माता-पिता और बच्चों का संबंध दुतरफा होता है। संबंध मजबूत बनाने के लिए माता-पिता और बच्चों, दोनों को व्यक्तिगत रूप से प्रयास करना चाहिए। प्रस्तुत लेख के पहले भाग में माता-पिता को क्या करना चाहिए इस बारे में चर्चा की गई है और अगला भाग उन बच्चों के लिए है जो माता-पिता के साथ संबंध मजबूत करना चाहते हैं। लेकिन माता-पिता को बच्चों से ऐसी अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए कि वह अपनी भूमिका अच्छी तरह निभाएगा। और इसी तरह बच्चों को भी अपने माता-पिता से अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। ऐसा तभी संभव है जब दूसरों को सुधारने की अपेक्षा रखे बिना हम खुद ही सुधर जाएँ।
माता-पिता और बच्चों के संबंध को मजबूत करने के लिए, संतुलित दृष्टिकोण रखने का प्रयास करना होगा। माता-पिता की भूमिका पालक, मार्गदर्शक, और अंत में एक मित्र की होती है। बच्चा सात-आठ साल का होने तक जब भी गलती करे तब माता-पिता को उसे मार्गदर्शन देना चाहिए और ज़रूरत पड़े तो उन्हें नियम में भी रखना आवश्यक है। बारह से पंद्रह साल की उम्र तक आप उन्हें मार्गदर्शन दे सकते हैं, लेकिन सोलह वर्ष की उम्र के बाद आपको उनका मित्र बन जाना है।
सैद्धान्तिक रूप से, हम जानते हैं कि केवल प्रेम और समझ ही बच्चों के दिल को स्पर्श सकती है लेकिन व्यवहारिक रूप से उसमें थोड़ा अंतर होता है - जिसे हम मिटाना चाहते है! तो, आइए समझते हैं कि माता-पिता और बच्चों के बीच इस अनमोल रिश्ते में क्या ध्यान रखें ताकि आपका बच्चा बड़ा होकर सुखी और आत्मविश्वासी बन सके।
अ) इन चाबियों से आपको ध्यान रखने में मदद करेगी
ब) व्यवहारिक दृष्टिकोणः हर रोज़ जीवन में माता-पिता और बच्चों के संबंध को मजबूत बनाने के लिए।
1. सुननाः उनका प्रेम और विश्वास जीतने के लिए उनकी बात सुने और सहमती में कुछ कहें या मौन रहें लेकिन किसी भी निष्कर्ष पर न पहुँचे और दैनिक बातचीत के दौरान उनका विरोध न करें।
2. बात करेः पालक के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है- बच्चों से कैसे बात करें! समझपूर्वक शांति और प्यार से बात करें, बहुत कम शब्दों का प्रयोग करें और एक दिन आप उसे जीत लेंगे। हो सकता है आपको तुरंत इसका परिणाम देखने को नहीं मिले। एक महीने तक प्रेम दिखाएँ और फिर उसका परिणाम देखें।
कैसे बात करें इसकी विस्तृत समझ के लिए, पढ़े, 2.“बच्चों से किस तरह बात करें और किस तरह का व्यवहार (वर्तन) करें?”
3. उनके साथ मित्र की तरह समय बिताएः
4. जब कोई बात बिगड़ जाएः
कई बार ऐसा भी होता है, जब परिस्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है और हम अपने बच्चों को चोंट पहुँचाने वाले शब्द कहने लगते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अपराध के कारण भावुक नहीं होना है, क्रोधित नहीं होना है तथा अधिकार नहीं जमाना है। यह उल्टी की तरह है, जो होकर ही रहती है। अब उसे साफ करने की जरूरत है। ज्ञानी पुरुष दादा भगवान ने कर्मों को धोने का रस्ता बताया है-प्रतिक्रमण द्वारा हम हमारे हृदय के खराब भावों का धो सकते हैं। इससे खराब स्पंदन बंद हो जाएँगे और सामने वाले व्यक्ति को हमारी तरफ से कोई फरियाद नहीं रहेगी। माता-पिता और बच्चों के संबंध को मजबूत करने के लिए यह जरूरी है।
5. जब बच्चा आपकी बात न सुनेः
कई बार ऐसा भी होता है कि आप महसूस करते हैं कि आप अपने बच्चे के हित के लिए कह रहें है लेकिन वह आपकी बात नहीं सुन रहा है और ऊपर से ऐसा कहता है कि भाषण देना बंद करो। उस समय, जब आपके बोले हुए शब्द काम नहीं आ रहे हों और आप चाहते हों कि आपका बच्चा सुधरे, प्रार्थना अंतिम साधन है। अपने आप को प्रार्थना द्वारा समर्थ बनाएँ।
सबसे महत्वपूर्ण बात, यह सब पढ़कर अभिभूत ना हों। अपने रिश्ते को मजबूत बनाने का आपका निश्चय ही आपका मार्गदर्शन करेगा। अपने बारे में अच्छा सोचें कि माता-पिता और बच्चों के संबंध को सुधारने के लिए आप बहुत जागरूक हैं।
क) माता-पिता और बच्चों के संबंध की ‘रियल’ समझ
ज़रा सोचिएः
ये सारे संबंध टेम्पररी एडजस्टमेंट्स हैं। आपको अपना व्यवहार सावधानी पूर्वक करना चाहिए। जितना आप उनके साथ एडजस्ट होगें, तब तक सब ठीक रहेगा। आपका इरादा संबंधो को बनाए रखने का होना चाहिए, भले ही सामने वाला व्यक्ति उसे नष्ट करने का प्रयास करे। जितनी हो सके उतनी स्थिरता रखें।
संसार में ड्रामेटिक रहना चाहिए जैसे किसी नाटक के पात्र हो। वह सब कुछ करें जो आप करना चाहते हैं, लेकिन भावुक हुए बिना। जब बच्चा हँसता है तब माँ उसे बहुत प्रेम से दबा देने की हद तक गले लगाती है और स्वाभाविक रूप से बच्चा चिढ़ जाता है। यह अज्ञानता है, जो इस प्रकार का व्यवहार करते हैं। जबकि ज्ञानी पुरुष व्यवहार में सुपरफल्युअस रहते हैं और इसलिए सभी उन पर खुश रहते हैं।
प्रश्नकर्ता: मैं माता-पिता की देखभाल करना चाहता हूँ तथा माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार रखने की इच्छा है, लेकिन मुझे उनके दोष दिखाई देते हैं। तो मुझे क्या करना चाहिए?
दादाश्री: जो व्यक्ति माता-पिता के दोष देखता है, उसमें कभी बरकत नहीं हो सकती। संभव है पैसेवाला हो, लेकिन उसकी आध्यात्मिक उन्नति कभी भी नहीं होती। माता-पिता के दोष नहीं देखने चाहिए। उनका उपकार तो भूल ही कैसे सकते हैं? किसी को चाय पिलाई हो तो भी उसका उपकार नहीं भूलते, तो फिर हम माता-पिता का उपकार कैसे भुला सकते हैं?
माता-पिता की बहुत सेवा करनी चाहिए। वे उल्टा-सीधा कहें तो ध्यान पर नहीं लेना चाहिए। वे उल्टा-सीधा कहें लेकिन वे बड़े हैं न! क्या तुझे भी उल्टा-सीधा बोलना चाहिए?
प्रश्नकर्ता: नहीं बोलना चाहिए। लेकिन बोल देते हैं उसका क्या? मिस्टेक हो जाए तो क्या करें?
दादाश्री: हाँ, क्यों फिसल नहीं जाता? क्योंकि वहाँ जागृत रहता है और अगर फिसल गया तो पिताजी भी समझ जाएँगे कि यह बेचारा फिसल गया। यह तो जान-बूझकर तू ऐसा करने जाए तो, तो तुम जवाबदार हो। जब तक संभव हो तब तक ऐसा नहीं होना चाहिए, फिर भी यदि तुझसे ऐसा कुछ हो जाए, तब सभी समझ जाएँगे कि ‘यह ऐसा नहीं कर सकता।’ माता-पिता को खुश रखना। वे तुझे खुश रखने के प्रयत्न करते हैं या नहीं? क्या उन्हें तुझे खुश रखने की इच्छा नहीं है? सभी माता-पिता अपने बच्चों की खुशी चाहते हैं।
प्रश्नकर्ता: हाँ, किन्तु दादाजी, हमें ऐसा लगता है कि उन्हें किच-किच करने की आदत हो गई है।
दादाश्री: हाँ, लेकिन उसमें तेरी भूल है, इसलिए माता-पिता को जो दुःख हुआ, उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। उन्हें दुःख नहीं होना चाहिए, ‘मैं सुख देने आई हूँ’ ऐसा आपके मन में होना चाहिए। ‘मेरी ऐसी क्या भूल हुई की माता-पिता को दुःख हुआ’ उन्हें ऐसा लगना चाहिए।
पिताजी बुरे नहीं लगते? ऐसे लगेंगे तब क्या करेगी? सच में बुरे जैसा इस दुनिया में कुछ है ही नहीं। जो कुछ भी हमें मिला, वह सही है और वही न्याय है। माँ तो माँ ही होती है और हमें उनके दोष नहीं देखने चाहिए। क्योंकि हमें प्रारब्ध से जो मिली वह अच्छी। क्या बदलकर दूसरी ला सकते हैं?
१) हमें अपने माता-पिता की देखभाल क्यों करनी चाहिए? अधिक जानने के लिए इस आर्टिकल को पढ़ें "माता-पिता का मूल्य”
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