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बिना कटु वचन कहे बच्चों को किस प्रकार शिष्ट करें? शिष्टाचार और अनुशासन के सहित बच्चों की परवरीश कैसे करें?

बच्चों को अनुशासित करना, उनकी परवरशि करना एक कला है। बच्चों में अच्छे संस्कार डालने के लिए हमें परवरिश संबंधित कुछ पॉजिटिव पेरेंटिंग टिप्स जानना जरूरी है। क्या आप जानते हैं बच्चे आप में जो देखते हैं वही सीखते हैं? आपको देखकर ही आपके बच्चे सीखते हैं। आप जो कुछ भी करते हैं, वे उसकी नकल करते हैं। यदि माता-पिता संस्कारी हो तो बच्चे भी संस्कारी बनते हैं। यह बच्चों के लालन-पालन करने की एक महत्वपूर्ण कुँजी(चाबी) है।

अगर आप शाकाहारी हैं, शराब ना पीएँ और आप अपने जीवनसाथी के साथ सम्मान से व्यवहार करते हैं, तो आपके बच्चे भी आपके यह गुणों को नोटिस करेंगे। वे नोटिस करेंगे कि दूसरों के मम्मी-पापा झगड़ते हैं, मेरे मम्मी-पापा नहीं झगड़ते। यह देखकर बच्चे भी वैसा ही सीखते हैं।

यदि आप गुलाब के पौधे की देखभाल करना जानते हों, तो सचमुच उसका बहुत सुंदर विकास होगा। और यदि यह समझ नहीं है और आप उसे महीना भर पानी देना भूल गए तो वह सूख जाएगा। इसलिए माता-पिता को बच्चों को पालन करने की कला सीखनी चाहिए।

पढ़िए परम पूज्य दादा भगवान द्वारा सर्टिफाइड माता-पिता के लिए बताए गए गुण, जो बच्चों को अनुशासित करने के लिए आवश्यक है

  • सर्टिफाइड माता-पिता बनने के लिए, कई महत्वपूर्ण गुणों की आवश्यक्ता होती है। यह एक बड़ी जिम्मेदारी है। यदि माता-पिता ऐसी वाणी बोले जो बच्चों के हृदय को स्पर्श करे तो वे सर्टिफाइड माता-पिता कहलाएँगे।
  • माता-पिता को प्रभावशाली होना चाहिए। यदि वे बच्चों पर क्रोधित नहीं होते तो बच्चे उनके कहे अनुसार करेंगे। यह बच्चों को अनुशासित करने की सबसे प्रभावी चाबियों में से एक है।
  • बच्चे अपना कर्मों का हिसाब लेकर ही आते है, लेकिन साथ ही वे अपने आस-पास जो हो रहा है उसे देखकर भी सीखते हैं। बाहर कुछ अच्छा हो, लेकिन उसके पास यदि गलत समझ होगी, तो उसके मन में होगा, ‘यह ऐसा क्यों हैं? ’ उसे समझ में आना चाहिए कि ‘समस्या स्वयं के भीतर ही है।’ माता- पिता को कषाय बिल्कुल बंद कर देना चाहिए क्योंकि उनके नैतिक और संस्कारी गुणों को देखकर, बच्चे भी उनका अनुसरण (उनकी नकल) करेंगे।
  • माता-पिता में सबसे महत्वपूर्ण गुण यह होना चाहिए कि वे उनकी विकनेस किसी के सामने, विशेष रूप से उनके बच्चों के सामने ना आने दे। यदि निर्बलता उत्पन्न हो तो भी उसका असर स्वयं के सिवाय किसी और पर ना हो, बच्चों पर भी नहीं। बच्चों को अनुशासित करने के लिए यह एक और प्रभावी चाबी है।

डाँटने से या मारने से इस दुनिया में कोई नहीं सुधारता। आपका व्यवहार देखकर सुधरते हैं। उन्हें कार्य करने का सही तरीका दिखाने से फायदा होता है।

शिष्टाचार और अनुशासन सहित बच्चों की परवरिश करने के लिए यहाँ पर कुछ पॉजिटिव पेरेंटिंग टिप्स दिए गए हैं :

  • बच्चों को समझा-बुझाकर उनसे काम करवाना चाहिए।
  • सही समझ के सचेत करने वाले कुछ ही शब्द उन्हें वापस लौटने में मदद करते हैं।
  • परिवार में सभी के साथ मिलझुलकर रहें। जब बच्चा छोटा होता है तब उसे छोटे-छोटे काम सौपें और उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यो की प्रशंसा करें। उनमें जो नेगेटिव है उसपर ध्यान ना दे। जो भी अच्छी आदत आप उनमें विकसित करना चाहते हैं, उसके लिए पॉज़िटिव दृष्टिकोण अपनाएं। उनके द्वारा उठाए गए हर छोटे कदम की प्रशंसा करें और उनके द्वारा की गई गलतियों को अनदेखा करें। धैर्य रखें क्योंकि इसमें समय लगेगा।
  • डाँटने पर बच्चा स्पष्ट नहीं कह सकता,कपट करता है। इसी वजह से संसार में सब कपट पैदा हुए हैं! दुनिया में डाँटने की ज़रूरत नहीं है। बेटा फिल्म देखकर आए और आप उसे देखने के लिए ना कहेते है तो वह दोबारा फिल्म देखने के लिए गलत बहाना दिखायेगा। जिसके घर में माँ सख्त हो, उसके बेटे को व्यवहार नहीं आता।
  • यदि आप बच्चों को मारते रहेंगे, तो इसका परिणाम यह होगा कि वह बाहर (मान) प्रेम खोजेगा। आगे जाकर वह ‘बॉयफ्रेन्ड’ या ‘गर्लफ्रेंन्ड’ खोजेगा। उसके मन में ऐसा होना चाहिए कि ‘कब मैं घर जाऊँ ताकि मैं अपने माता-पिता के साथ(समय बीता सकूँ) बैठ सकूँ? ’ इतना प्यार होना चाहिए। इसके बजाय यदि हम मारते रहेंगे तो उन्हें हमारे प्रेम का अनुभव नहीं होगा और वे दूसरी दिशा में भटक जाएंगे। मारने या दंड (सजा) देने से कभी स्थायी (कायमी) अनुशासन नहीं आता, बच्चे को अनुशासित करने के लिए प्रेम ही एकमात्र आसान और व्यवहारिक चाबी है।
  • नफरत (घृणा) में छुपा हुआ प्रेम अंत में निष्फल ही होता है: यदि बेटा शराब पीकर आए और आपको दु:ख दे, तब आप कहोगे कि “बेटा मुझे बहुत दु:ख देता है” लेकिन गलती आपकी है (बच्चा तो अपने कर्म का हिसाब पूरा कर रहा है) इसलिए, शांति से चुपचाप भुगत लो, बिना भाव बिगाड़े। उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरकर कहो, “बेटा, ऐसा नहीं होना चाहिए।” उसे प्रेम से समझाओ। उसके प्रति किसी प्रकार का द्वेष मत रखो। आप वास्तव में उसके लिए घृणा(द्वेष) रखते हो, क्योंकि आप मानते हो कि ‘वो गलत है।’ लेकिन यदि आप घृणा से छुटकारा पाकर फिर प्रयत्न करोगे तो यह काम होगा।
  • बच्चों के साथ बच्चा बनकर बात करें। यदि आप बड़ो की तरह व्यवहार करोगे तो बच्चा आपसे डरेगा। आपको उन्हें समझाकर उनकी गलती बतानी चाहिए। उसे आपसे डरने का कोई कारण नहीं होना चाहिए। आपको प्रेम स्वरूप बनना चाहिए।
  • डर केवल आँखों में होना चाहिए, हाथ से नहीं। इसलिए जब भी वो कोई गलती करें तब उसे मारने के बजाय आप उसे वह प्रेम देना बंद कर दे जो आप उन्हें रोज देते हो तो उसे अपने आप समझ में आ जाएगा। उसे यह अहसास हो जाएगा कि उन्हें दंड (सजा) दी गई है और वे सतर्क (सचेत) रहेगा।
  • कठिन समस्याओं का समाधान समभाव और करुणा से करना चाहिए।

एक भाई थे। वे रात को दो बजे न जाने क्या-क्या करके आते थे उसका वर्णन करने योग्य नहीं है। फिर घर के लोगों ने तय किया कि इसको डाँटे या फिर घर में घुसने नहीं दें, क्या उपाय करें? बाद में वे लोग इसका अनुभव कर आए। उसके बड़े भैया कहने गए तो उनसे कहने लगा, ‘आपको मारे बगैर नहीं छोडूँगा।’ फिर घर के सब लोग मुझे पूछने आए कि ‘इसका क्या करें? यह तो ऐसा बोलता है।’ तब मैंने घरवालों से कह दिया कि कोई उसे एक अक्षर भी ना कहे । बोलेंगे तो वह ज्यादा उद्दंड हो जाएगा, और घर में आने नहीं दोगे तो बगावत करेगा। उसे जब आना हो, तब आए और जाना हो तब जाए। हमें राइट (सही) भी नहीं कहना और रोंग (गलत) भी नहीं कहना है। राग भी नहीं करना, द्वेष भी नहीं करना है। समता रखनी है। तीन-चार साल बाद वह भाई सही रास्ते पर आ गया! आज वह व्यापार में बहुत मदद करता है। इसलिए, बच्चों को अनुशासित करने की बात हो तो समभाव और करुणा अत्यंत आवश्यक है।

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