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सिंगल पेरेंट के तौर पर टीनएजर के साथ कैसे व्यवहार करें?

जब अपना बच्चा टीनएज यानी किशोरावस्था में प्रवेश करता है, तब उसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए यह हरएक पेरेंट के जीवन का एकमात्र ध्येय बन जाता है। ऐसा माना जाता है कि पेरेंट्स की भूमिका में सबसे कठिन पहलू टीनएजर के पेरेंट्स का होता है। सिंगल पेरेंट के लिए यह पहलू और भी कठिन हो जाता है।

इसी दृष्टिकोण को इस तरह से देखिए: यह पहलू सिंगल पेरेंट को अन्य पेरेंट्स की तुलना में और भी मज़बूत बनाने के लिए उन पर अतिरिक्त ज़िम्मेदारियाँ लाता है। आप सिंगल मदर हों या सिंगल फादर, उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण टीनएजर की परवरिश किस तरह की जाए, यह बात ज़्यादा प्रोत्साहित करने वाली नहीं लगती? याद रखिए, आपके टीनएजर बच्चे तभी स्ट्रॉग बनेंगे जब आप खुद स्ट्रॉग होंगे।

माता और पिता दोनों की भूमिका निभाने के साथ-साथ परिवार की अतिरिक्त ज़िम्मेदारियाँ निभाने से सिंगल पेरेंट्स में विशेष शक्तियाँ विकसित होती हैं। जैसे कि, प्रतिबद्धता, दृढ़ निर्णय लेने की क्षमता, प्राथमिकताएँ तय करने की स्पष्टता और पारिवारिक मूल्यों को बनाए रखना आदि। इसलिए, ऐसा कभी मत मानिएगा कि सिंगल पेरेंट होने के कारण आप अपने टीनएजर को सही तरीके से नहीं संभाल सकते या आपके लिए उनका पेरेंटिंग करना कठिन है।

आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि स्वाभाविक रूप से टीनएज में कई तरह की चुनौतियाँ आती हैं, जिनके कारण आप भी बहुत परेशान हो सकते हैं। यही वह सही समय होता है जब आपके और आपके बच्चे के बीच के संबंध को एक नई परिभाषा की ज़रूरत होती है।

हाँ, शुरुआत में यह स्वीकारना निश्चित रूप से कठिन लगता है कि बच्चे अब बड़े हो रहे हैं और उनके दृष्टिकोण, अभिप्राय और निर्णय आपसे अलग होने की संभावना है। इसके बावजूद, इसे सहजता से स्वीकार कर लेना ही टीनएजर की परवरिश में आने वाली कई मुश्किलों और परेशानियों से निपटने का पहला कदम है।

एक बार आप इसे स्वीकार कर लेंगे तो टीनएजर को संभालना काफी आसान हो जाएगा। इसके लिए कुछ आसान टिप्स हैं। हालाँकि, इस विषय को समझने से पहले हम टीनएज को संक्षेप में समझ लेते हैं।

टीनेज के वर्तन की समझ

सिंगल मदर या सिंगल फादर के तौर पर टीनएजर की परवरिश करने में सबसे ज़्यादा चुनौतीपूर्ण क्या होता है? जो बच्चे पहले आज्ञाकारी थे, वही बच्चे अब छोटी-छोटी बातों पर सवाल पूछते हैं और पेरेंट्स की कोई बात नहीं मानते, ऐसा क्यों?

दस-ग्यारह साल की उम्र तक बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं। आप उन्हें किसी भी ढाँचे में ढाल सकते हैं। उनमें संस्कार सिंचन करने का, उनके अच्छे गुणों को प्रोत्साहित कर उन्हें खिलने देने का और उनके अवगुणों को नज़रअंदाज़ कर उनकी गलत आदतों को छुड़वाने का यह सबसे उत्तम समय है।

जब बच्चे पंद्रह या सोलह साल के होते हैं, तब उनका अहंकार विकसित हो जाता है। सरल भाषा में कहें तो अब उनके पास खुद के दृष्टिकोण, अभिप्राय, भावनाएँ, अवलोकन और अनुभव होते हैं, जो आपसे अलग भी हो सकते हैं। इसलिए ज़्यादातर, आपके टीनएजर को पहले की तरह आपको पॉज़िटिव प्रत्युत्तर देना संभव नहीं हो पाता।

इन सभी मतभेदों के परिणामस्वरूप वे झगड़े और उद्दंडता वाला बर्ताव करते हैं। इसके लिए, हम ही ज़िम्मेदार हैं क्योंकि जब बच्चे छोटे हों, तब से ही हम उन्हें छोटी-छोटी बातों में डाँटते और टोकते आए हैं।

अहंकार बढ़ने के साथ-साथ सेन्सिटिविटी भी बढ़ती है और चेतावनी वाले शब्दों से फायदे की बजाय नुकसान ज़्यादा होता है। इसलिए ही परम पूज्य दादाश्री ने कहा है कि बच्चों को कभी भी डाँटना नहीं चाहिए। पाँच साल से बड़े बच्चों को वास्तव में ज़रूरी लगे तभी डाँटना चाहिए। और पंद्रह साल से बड़े बच्चों को तो चाहे जैसी भी परिस्थिति हो, लेकिन कभी डाँटना नहीं चाहिए।

अकेले में या ज़ाहिर में उन्हें टोकना, बिन माँगे सलाह देना, ताने मारना, बहस करना या उनका अपमान आदि तो नहीं ही करना चाहिए। नहीं तो ऐसा व्यवहार टीनएजर्स में अस्वीकार्य प्रतिक्रिया के रूप में परिणाम दे सकता है और हम उन्हें खो भी सकते हैं, खासकर सिंगल पेरेंट वाले परिवार में।

सिंगल पेरेंट के तौर पर टीनएजर्स की परवरिश के लिए चाबियाँ

चलिए, जानते हैं कि सिंगल पेरेंट के तौर पर टीनएजर की परवरिश किस तरह करनी चाहिए।

मित्र बनें

टीनएज के समय में आपके बच्चों को आपकी मित्रता की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। उनका अहंकार इतना बढ़ चुका होता है कि आप जो कुछ भी कहेंगे या आदेश देंगे, तो वे उसे तुरंत नहीं स्वीकारेंगे। वे सत्ता या अधिकार वाला व्यवहार स्वीकार लें इसकी संभावना बहुत कम होती है।

परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, इसलिए हम लोगों से कहते हैं, “हम लोगों से कहते हैं, भैया, बच्चों को सोलह साल के होने बाद 'फ्रेन्ड (मित्र) के रूप में स्वीकार लेना', ऐसा नहीं कहा? 'फ्रेन्डली टोन' (मैत्रीपूर्ण व्यवहार) में हो न, तो अपनी वाणी अच्छी निकले, वर्ना हर रोज़ बाप बनने जाएँ तो कोई सार नहीं निकलता। बेटा चालीस साल का हुआ हो और हम बापपना दिखाएँ तो क्या हो?”

जब आपको अपने टीनएजर के लिए माता और पिता दोनों की भूमिका निभानी हो, तब आपको माता-पिता की भूमिका जताने की ज़रूरत नहीं है। उसके बजाय आप उनके मित्र बनें, ताकि उन्हें सही मार्गदर्शन भी मिलता रहे और आप में उन्हें आवश्यक मैत्रीपूर्ण कम्फर्ट ज़ोन भी मिलता रहे।

जब टीनएजर्स को पेरेंट्स से भरपूर सहारा और मार्गदर्शन मिलेगा तो वे बाहर नहीं भटकेंगे। लेकिन यह खास याद रखने की ज़रूरत है कि कई बार पेरेंट्स जज करेंगे इस डर से हमारे टीनएज बच्चे हमारे साथ खुलकर बाते नहीं कर पाते।

उनके मित्र बनने से वे आपके साथ खुलकर बातचीत कर सकेंगे और आप भी उन्हें कोई दुःख न हो या उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे इस तरह से उन्हें सही सलाह दे पाएँगे। बच्चों को सलाह भी सोच-समझकर देनी चाहिए। जब बच्चे गलत दिशा में जा रहे हों, तब उन्हें सावधान करने या सलाह देने में कुछ गलत नहीं है लेकिन उन्हें ज़ोर से धमकाना या टोकना नहीं चाहिए।

टीनएजर्स का मार्गदर्शन करते समय, आपको उन्हें हर कार्य के पीछे क्या परिणाम हो सकते हैं इस विषय में ज़रूर समझाना चाहिए और फिर निर्णय लेने का काम टीनएजर्स पर छोड़ देना चाहिए। आपको यह विश्वास है कि वे सही निर्णय लेंगे, ऐसा अहसास दिलाने से उन्हें अपनी कमज़ोरियों से बाहर निकलने और सही निर्णय लेने की शक्ति तो मिलेगी ही साथ ही उनका आप के प्रति विश्वास भी दृढ़ होगा। जो सिंगल पेरेंट और बच्चे के बीच के रिश्ते को और भी मज़बूत बनाएगा।

आपके टीनएजर की समझ का लेवल आपके जितना ही होगा ऐसी आशा नहीं रखनी चाहिए। वास्तव में तो आपको उनके समझ के लेवल तक आना चाहिए। उनका मित्र बनने का यही एक रास्ता है। टीनएजर्स के साथ प्रभावशाली व्यवहार करने की यह सबसे आसान चाबी है।

उचित व्यवहार से उदाहरण बनें; उनके आदर्श बनें

जब बच्चे कुछ उम्र के हो जाते हैं, तब उन्हें क्या सही है यह कहने से उतना असर नहीं होता जितना आपके व्यवहार के उदाहरण से होता है। अगर आप उन्हें अनुशासन में लाने के लिए हुक्म चलाएँगे, तो इससे वे बौखला जाएँगे।

धीरे-धीरे वे बिगड़ते जाएँगे और पेरेंट्स का विरोध करने लगेंगे। ऐसे परिणामों से पुराने प्रश्नों का तो हल नहीं आएगा, उल्टा और नए प्रश्न बढ़ेंगे।

बच्चे और टीनएजर्स अपने आदर्श को अच्छा रिस्पॉन्स देते हैं। अगर आप कषायरहित शांतिपूर्ण जीवन जिएँगे, नॉनवेज, शराब या अन्य व्यसन और हिंसा जैसी चीज़ों से दूर रहेंगे और आपसी समझ और प्रेम से समस्याओं का निराकरण करेंगे तो आपका टीनएजर समय के साथ आपका और ज़्यादा सम्मान करेगा और आपका अनुकरण करके आपके जैसा बनने की महत्त्वाकांक्षा रखेगा।

संक्षेप में, आप अपने टीनएजर्स से जैसी आशा रखते हैं, वैसे पहले आप खुद बनें! अगर आप घर के बुज़ुर्ग जैसे कि आपके माता-पिता या सास-ससुर की बात नहीं मानते, तो आपके टीनएजर्स आपकी बात मानेंगे ऐसी आशा मत रखिए।

हरएक व्यक्ति की तरह टीनएजर्स भी सुख की तलाश करते हैं। सच्चा सुख क्या होता है और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है, यह उन्हें बताना आपके हाथ में है।

माली बनें

कई बार, सिंगल पेरेंट्स ज़रूरत से ज़्यादा पेरेंटिंग करने लगते हैं। यानी वे अपने फ़र्ज़ से आगे बढ़कर टीनएजर्स के जीवन के हर पहलू को सुधारते हैं या माइक्रो-मैनेज करने लगते हैं। कई सिंगल पेरेंट्स अपने टीनएजर्स को बिल्कुल अपनी ही प्रतिकृति बनाने का प्रयत्न करते हैं या तो हमेशा अपने साथ उनकी तुलना करके अपना असंतोष व्यक्त करते हैं। ऐसे बर्ताव से बच्चा खुद को अनचाहा और निकम्मा समझने लगेगा और फिर उसके भीतर सिर्फ़ नेगेटिविटी ही बढ़ेगी।

परम पूज्य दादाश्री ने इसके लिए एक अत्यंत सरल लेकिन सटीक उपाय बताया है। वे कहते थे कि घर को विविध फूलों वाले एक बगीचे की तरह संभालना चाहिए। जैसे हरएक फूल के अलग-अलग आकार, माप, सुगंध, रंग और दूसरे गुण होते हैं उसी तरह घर के हर सदस्य का भी अलग व्यक्तित्व होता है।

बच्चों और टीनएजर्स को उनके व्यक्तित्व यानी उनके स्वभाव के अनुसार खिलने देना चाहिए। हमें बच्चों को जैसे हैं वैसे ही स्वीकार कर, उनके व्यक्तित्व के साथ इस तरह एडजस्ट होना चाहिए कि जिससे उन पर बदलने का दबाव डाले बगैर उनके साथ व्यवहार कर सकें। जब ऐसा होगा तब सारे मतभेद अपने आप दूर हो जाएँगे।

हमेशा याद रखें

टीनएजर्स को कुछ समय के बाद अपनी गलतियों से खुद ही सीखना पड़ेगा। यदि हम एक सिंगल पेरेंट के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी सही तरीके से निभाएँगे, तो हम भी उन्हें संघर्ष के समय में मार्गदर्शन दे सकेंगे।

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