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वैवाहिक संबंधों में विश्वसनीयता का क्या स्थान है? संबंधों में विश्वसनीयता कैसे बनाए रखें

कलियुग में एक गृहस्थ में सिर्फ कितना विकार होना चाहिए कि उसकी स्त्री तक का ही। गृहस्थधर्म है इसलिए उसकी पत्नी तक ही विकार सीमित हो, तो भगवान ने उसे एक्सेप्ट किया है। एक पत्नीव्रत के लिए भगवान ने छूट दी है। अन्य कहीं दृष्टि भी नहीं बिगड़े, बाहर जाए या कहीं भी जाए लेकिन दृष्टि नहीं बिगड़े, विचार भी नहीं आए, यदि विचार आ जाए तो क्षमा माँग ले, ऐसा एक पत्नीव्रत हो तो भगवान को एतराज़ नहीं है! वे तो क्या कहते हैं कि, ‘इस काल में एक पत्नी को हम ब्रह्मचर्य कहेंगे और जो लोकनिंद्य नहीं है उसे हम लोकपूज्य कहेंगे।’

उसमें भी जिससे शादी की हो, वहाँ तक कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि ‘बाउन्ड्री’ है। ‘बाउन्ड्री’ चूकने में आपत्ति है। क्योंकि आप संसारी हो, अतः ‘बाउन्ड्री’ होनी चाहिए। ‘बाउन्ड्री’ से बाहर मन भी नहीं चूकना चाहिए, वाणी भी नहीं चूकनी चाहिए, विचार भी नहीं चूकना चाहिए। एक पत्नीव्रत के सर्कल में से विचार बाहर नहीं जाना चाहिए और जाए तो विचार को वापस बुला लेना। और प्रतिक्रमण करके यह निश्चय करना चाहिए की फिर ऐसा कभी नहीं होगा। यह इस काल में स्त्री होने के बाद भी ब्रह्मचर्य कहलाता है।

परम पूज्य दादाश्री कहते है कि, “जिसमें सभी जाते हैं, वह संडास कहलाती है। जहाँ पर कई लोग जाते हैं न, वह संडास! जब तक एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत रहे, तब तक वह बहुत उच्च चीज़ कहलाती है। तब तक चारित्र कहलाता है, नहीं तो फिर संडास कहलाता है।”

आज से तीन हजार साल पहले हिन्दुस्तान में सौ में से नब्बे लोग एक पत्नीव्रत का पालन करते थे, शादीशुदा ब्रह्मचारी! कितने अच्छे लोग थे। जब कि आज तो शायद ही हज़ारों में एक होगा!

परम पूज्य दादाश्री की दृष्टि से संबंधों में विश्वसनीयता के बारे में जानें:

प्रश्नकर्ता : एक पत्नीव्रत को हक़ का विषय कहते हैं, वह भी जब तक नोर्मेलिटी में होगा तभी तक हक़ का माना जाएगा। और अबव नॉर्मल हो जाएगा तो!

दादाश्री : तब भी हक़ का ही कहा जाएगा, लेकिन वह अणहक्क जितना खराब नहीं कहलाएगा न?

प्रश्नकर्ता : अब कोई दूसरी स्त्री राज़ी-खुशी हमें खींचे और दोनों की राज़ी-खुशी का सौदा हो तो उसे हक़ का विषय कहा जाएगा या नहीं?

दादाश्री : नहीं, उसीके लिए मना किया गया है न! और इस राज़ी-खुशी से ही सब बिगड़ा है न! इस राज़ी-खुशी से आगे बढ़ा, तो वह भयंकर अधोगति में जाने की निशानी है! फिर वह अधोगति में ही जाएगा। बाकी, अपने घर में नोर्मेलिटी रखे तो वह देवता कहा जाएगा, मनुष्य में भी देवता कहा जाएगा। और अपने घर में अबव नॉर्मल हुआ तो वह सब पशुता कहलाएगी। लेकिन वह अपना गँवाता है, और कुछ नहीं। खुद की दुकान पूरी खाली हो जाएगी, लेकिन वह अणहक्क जैसा जोखिम नहीं कहलाएगा। इन हक़वालों को तो फिर से मनुष्यपन भी मिलेगा और वह मोक्ष के नज़दीक भी जाएगा। एक पत्नीव्रत आख़िरी लिमिट है, अन्य सभी से उत्तम।

संबंधों के प्रति वफादार रहें, प्योर रहें

दादाश्री : इस काल में एक पत्नीव्रत को हम ब्रह्मचर्य कहते हैं और तीर्थंकर भगवान के समय में ब्रह्मचर्य का जो फल प्राप्त होता था, वही फल उन्हें प्राप्त होगा, उसकी हम गारन्टी देते हैं।

प्रश्नकर्ता : एक पत्नीव्रत जो कहा, वह सूक्ष्म में या मात्र स्थूल ही? मन तो जाए ऐसा है न?

दादाश्री : सूक्ष्म से भी होना चाहिए। कभी मन जाए तो मन से अलग रहना चाहिए और उसके प्रतिक्रमण करते रहना चाहिए। मोक्ष में जाने की लिमिट (मर्यादा) क्या? एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत। एक पत्नीव्रत या एक पतिव्रत का कानून हो, वह लिमिट कहलाता है।

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