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बच्चों के सामने माता-पिता का व्यवहार कैसा होना चाहिए?

माता पिता को एक होकर रहना – एक उत्तम कला है

दो मन हमेशा एकमत नहीं हो सकते। इस कारण माता-पिता के विचारों में अंतर होता है - एक सख्त होता है तो एक नर्म (सौम्य)। जो सख्त है उसे ऐसा लगता है कि दूसरा उदार है और जो नर्म है उसे लगता है कि सामने वाला बहुत सख्त और निर्दय है। माता-पिता के बीच झगड़े और मतभेद का यही कारण है। माता-पिता को समझना चाहिए कि बच्चों के सामने झगड़ने या बहस करने से बच्चों पर उसका बुरा असर होता है।

यहाँ माता पिता को एक होकर रहने की टीप्स (सुझाव) दी गई हैं, जो माता पिता के तौर पर अच्छी कलाएँ विकसित करने में मददरूप होंगी।

  • बच्चों के संतुलित विकास के लिए सख्ती और प्रेम दोनों की आवश्यक्ता होती है। सख्त दृष्टिकोण रखने वाले माता पिता बच्चों को अनुशासन सिखाते हैं, तो दूसरी तरफ सौम्य दृष्टिकोण रखने वाले पालक बच्चों को स्वतंत्रता की कीमत करना समझातें हैं। जिस तरह संतुलित भोजन में नमक और मीठे दोनों की जरूरत होती है उसी तरह संतुलित विकास के लिए सख्ती और नर्मी दोनों की जरूरत है। जब बच्चें किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करते हैं तब उनमें उस स्थिति से निपटने तथा एडजस्ट होने की क्षमता बढ़ जाती है।
  • बच्चों के सामने कभी भी अपने जीवन-साथी के बारे में कोई नेगेटिव बात ना करें। यह अच्छे माता-पिता के महत्वपूर्ण गुणों में से एक है। बच्चे के सामने ‘एक’ होकर रहने से उनका पालन पोषण अच्छी तरह से हो सकता है! यदि अनजाने में आपने ऐसा कह भी दिया तो जब आपका बच्चा उसकी नकल करे तब उस पर ध्यान (पॉज़िटिव या नेगेटिव) न दें। उसे नजर अंदाज करने से वह इसे दोहरायेगा नहीं।
  • आप और आपके जीवन-साथी एक-दूसरे के मित्र हैं प्रतिस्पर्धी नहीं। एक दूसरे के पूरक बने। जब एक झुंझलाया हो तब बच्चे को संभालने में दूसरा उसकी मदद करे।
  • एक समय में माता-पिता, दोनों में से किसी एक को परिस्थिति संभालनी चाहिए। जब एक कोई बात कहे तो दूसरे को पॉज़िटिव रहकर उसका साथ देना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि माता –पिता में से कोई एक सख्त हो तो दूसरे को यह सोचना चाहिए कि सख्ती से बच्चा निडर बनेगा। दोनों आपस में पहले या बाद में इस बारे में चर्चा कर सकते हैं।
  • आपस में अपने डिपार्टमेन्ट बाँट दें जैसे कि, मम्मी खाने-पीने से संबंधित मामलों में बोलें और पापा पढ़ाई के। माता-पिता दोनों के बीच एकता लगनी चाहिए। ‘बच्चों के सामने एक होकर रहना’ यह उत्तम पेरेंटिंग कला को विकसित करने का एक आसान तरीका है। नहीं तो बच्चा आपके मतभेद का फायदा उठाएगा, और होगा यह कि माता-पिता बहस करते रह जाएँगे और बच्चा आराम से अपनी मनमानी करेगा। इसमें सभी का नुकसान है। जब बच्चे माता-पिता को झगड़ते हुए देखते हैं, तो उनमें किसी एक के प्रति नकारत्मक सोच आ जाती है।
  • जब माता-पिता में से कोई एक बच्चे को डाँट रहा हो तब यदि दूसरा उसका बचाव करता है, तो बच्चे के सुधरने की उम्मीद कम हो जाती है। जो उसका पक्ष लेता है उसके प्रति बच्चे को लगाव हो जाता है। जो उसे डिसिप्लिन में रखना चाहता है उसे वह विरोधी मानता है और बड़े होने पर उनकी अवहेलना करता है।

माता-पिता और बच्चों के बीच हर कदम पर एडजस्टमेन्ट होता है। यदि हम समझपूर्वक एडजेस्टमेन्ट लेंगे तो शांति रहेगी। आइए दादाश्री द्वारा बताई गई एडस्ट होने की कला जानते हैं।

बच्चों के सामने माता-पिता को एकमत होना चाहिए। बच्चों के सामने झगड़ा ना करें।

प्रश्नकर्ता : पति और पत्नी के झगड़ो का बच्चों पर क्या असर होता है?

दादाश्री : अहोहो ! बहुत बुरा असर होता है। इतना सा बालक हो वह भी ऐसे देखते रहता है तो फिर मन में गाँठ बाँध लेता हैं। जब वे घर में इस तरह का झगड़ा देखते हैं, तो मन में गाँठ बाँध (नोंध कर) लेते हैं। फिर जब वे बड़े हो जाएंगे, तो वे अपना बदला लेते हैं! इसका हल यह है कि अच्छे सुसंस्कृत तरीके से बच्चों की परवरीश करना । ऐसे काम मत करो जो बच्चों को पसंद नहीं हो। अपने बच्चों से पूछिए, “क्या आपको अच्छा लगता है जब हम दोनों झगड़ते हैं ?” वे कहेंगे, “हमें यह पसंद नहीं है।” तो आपको बंद कर देना चाहिए। जब बच्चे संस्कारी(अच्छे) माता-पिता को देखेंगे तो वे भी वैसे बनेंगे। उन्हें यह सिखाने की जरूरत नहीं होती। वे अच्छे संस्कारों को देखकर अच्छे संस्कार सिखते हैं। आपका आचरण ऐसा होना चाहिए कि आपके बच्चे को आप में कुछ भी गलत ना लगे। आपके बच्चों में अच्छे संस्कार होने चाहिए। इसलिए अपने जीवन को थोड़ा सुधारो, कुछ ऐसा करो कि आपके बच्चे सुधर जाए। यदि आप दृढ़ निश्चय करोगे तो यह जरूर होगा। दृढ़ निश्चय हो तो कुछ भी असंभव नहीं है।

ऐसा नियम बनाओ: घर में झगड़ा नहीं होना चाहिए, यह उत्तम पेरेंटिंग कला की कुंजी है

यदि झगड़ा करना हो तो बाहर जाकर कर आना चाहिए। ऐसा नियम बनाना। किसी दिन लड़ने का शौक हो जाए तब उस दिन बगीचे मे जाकर खूब लड़कर घर आना चाहिए।

प्रश्नकर्ता : लेकिन कलह खड़ा होने का कारण क्या है, क्या स्वभाव नहीं मिलता, इसलिए?

दादाश्री : अज्ञानता है इसलिए। संसार वही है जहाँ किसी का किसी से स्वभाव मिलता ही नहीं। यह ‘ज्ञान’ मिले उसका एक ही रास्ता है, ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’। कोई तुझे मारे फिर भी तुझे उसके साथ ‘एडजस्ट’ हो जाना है।

सबसे बड़ा दु:ख किसका है? ‘डिसएडजस्टमेन्ट’ का, वहाँ एडजस्ट एवरीव्हेर करें, तो क्या हर्ज है।

प्रश्नकर्ता : उसमें तो पुरुषार्थ चाहिए।

दादाश्री : कुछ भी पुरुषार्थ नहीं, मेरी आज्ञा पालनी है कि ‘दादा’ ने कहा है कि ‘एडजस्ट एवरीव्हेर।’ तो एडजस्ट होता रहेगा। बीवी कहे कि ‘आप चोर हो।’ तो कहना कि ‘यु आर करेक्ट।’ (आप सही हो) और थोड़ी देर बाद वह कहे कि ‘नहीं, आपने चोरी नहीं की है।’ तब भी, ‘यु आर करेक्ट,’ कहना।

जो काम जल्दी पूरा करना हो उसे क्या करना पड़ता है? एडजस्ट होकर छोटा कर देना चाहिए, नहीं तो खिंचता ही जाएगा या नहीं खिंचेगा? बीवी के साथ झगड़ा करें तो क्या रात को नींद आएगी? और सुबह नाश्ता भी अच्छा नहीं मिलेगा।

चीकनी मिट्टी आए और आप फिसल जाएँ उसमें भूल आपकी है, चीकनी मिट्टी तो निमित्त है। आपको निमित्त को समझकर अंदर उँगलियाँ गड़ा देनी पड़ेंगी। चीकनी मिट्टी तो होती ही है, और फिसला देना, वह तो उसका स्वभाव ही है।

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