक काम हो जाएँगे, सभी पज़ल सॉल्व हो जाएँगे।“ - दादा भगवान

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