सारा दिन कलह करने के बाद भी आखिर में कोई सुधार नहीं होता देखकर आप थक जाते हैं। तो, अपने बच्चों पर चीखना- चिल्लाना कैसे रोकें? किच-किच किस तरह बंद करें?
ज़रा सोचिएः
इसलिए किच-किच करना वह सही तरीका नहीं है।
माता-पिता बहुत छोटी-छोटी बातों के लिए इतना किच-किच करते हैं कि बच्चा उनकी महत्वपूर्ण बात भी नहीं सुनता। आपको बच्चों के लिए भाव करते रहना है कि बच्चों की समज में बदलाव लाना चाहते हो। ऐसा करते- करते बहुत दिनों बाद असर हुए बिना नहीं रहता। वे तो धीरे-धीरे समझेंगे, आपको बस इसके लिए प्रार्थना करते रहना है, क्योंकि प्रार्थना आपको धीरज रखने में मदद करेगी। एडजस्ट हो जाओ और जो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करो। यदि फिर से कुछ कहना पड़े तब, आपके बच्चे के अंदर बैठे शुद्धात्मा भगवान से प्रार्थना करना। भाव की ज्यादा कीमत है और वे बच्चों के आत्मा तक पहुँचते हैं।
आपके द्वारा लगाये गए गुलाब के पौधे की तरह ही आपके बच्चे भी अपने आप ही बढ़ते हैं। आपको उन्हें सिर्फ सही पोषण देने की आवश्यक्ता है।
आप सोचते हो की गुलाब आपका है, परंतु गुलाब का अपना एक अलग अस्तित्व है। वह किसी का नहीं है।
आपकी गैरहाजरी में भी सब कुछ सुचारू रूप से चलता है। टोकने वाली माता को यह समझ लेना चाहिए कि सब किच-किच का मूल कारण गलत मान्यता और अहंकार है।
विस्तार से समझने के लिए पढ़ेः
हमारी समझ की कमी के कारण ही हम दुःखी होते हैं। यदि हमारे शब्द सही हैं पर सामने वाला व्यक्ति उसे स्वीकार नहीं करता, तो फिर उन शब्दों की कोई कीमत नहीं है। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि सत्य किस तरह बोले। वाणी सामने वाले के हित के लिए, मित और प्रिय हो, तो ही सत्य कही जाएगी और सबको स्वीकार्य होगी। बच्चों के ऊपर (चीखना- चिल्लाना) झिक-झिक बंद करने की यह एक महत्वपूर्ण चाबी है। लेकिन यदि हमारी वाणी सामने वाले व्यक्ति को किच-किच लगती हो तो उससे सब बिगड़ जाएगा। तो फिर हम एक शब्द भी कैसे बोल सकते हैं?
यदि हम अपने दैनिक जीवन में कुछ सिद्धांत बना लेंगे, तो किसी को कोई समस्या नहीं होगी। इन सब में महत्वपूर्ण बात यह है कि, ‘घर हो या बाहर, छोटी-छोटी बातों के लिए कभी भी किसी से कुछ नहीं कहना चाहिए। कुछ महत्वपूर्ण मुद्दो में अवश्य बोलना चाहिए पर वह भी बार-बार नहीं बोलना (दोहराना) चाहिए।‘ बच्चों पर किच-किच बंद करने की यह और एक महत्वपूर्ण चाबी है।
इन महत्वपूर्ण बातों में माता-पिता का ध्यान देना ज़रूरी है। बाकी सब समस्याएँ सामान्य है।
यह सारी सामान्य बाते हैं। माता-पिता को ऐसी परिस्थिति में शांत और मौन रहना चाहिए।
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, यदि माता-पिता छोटी-छोटी बातों में समता और प्रेम रखेंगे, तो बच्चे बड़े मामलों में उनकी बात मानेंगे। लेकिन माता-पिता हर छोटी बात के लिए किच-किच करते हैं और अपना प्रभाव खो देते हैं। एक भी शब्द कहे बिना यदि उन्हें आपका ताप लगे तो काम होगा। माता-पिता को बच्चों को कुछ भी कहने का अधिकार तभी है जब बच्चों को लगता है कि वे सच कह रहें हैं और वे उसे स्वीकार करते हैं। अन्यथा आप अपने बच्चों को और बिगाड़ रहे हो। जब भी कोई बात दो या तीन बार से अधिक बार कही जाए तो वह किच-किच कहलाती है और अस्वीकार्य हो जाती है। बच्चों को सिर्फ प्रेम से ही वश किया जा सकता है, किच-किच करने से या मारने से वे विरोधी हो जाएँगे।
कर्म का सिद्धांत यह कहता है कि यदि आपने एक घंटा आपके नौकर को, बेटे को या पत्नी को डाँटा हो तो फिर वह अगले जन्म में पति होकर या सास होकर आपको पूरी ज़िन्दगी कुचलते रहेंगे। क्या हमें न्याय नहीं चाहिए? कुदरत न्याय देती है। आप किसी को दुःख दोगे तो आपके लिए पूरी जिन्दगी दुःख आएगा। एक ही घंटा दुःख दोगे तो उसका फल पूरी जिन्दगी मिलेगा। बच्चों के ऊपर किच-किच बंद करने के लिए यह सिद्धांत जान लेना जरूरी है।
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि, “बोलना कम कर देना अच्छा। किसी को कुछ कहने जैसा नहीं है, कहने से अधिक बिगड़ता है। यदि आप अपने पुत्र को कहें कि, “गाडी पर जल्दी पहुँच”, तो वह देर से जाएगा और कुछ नहीं कहें तो टाइम पर जाएगा। हम नहीं हो तो सब चले वैसा है। यह तो खुद का गलत अहंकार है। जिस दिन से बच्चों के साथ किच-किच करना आप बंद कर दोगे, उस दिन से बच्चे सुधरेंगे। आपके बोल अच्छे नहीं निकलते, इसलिए सामने वाला अकुलाता है। आपके बोल स्वीकार नहीं करता, उल्टे वे बोल वापिस आते हैं। हम तो बच्चों को खाना-पीना सब बनाकर दें और अपना फ़र्ज निभाएँ, दूसरा कुछ कहने जैसा नहीं है। कहने से फायदा नहीं है, ऐसा आपने सार निकाला है?”
प्रश्नकर्ताः बच्चे उनकी ज़िम्मेदारी समझकर नहीं रहते हैं।
दादाश्रीः ज़िम्मेदारी ‘व्यवस्थित’ की है। वह तो उसकी ज़िम्मेदारी समझा हुआ ही है। आपको उसे कहना नहीं आता है, इसलिए दखल होती है। सामने वाला माने, तब अपना कहा हुआ काम का है। यह तो माँ-बाप बिना समझे बोलते हैं, तो फिर बच्चे भी ऐसा बोलेंगे ।
प्रश्नकर्ताः बच्चे असभ्यता से बोलते हैं।
दादाश्रीः हाँ, पर वह आप किस तरह बंद करोगे? यह तो आमने-सामने बंद हो तो सब का अच्छा हो। एक बार मन में विरोध भाव पैदा हो गया, फिर उसकी लिंक शुरू हो जाती है। फिर मन में उसके लिए अभिप्राय बंध जाता है कि ‘यह मनुष्य ऐसा है।’ तब हमें मौन लेकर सामने वाले को विश्वास में लेना चाहिए। बोलते रहने से किसी का सुधरता नहीं है। फ़क्त ज्ञानी की वाणी से ही बदलाव आता है। जहाँ पर बच्चों कि बात आती है वहाँ पर माँ-बाप को सतर्क रहना चाहिए। हम नहीं बोले, तो नहीं चलेगा? चलेगा। इसलिए भगवान ने कहा है कि जीते जी ही मरे हुए की तरह रहो। बिगड़ा हुआ सुधर सकता है। बिगड़े हुए को सुधारना ज्ञानी से ही हो सकता है, आपको नहीं करना है। आपको हमारी आज्ञा के अनुसार चलना है। वह तो जो सुधरा हुआ है, वही दूसरों को सुधार सकता है।
दादाश्रीः सामने वाले व्यक्ति को आप डाँट रहे हों तब भी उसे उसमें प्रेम दिखे तभी आप कह सकते हो कि आप में सुधार हुआ है। आप उलाहना दो, तब भी आपके बच्चे को आप में प्रेम ही दिखे कि ओहोहो ! मेरे पिता का मुझ पर कितना प्रेम है! उलाहना दो, परंतु प्रेम से दोगे तो सुधरेंगे। ये कॉलेज में यदि प्रोफेसर उलाहना देने जाएँ तो प्रोफेसरों को सब मारेंगे। सामने वाला सुधरे, उसके लिए आपके प्रयत्न रहने चाहिए। लेकिन यदि प्रयत्न रिएक्शनरी हों, वैसे प्रयत्नो में नहीं पड़ना चाहिए। आप उसे झिड़के और उसे खराब लगे वह प्रयत्न नहीं कहलाता। प्रयत्न अंदर करने चाहिए, सूक्ष्म प्रकार से! स्थूल तरीके से यदि आपको नहीं करना आता तो सूक्ष्म प्रकार से प्रयत्न करने चाहिए। अधिक उलाहना नहीं देना हो तो थोड़े में ही कह देना चाहिए कि हमें यह शोभा नहीं देता। बस इतना ही कहकर बंद रखना चाहिए। कहना तो पड़ता है लेकिन उसका तरीका होता है। आपके बच्चों पर किच-किच बंद करने की यह महत्वपूर्ण चाबी है।
खुद सुधरे नहीं और लोगों को सुधारने गए। उससे लोग उल्टे बिगड़े। खुद को सुधारना सबसे आसान है। हम नहीं सुधरे हों और दूसरे को सुधारने जाएँ, वह मीनिंगलेस है। डाँटने से मनुष्य स्पष्ट नहीं कहता है और कपट करता है। ये सारे कपट डाँटने से ही जगत् में खड़े हुए हैं।
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