विषय के स्वरूप का विश्लेषण और अध्ययन करके। जिसमें आकर्षण करने वाली चीज़े (जैसे कि व्यक्ति, विचार, शरीर के अंग आदि) की कीमत संपूर्ण रूप से डिवल्यु करके जीरो (शून्य) करना है। विषय–विकार में से मिलने वाला सुख मात्र भ्रम है, सचमुच में सुख नहीं है और मात्र क्षणिक सुख है। ऐसा सब प्रकार से सोच कर पृथ्थकरण करना है। जब आप किसी भी प्रकार के विषय में लिप्त होते हो, तब आप यह भूल जाते हो कि मनुष्य के शरीर में कितनी गंदगी भरी पड़ी है। उदाहरण के तौर पर आप भूल जाते हो कि शरीर के हर छिद्र में से गंदगी निकलती रहती है, जिसे देखने में और सूंघने में बहुत ही घिन आती है। अगर मल, पसीने और अन्य स्राव से इतनी दुर्गंध आती है तो विचार कीजिए कि हमारे शरीर के अंदर कैसा होगा? साथ ही यदि शारीरिक संपर्क और स्पर्श में सच्चा सुख और आनंद होता, तो जब किसी की त्वचा पर घाव या खाज हो तब भी उसे स्पर्श करना अच्छा लगना चाहिए, पर ऐसा नहीं है। इसके अलावा, दुनिया में किसी भी प्रकार की परवशता दु:ख का कारण होता है, तो पराश्रीत होना सुख का कारण कैसे हो सकता है?
विषय विकारी आकर्षण का विश्लेषण करने और जैसा है वैसा देखने के लिए यहाँ कुछ तरीके बताए गए हैं, जिससे सुख की मान्यता को तोड़ा जा सकता हैः
इंसान को राँग बिलिफ है कि विषय में सुख है। अब अगर विषय से भी ऊँचा सुख मिल जाए तो विषय में सुख नहीं लगेगा। विषय में सुख नहीं, पर इंसान को व्यवहार में चारा ही नहीं। बाकी जान–बुझकर (इस देहरूपी) गटर का ढक्कन कौन खोलेगा? अगर विषय में सुख होता तो चक्रवर्ती इतनी सारी रानियाँ होने के बावजूद सुख की खोज में नहीं निकलते!
यह अपनी राँग बिलीफ के कारण है। यह मात्र हमारी बिलीफ ही है। हमारी बिलीफ के अलावा दूसरा कुछ नहीं है। बिलीफ को छोड़ दो तो फिर कुछ भी नहीं।
विषय और विषय विकारी आकर्षण को बंद करने के लिए, खुद को सोचना चाहिए की विषय कैसी गंदगी है।
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