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इन दिनों प्रेम क्यों नाकाम रहा है?

प्रश्नकर्ता : ये लड़के-लड़कियाँ प्रेम करते हैं अभी के जमाने में,वे मोह से करते हैं इसलिए फेल होते हैं?

दादाश्री : सिर्फ मोह! ऊपर चेहरा सुंदर दिखता है, इसलिए प्रेम दिखता है, पर वह प्रेम कहलाता नहीं न! अभी यहाँ पर एक फुँसी हो जाए न तो पास में जाए नहीं फिर। यह तो आम अंदर से चखकर देखें न तब पता चले। मुँह बिगड़ जाए तो बिगड़ जाए, पर महीने तक खाने का अच्छा नहीं लगता। यहाँ बारह महीनों तक इतनी बड़ी फुँसी हो जाए न तो मुँह न देखे, मोह छूट जाए और जब सच्चा प्रेम हो तो एक फुँसी, अरे दो फुँसियाँ हों, तब भी न छूटे। तो ऐसा प्रेम ढूंढ निकालना। नहीं तो शादी ही मत करना। नहीं तो फँस जाओगे। फिर वह मुँह चढ़ाएगी तब कहेंगे, 'इसका मुँह देखना मुझे पसंद नहीं है।' 'अरे, अच्छा देखा था उससे तुझे पसंद आया था न, अब ऐसा नहीं पसंद?' यह तो मीठा बोलते हैं न इसलिए पसंद आता है। और कड़वा बोले तो कहेंगे, 'मुझे तेरे साथ अच्छा  ही नहीं लगता।'

प्रश्नकर्ता : वह भी आसक्ति ही है न?

दादाश्री : सभी आसक्ति। 'पसंद आया और नहीं पसंद, पसंद आया और नहीं पसंद' ऐसे कलह करता रहता है। ऐसे प्रेम का क्या करना?

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