अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
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मैंने तो लोगों का हर तरह से मज़ाक उड़ाया था। हमेशा हर तरह का मज़ाक कौन उड़ाता है? जिसका बहुत टाइट ब्रेइन (तेज दिमाग) हो वही उड़ाये। मैं तो सब का मज़ाक उड़ाया करता था, अच्छे-अच्छे लोगों का, बड़े-बड़े वकील, डॉक्टरों का मज़ाक किया करता था। अब वह सारा अहंकार तो गलत ही है न? ऐसे हमारी बुद्धि का दुरुपयोग किया। मज़ाक उड़ाना यह बुद्धि की निशानी है।
प्रश्नकर्ता : मुझे तो अभी भी मज़ाक करने का मन हुआ करता है।
दादाश्री : मज़ाक करने में बहुत जोखिम है। बुद्धि से मज़ाक करने की शक्ति होती ही है और उसका जोखिम भी उतना ही है फिर। यानी हमने वह जोखिम मोल लिया था, जोखिम ही मोल लेते थे।
प्रश्नकर्ता : मज़ाक करने में क्या-क्या जोखिम हैं? किस तरह के जोखिम हैं?
दादाश्री : ऐसा है न, कि किसी को थप्पड मारा हो और जो जोखिम आता है, उससे अनंत गुना जोखिम मज़ाक करने में है। उसकी बुद्धि पहुँचती नहीं है इसलिए आपने अपने लाइट (बुद्धि) से उसे अपने कब्जे में लिया। यानी फिर वहाँ भगवान कहेंगे, 'इसकी बुद्धि नहीं है उसका यह मज़ा लेते हैं?' वहाँ पर खुद भगवान को हमने विपक्षी बनाया। उसे थप्पड मारा होता तो वह समझ जाता, ताकि खुद मालिक होता, लेकिन यह तो बुद्धि पहुँचती नहीं है, इसलिए हम उसका मज़ाक उडायें, तब वह खुद मालिक नहीं होता। इस पर भगवान जाने कि, 'अहह! इसकी बुद्धि कम है उसे तू फँसाता है? आजा, मैं तेरी खबर लूँ।' वे तो फिर हमारा पुरज़ा-पुरज़ा ढीला कर दें।
प्रश्नकर्ता : हमने तो मुख्य रूप से यही धंधा किया था।
दादाश्री : पर अभी भी उसके प्रतिक्रमण कर सकते हैं। हमने भी वही किया था। और वह मज़ाक उड़ाना बहुत गलत बात! मेरे लिए तो वही झंझट खड़ी हुई थी। उस बुद्धि को अंतराय हो रहा था तो क्या करे? बलवा तो करेगी ही न? मतलब यह ज्यादा बुद्धि हुई उसका इतना बड़ा गेरलाभ न? इसलिए इन मज़ाक करनेवालों को बिना लिए-दिये यह दुःख भुगतना नसीब हुआ।
कोई लँगडाता हुआ चलता हो और उस पर हम यदि हँसे, मज़ाक उडायें, तो भगवान कहेंगे, 'लो यह फल भुगतो।' इस दुनिया में किसी प्रकार का मज़ाक मत उड़ाना। मज़ाक करने के कारण ही ये सारे दवाखाने खड़े हुए हैं। ये पैर-बैर आदि सारे जो लूले-लंगड़े अंगड-बंगड माल है न, वह मज़ाक का ही फल है। हमें भी यह मज़ाक का फल मिला है। (दादाजी को फ्रेक्चर होने के बाद एक पैर में खोट थी।)
इसलिए हम कहते हैं न कि, 'मज़ाक करना वह बहुत बुरी बात कहलाये, क्योंकि मज़ाक भगवान का उड़ाया कहलाये। भले ही गधा है, पर आफ्टर ऑल (आखिर) क्या है? भगवान है।' हाँ, आखिर तो भगवान ही है। जीवमात्र में भगवान ही बिराजमान है। मज़ाक किसी का नहीं कर सकते। हमारे हँसने पर भगवान कहे कि, 'हाँ आ जा, अब तेरा हिसाब बराबर कर देता हूँ इसबार।'
प्रश्नकर्ता : अब उसके उपाय के लिए प्रतिक्रमण तो करने ही पड़े न?
दादाश्री : हाँ, करने ही पड़े। उसके सिवा छुटकारा ही नहीं है।
प्रश्नकर्ता : 'दादाजी' आपकी साक्षी में जाहिर करके मा़फी माँगकर, प्रतिक्रमण करता हूँ कहे तो?
दादाश्री : 'दादाजी, आपकी साक्षी में' बोलो न, तो भी चलेगा। 'यह वाणी दोष के कारण जिन-जिन लोगों को दुःख हुआ हो उन सभी की क्षमा माँगता हूँ।' तो उसको पहुँच जाये।
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