कई बार अपने जीवन साथी के साथ व्यवहार करते समय हम जाने अंजाने उन्हें दुःख दे देते हैं। हमारी इच्छा नहीं होती फिर भी अपने वाणी, विचार, व्यवहार से उन्हें दुःख दे देते हैं। और शादीसुदा जीवन पर इसका नकारात्मक असर होता है। यह इसलिए होता है क्योंकि उन्हें किसी भी प्रकार से दुःख पहुँचा है। क्या आप जानते हैं कि आप अपने शादीसुदा जीवन को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं? क्या ऐसा कोई तरीक़ा है जिससे आप अपने जीवन साथी के दुःख को मिटा सकते हैं? हाँ! प्रतिक्रमण करके दिल से क्षमा माँगकर।
परम पूज्य दादाश्री ने प्रतिक्रमण करने के पीछे का विज्ञान खुला किया है। उनके साथ हुए सत्संग के कुछ अंश नीचे दिए गए हैं।
प्रतिक्रमण एक साधन है जिसके द्वारा किसी को दिए गए दुःख की या विवाहित जीवन में हुई घटनाओं की भी मांगी जा सकती है। यूँकि आप अपना वर्तन तुरंत नहीं बदल सकते, आप क्षमा माँगते हैं। और इससे आपके व्यवहार में अपने आप ही बदलाव आएगा। यह वैज्ञानिक रास्ता है क्योंकि क्षमा माँगने से आप अपने व्यवहार को रक्षण नहीं कर रहे इसलिए वह व्यवहार धीरे-धीरे बंद हो जाएगा। धीरे-धीरे आप संबंधों में सुमेल होता अनुभव करोगे।
प्रश्नकर्ता : वह पश्चाताप कैसे करूँ? सब के सामने करूँ या मन में करूँ?
दादाश्री : मन में। मन में दादा को याद करके कि ‘यह मुझसे भूल हो गई है अब फिर से नहीं करूँगा’, ऐसा मन में याद करके करना चाहिए। फिर ऐसे करते-करते वह सब दु:ख भूल जाते हैं। वह भूल खत्म हो जाती है लेकिन यदि ऐसा नहीं करेंगे तो फिर भूलें बढ़ती जाएँगी। यह मैंने आपको जो हथियार दिया है, यह प्रतिक्रमण, वह बड़ा हथियार दिया है क्योंकि पूरे संसार का अंत लाने का सब से बड़ा हथियार यही है। अतिक्रमण से जगत् खड़ा हुआ है और प्रतिक्रमण से जगत् का विलय हो जाता है। बस यही है। अतिक्रमण हुआ यानी दोष हुआ। वह आपको पता चला तो दोष को ‘शूट ऑन साइट’ करना चाहिए। दोष दिखा कि ‘शूट करो’। यह एक ही मार्ग ऐसा है कि खुद के दोष दिखते जाते हैं और शूट होते जाते हैं, ऐसे करते-करते दोष खत्म होते जाते हैं।
मन-वचन काया से किसी को दुःख दिया गया हो तो उस भूल का प्रतिक्रमण करना है। यदि भूल नहीं हुई है तो प्रतिक्रमण करने की जरूरत नहीं है। वह हिसाब पूरा हुआ और ऐसा कुछ हुआ ही नहीं तो कोई हर्ज़ नहीं है। जैसे-जैसे प्रतिक्रमण होते जाएँगे वैसे-वैसे उस व्यक्ति के साथ आपका व्यवहार सरल होता जाएगा। फिर उसके साथ सम्बंध बिल्कुल साफ़ हो जाएगा। नीचे कुछ घटनाएँ दी गई हैं जिनके लिए हमें प्रतिक्रमण करने चाहिए।
किसी के लिए ज़रा भी उल्टा-सीधा विचार आए तो तुरंत उसे धो डालना। यदि वह विचार थोड़ी ही देर टिक जाए न, तो वह सामने वाले तक पहुँच जाता है और फिर उगता है। चार घंटे बाद, बारह घंटे बाद या दो दिन बाद भी वह उगता है, इसलिए स्पंदन का बहाव उस तरफ नहीं जाना चाहिए।
यदि इस दीवार के लिए उल्टे विचार ए तो हर्ज़ नहीं है क्योंकि इसमें एक तरफ नुकसान है। जबकि जीवित के लिए एक भी उल्टा विचार आया तो जोखिम है। दोनों तरफ से नुकसान होता है। लेकिन यदि हम उसका प्रतिक्रमण करेंगे तो सारे दोष खत्म हो जाएँगे। अतः जहाँ-जहाँ घर्षण होता है, वहाँ उसके प्रतिक्रमण करो, जिससे घर्षण खत्म हो जाएँ।
जब आपका अपने जीवन साथी के साथ टकराव हो जाता है तब आप उससे बात नहीं करना चाहते, अरे उसका चेहरा भी नहीं देखना चाहते। ऐसी परिस्थिति में परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, “उसका प्रतिक्रमण करना है और उसके प्रति भाव रखना है! यदि फिर से टकराव हो जाए तो फिर से प्रतिक्रमण करना है। क्योंकि कितने ही परतों वाले कर्म हैं। एक बार प्रतिक्रमण करने पर एक परत हटेगी।” प्रतिक्रमण करने के बाद भी टकराव होता है इसका यह मतलब नहीं है कि प्रतिक्रमण काम नहीं कर रहा। हर प्रतिक्रमण के साथ कर्म की एक परत हटती है, जब की हम बहुत सारे कर्म लेकर आए हैं, इसलिए आपको बार बार प्रतिक्रमण करते रहना है।
यदि आपकी किसी व्यक्ति के साथ नहीं बनती, तो कई दिनों तक उसके खूब प्रतिक्रमण करने पर आपके संबंधों में सुधार आयेगा और वह सामने चलकर आपके पास आयेगा। हमारी भूलों के कारण टकराव होते हैं।
यदि आपने अपने जीवन साथी को अवर्णनीय दुःख दिया हो, इस हद तक परेशान किया हो कि आप उनके दुःख को दूर नहीं कर सकते, तो प्रतिक्रमण इसमें मदद करेगा। आपको उनके नाम से प्रतिक्रमण करना है। जितनी तीव्रता से दुःख दिया है, उतनी ही तीव्रता से प्रतिक्रमण करने हैं।
परम पूज्य दादाश्री ने प्रतिक्रमण के अनगिनत फ़ायदे बताए हैं; चलिए देखते हैं कि इस शक्तिशाली हथियार का उपयोग हम अपने संबंधों को सुधारने में किस प्रकार कर सकते हैं:
पिछले जन्म में जो भी टकराव, क्लेश या बैर भाव किया हो, वह इस जन्म में झगड़े या मतभेद के रूप में आता है। टकराव से बैर का बीज डलता है जो अगले जन्म में उगता है। तो इसे किस प्रकार रोका जा सकता है? धीरे-धीरे सभी समस्याओं का समभाव से निकाल करने से नए बीज डलना बंद हो सकता है। यदि कर्म बीज बहुत भारी है तो बहुत धीरज से काम लेना होगा क्योंकि इसे पूर्ण रूप से नष्ट होने में समय लगेगा। आपको बहुत प्रतिक्रमण करने पड़ेंगे।
प्रतिक्रमण करने से भूल का बीज, उसका रूट-कॉज नष्ट होता है। यह किस प्रकार होता है? प्रतिक्रमण की विधि करने से; जिसमें आलोचना (दोष याद करना), प्रतिक्रमण (उस पर पश्चाताप करना), और प्रत्याख्यान (फिर से वह दोष कभी भी) नहीं करने का निश्चय करना आ जाता है। तप करने से पुण्य इकठ्ठा होता है पर रूट- कॉज नष्ट होने से परिणाम यह आता है कि कर्म बँधन से मुक्त हो सकता हैं।‘समभाव से निकाल का नियम क्या है? वह यह है कि सामने वाले व्यक्ति के सात बैर न बँधे इसका हर प्रकार से ध्यान रखना है। इस तरह से बैर से छूटा जा सकता है।
प्रश्नकर्ता : समभाव से निकाल किस प्रकार करना है? मन में भाव करना है कि यह पिछले जन्म का हिसाब आया है?
दादाश्री : सिर्फ इसी से निकाल नहीं होगा। समभाव से निकाल करना यानी सामने वाले व्यक्ति के आत्मा को फोन करना पड़ता है, उसके आत्मा को बताना पड़ता है। उस आत्मा के पास, आपने भूल की है ऐसा एक्सेप्ट करना पड़ता है। खूब पछतावा करना पड़ता है और माफी माँगनी पड़ती है।
प्रश्नकर्ता : यदि कोई मेरा अपमान करता है फिर भी क्या मुझे प्रतिक्रमण (दादाश्री के कहने के अनुसार आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान) करना है?
दादाश्री : जब वह आपका अपमान करे तब प्रतिक्रमण करना है, आपकी प्रशंसा करे तब नहीं करना। जब प्रतिक्रमण करने से आपको उसके प्रति द्वेष भाव नहीं होगा। उपर से सामने वाले पर पोज़िटिव असर पड़ेगा। हमें द्वेष भाव नहीं होते वह पहला स्टेप है। बाद में उस पर भी प्रतिक्रमण का पोज़िटिव असर पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : क्या यह उसके आत्मा को पहुँचता है?
दादाश्री : हाँ ज़रूर। फिर वह आत्मा उसके पुदगल(भौतिक शरीर; विचार, वाणी, वर्तन बना हुआ) तक पहुँचा देता है कि 'आपके लिए फोन है!’ हमारा यह प्रतिक्रमण है वह अतिक्रमण के उपर करना है।
प्रश्नकर्ता : पूर्व जन्म के ऋणानुबंध से छूटने के लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री: हमें जिसके साथ पूर्व का ऋणानुंबंध हो और वह हमें पसंद ही न हो, उसके साथ रहना ही पसंद न हो और फिर भी अनिवार्य रूप से सहवास में रहना पड़ता हो, तो क्या करना चाहिए ? बाहर का व्यवहार उसके साथ रखना चाहिए, लेकिन अंदर उसके नाम के प्रतिक्रमण करने चाहिए। क्योंकि हमने पिछले जन्म में अतिक्रमण किया था, यह उसका परिणाम है। कॉज़ेज़ क्या किए थे? तो उसके साथ पूर्व जन्म में अतिक्रमण किया था। उस अतिक्रमण का इस जन्म में फल आया। यानी उसका प्रतिक्रण करेंगे तो प्लस-माइनस (जोड़ना-घटाना) हो जाएगा। अतः आप अंदर उसके लिए माफी माँग लो। माफी माँगते रहो कि ‘मैंने जो-जो दोष किए है, उसके लिए माफी माँगता हूँ।’ किसी भी भगवान की साक्षी में माफी माँग लो, तो सब खत्म हो जाएगा। नहीं तो उसको बहुत दोषित देखने से फिर क्या होता? यदि पत्नी अपने पति को दोषित ही देखती रहती है, तो इससे तिरस्कार होता है इसलिए भय लगता है। हमें जिसके प्रति तिरस्कार हो न उसका हमें भय लगता है। उसे देखते ही घबराहट होती है, यानी जानना है कि ‘यह तिरस्कार है।’ अतः तिरस्कार छोड़ने के लिए माफी माँगते रहो, दो ही दिन में वह तिरस्कार बंद हो जाएगा। वह नहीं जानता लेकिन आप अंदर माफी माँगते रहो, जिसके प्रति जो-जो दोष किए हों, उसके नाम की, कि ‘हे भगवान! मैं क्षमा माँगता हूँ,’ यह दोषों का परिणाम है। आपने किसी भी व्यक्ति के प्रति जो-जो दोष किए हों, उसके लिए उसके भीतर बैठे भगवान से आप माफी माँगते रहो, तो सब धुल जाता है।
१) यदि आपको मतभेद पड़ता है, वह आपकी कमज़ोरी है। लोग गलत नहीं हैं। कोई जानबूझकर करता ही नहीं। हमें तो माफी माँग लेनी है कि हमारी भूल है।
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