किसी पर दृष्टि पड़ते ही यदि आकर्षण होता है, तो आकर्षण की इस चिंगारी को आगे सुलगने से पहले ही रोकना चाहिए।
परम पूज्य दादा भगवान की अद्भुत चाबी ‘थ्री विज़न’ का उपयोग करके। यह चाबी ब्रह्मचर्य का पालन करने में मदद करती है और किसी के प्रति होने वाले विषय विकारी आकर्षण को तुरंत ही खत्म कर देती है।
पहले विज़न में, जिस व्यक्ति के प्रति आकर्षण हुआ है वह नेकेड दिखता है।
दूसरे विज़न में, वह बगैर चमड़ी का दिखता है।
तीसरे विज़न में, पेट चीरा हुआ दिखता है और उसमें आँते, मल, मांस वगैरह सब दिखता है।
इस शरीर में कपड़े के अलावा और बचा ही क्या? चमड़ी और मांस! क्या फिर भी आप को विनाशी शरीर के प्रति आकर्षण होगा?
इस पूरे शरीर में एक ही वस्तु शुद्ध है, अविनाशी है और वह है-आत्मा!
थ्री विज़न के प्रयोग द्वारा, जिस व्यक्ति के प्रति विकारी आकर्षण होता है वह समाप्त हो जाता है और ब्रह्मचर्य में रह सकते है।
परम पूज्य दादाश्री हमें इस बात पर और अधिक जानकारी देते हैं:
दादाश्री : कोई लड़का अच्छे कपड़े-वपड़े पहनकर, नेकटाई-वेकटाई पहनकर बाहर जा रहा हो और उसे काटे तो क्या निकलेगा? तू बेवजह क्यों नेकटाई पहनता है? मोह वाले लोगों को भान नहीं है इसलिए सुंदरता देखकर उलझ जाते हैं बेचारे! जबकि मुझे तो सबकुछ खुला आरपार दिखता है। ये सभी लोग कपड़े उतारकर घूमें तो तुझे खराब नहीं लगेगा?
प्रश्नकर्ता : बहुत खराब लगेगा।
दादाश्री : यानी कि इन कपड़ों की वजह से अच्छे दिखते हैं। क्या बिना कपड़े के अच्छे दिखते हैं? बिना कपड़े तो ये गाय, भैंस, बकरी, कुत्ते, सभी अच्छे दिखते हैं, लेकिन मनुष्य अच्छे नहीं दिखते। अब ऐसा ज्ञान कोई देता ही नहीं न? ऐसी सविस्तार समझ ही कोई नहीं देता न। फिर मोह ही उत्पन्न होगा न! दादाजी तो कहते थे कि यह सब तो ऐसी गंदगी है, फिर मोह कैसे उत्पन्न होगा? कोई स्त्री या पुरुष भले ही, कैसे भी बाल बनाकर घूम रहे हों, तो हमें क्या उसमें? चीरें तब भीतर से क्या निकलेगा उसमें से? जैसे यह लौकी छीलते हैं, वैसे ही जब उसे छीलेंगे तब क्या होगा? भीतर का कचरा दिखेगा न? किसी को यहाँ पीप पड़ गया हो और वह तुझे कहे कि ‘लो, यह धो दो।’ तो वह तुझे अच्छा लगेगा? उसे तो छूना भी अच्छा नहीं लगेगा न? और कोई मित्र हो और उसे पीप नहीं पड़ा हो तो तुझे हाथ लगाना अच्छा लगेगा न? लेकिन अंदर तो ऐसा कचरा माल ही भरा है। उसे तो हाथ भी नहीं लगा सकते। मोह करने जैसा जगत् है ही कहाँ? लेकिन ऐसा सोचा ही नहीं न! किसी ने बताया ही नहीं! माँ-बाप भी शर्म के मारे नहीं बताते।
ये तो कपड़ों से ढककर घूमते हैं इसलिए सुंदर दिखते हैं, बाकी अंदर तो ऐसा ही है। यह तो, मांस को रेशमी चादर से बाँध लिया है, इसलिए मोह होता है। सिर्फ मांस होता तो भी हर्ज नहीं था, लेकिन अगर अंदर आंते वगैरह सब काटें तो क्या निकलता है अंदर से? इस पर सोचा ही नहीं है। यदि इस पर सोचा होता तब तो वहाँ पर फिर से दृष्टि जाती ही नहीं।
यह जो चादर है, इसकी वजह से यह सब सुंदर लगता है। चादर खिसक जाए तो कैसा लगेगा? किसी को यहाँ पर जल गया हो और पीप निकल रहा हो, तो क्या वहाँ पर हाथ फेरना अच्छा लगेगा?
वास्तव में, यह देह विनाशी है, हमारी दृष्टि तो भीतर बेठे हुए अविनाशी शुद्धात्मा पर ही होनी चाहिए। यदि भीतर शुद्धात्मा दिखाई दे, तो शरीर में आसक्ति का कोई कारण नहीं है।
परम पूज्य दादाश्री ने हमें विषय विकारी आकर्षण में से बाहर निकलने के लिए थ्री विज़न के प्रयोग का रास्ता बताया है और जो व्यक्ति सामने से जा रहा हो उसके भीतर शुद्धात्मा देखने को कहा है। शुद्धात्मा देख लिया तो फिर दूसरा कुछ देखना नहीं रहता है। दूसरा तो सब जंग लगा हुआ कहलाता है। किसी पर लाल जंग, किसी पर पीला, तो किसी पर हरा जंग होता है, पर हमें तो सिर्फ लोखंड (भीतर वाले शुद्धात्मा) ही देखना है न ? और जंग दिखे उसके सामने उपाय दे दिया हैः थ्री विज़न।
यों सुंदर कपड़े पहने हों, दो हज़ार की साड़ी पहनी हो फिर भी देखते ही तुरंत जागृति खड़ी हो जाती थी, वह नेकेड दिखती थी। फिर दूसरी जागृति उत्पन्न होती थी, तो बिना चमड़ी की दिखती और तीसरी जागृति में फिर पेट काट दिया हो तो अंदर आंते दिखती थी, आंतों में क्या-क्या परिवर्तन होता है, वह सबकुछ दिखता था। अंदर खून की नसें दिखतीं, संडास दिखती, इस तरह सारी गंदगी दिखती। फिर विषय खड़ा होता ही नहीं था न! इनमें से सिर्फ आत्मा ही शुद्ध वस्तु है, वहाँ जाकर हमारी दृष्टि रुकती है, फिर मोह कैसे होगा? लोगों को इस तरह आरपार दिखता नहीं है न? लोगों के पास ऐसी दृष्टि नहीं है न? ऐसी जागृति लाएँ भी कहाँ से? ऐसा दिखना, वह तो बहुत बड़ी जागृति कहलाती है। एट-ए-टाइम ये तीनों प्रकार की जागृति रहती हैं।
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