अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें11 दिसम्बर |
10 दिसम्बर | to | 12 दिसम्बर |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
अधिक पढ़ेंअगर हम मांसाहार न करें, शराब न पीएँ और घर में पत्नी के साथ झगड़ा न करें तो बच्चे देखते हैं कि पापाजी बहुत अच्छे हैं। दूसरों के पापा-मम्मी झगड़ते हैं, मेरे मम्मी-पापा नहीं झगड़ते। इतना देखें तो फिर बच्चे भी सीखते हैं।
रोज़ाना पति पत्नी के साथ झगड़े तो बच्चे यों देखते रहते हैं। ‘ये पापा है ही ऐसे’ कहेंगे। क्योंकि भले ही इतना छोटा सा हो फिर भी इसका न्याय करनेवाली न्यायाधीश बुद्धि उसमें होती है। बेटियों में न्यायाधीश बुद्धि कम होती है। बेटियाँ हर वक्त उनकी माँ का ही पक्ष लेती हैं। लेकिन ये लड़के तो न्यायाधीश बुद्धिवाले, जानते हैं कि पापा का दोष है! फिर दो-चार व्यक्तियों को पापा का दोष बताते-बताते, निश्चय भी करता है कि बड़ा होकर सिखाऊँगा! बाद में बड़ा होने पर वैसा करता भी है। तेरी अमानत वापस तुझी को!
बच्चों की मौजूदगी में नहीं लड़ना चाहिए। आप संस्कारी होने चाहिए। आपकी गलती हो तो भी पत्नी कहे, ‘कोई बात नहीं।’ और उसकी गलती हो तो आप कहो, ‘कोई बात नहीं।’ बच्चे ऐसा देखते हैं तो ऑल राइट (ठीक) होते जाते हैं। और अगर लड़ना हो तो इंतजार करना, जब बच्चे स्कूल जाएँ, तब जितना लड़ना हो उतना लड़ना। लेकिन बच्चों की उपस्थिति में ऐसा लड़ाई-झगड़ा हो, तो वे देखते हैं और फिर उनके मन में बचपन से पापा और मम्मी के लिए विरोधी भावना जन्म लेने लगती है। उनका सकारात्मक भाव छूटकर नकारात्मक शुरू हो ही जाता है। अर्थात् आजकल बच्चों को बिगाड़नेवाले माता-पिता ही हैं!
यदि लड़ना हो तो एकांत में लड़ना, बच्चों की मौजूदगी में नहीं। एकांत में दरवाज़ा बंद करके दोनों को आमने-सामने लड़ना हो तो लड़ो।
महँगे आम लाए हों और उस आम का रस, साथ में रोटियाँ तैयार करके सब पत्नी ने
परोसा और भोजन की शुरूआत हुई। थोड़ा खाया और जैसे ही कढ़ी में हाथ डाला, थोड़ी खारी लगी कि डाइनिंग टेबल ठोककर कहता है कि ‘कढ़ी खारी बना दी।’ अरे! सीधी तरह खाना खा ले न! घर का मालिक, वहाँ कोई उसके ऊपर नहीं। वह खुद ही बॉस, इसलिए डाँट-डपट शुरू कर देता है। बच्चे डर जाते हैं कि पापा ऐसे पागल क्यों हो गए? लेकिन बोल नहीं सकते। क्योंकि बेचारे दबे हुए हैं, लेकिन मन में अभिप्राय बाँध लेते हैं कि पापा पागल लगते हैं।
अतः बच्चे सब ऊब गए हैं। वे कहते हैं कि फादर-मदर शादीशुदा हैं, उनका सुख (व्यंग में) देखकर हम ऊब गए हैं। मैंने पूछा, ‘क्यों? क्या देखा?’, तब वे कहते हैं कि रोज़ाना क्लेश होता है। इसलिए हम समझ गए हैं कि शादी करने से दुःख मिलता है। अब हमें शादी नहीं करनी।
subscribe your email for our latest news and events