परम पूज्य दादाश्री और उनकी धर्मपत्नी हीराबा का वैवाहिक जीवन संपूर्ण शांतिमय, परस्पर आदर और विनयवाला था। उनका वर्तन और व्यवहार प्रेममय था। उनके परिजन और मित्र उनके बीच की परस्पर एकता और प्रेम को देखते रह जाते। उदाहरण के तौर पर, हीराबा रोज़ सब्जी लेने बाज़ार जाते, तब परम पूज्य दादाश्री से पूछते कि ‘ क्या सब्जी लाऊँ?’ और दादाश्री कहते, ‘जो ठीक लगे वह।’ इस तरह दोनों अपना-अपना कर्त्तव्य निभाते। दादाश्री से पूछने का यह रिवाज, हीराबा ने अंत तक पूरी ईमानदारी से निभाया।
वे प्रत्येक व्यवहार सिन्सियारिटी से पूरा करते। उनके व्यवहार में किसी संयोग या किसी व्यक्ति के कारण कोई बदलाव नहीं आता। एक दूसरे के प्रति पूज्य भाव और समझदारी पूर्ण व्यवहार जीवनभर रहा। उनके बीच की विनम्रता, दिखावटी एवं अभिनित नहीं थी बल्कि वैचारिक और समझदारीपूर्वक थी।
ऊपर प्रसंग, परम पूज्य दादाश्री के आदर्श और सुखी वैवाहिक जीवन का सिर्फ एक उदाहरण है। उनके द्वारा नीचे दिए गए टीप्स (चाबियों) का उपयोग करके आप भी अपना वैवाहिक जीवन सुखी बना सकते हैं और वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने के उपाय क्या हैं वह भी प्राप्त कर सकते हैं।
यह सुखी वैवाहिक जीवन के उपाय में से सबसे बढ़िया उपाय है। सच्ची मित्रता में कभी भेद नहीं पड़ता। जिस तरह आपके और आपके मित्र के बीच किसी को आने नहीं देते, उसी तरह पति-पत्नी के बीच भी वैसा ही आदर्श व्यवहार होना चाहिए। यदि आप अपने मित्र का ध्यान नहीं रखेंगे तो आपकी मित्रता लंबे समय तक नहीं टिक सकेगी। दोस्ती का मतलब दोस्ती होता है । पति-पत्नी को मित्र के समान माना गया है। इसीलिए उन दोनों को, दो मित्रों की तरह उनके घर को चलाना चाहिए। पति-पत्नी के बीच व्यवहार में शांति होना चाहिए। यदि इस रिश्ते में दोनों में से किसी एक को भी दुःख हो तो उसे आदर्श पति-पत्नी का संबंध नहीं माना जा सकता। यदि मित्र इस बात का ध्यान रखते हैं कि एक दूसरे को दुःख न दें, तो क्या पति-पत्नी को इस बात का ध्यान नहीं रखना चाहिए? पति-पत्नि के बीच मित्रता, यही सर्वश्रेष्ठ मित्रता है।
यह वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने के उपाय में से सबसे आसान उपाय है। यदि आपकी पत्नी आपसे नाराज हो जाए, तो कुछ पल रुककर फिर उनसे कहो, “आप मुझे चाहे कुछ भी कह दो या मुझसे चाहे कितना भी नाराज़ हो जाओ, पर जब आप नहीं होती, तो मुझे आपकी बहुत कमी महसूस होती है।” पत्नी से कहना कि आपको उनके बिना अच्छा नहीं लगता। बस इस तरह आगे बढ़ों और यह “गुरुमंत्र” कहो। (ऐसे शब्द जो परिणामकारक हों) सुखी वैवाहिक जीवन जीने के लिए आपको अपनी पत्नी के साथ प्रेम और प्रशंसा युक्त व्यवहार करना आवश्यक है। ऐसा करने में हर्ज़ ही क्या है? भले ही आप अपनी भावनाएँ अपने तक सीमित रखें लेकिन कुछ व्यक्त करते हुए ऐसा कहें कि, मुझे आपसे दूर जाना अच्छा नहीं लगता।
किसी भी जीव मात्र को किंचितमात्र भी दुःख न हो ये अंतिम दशा का ज्ञान है। विरोधी भी शांत पड़ जाएगा और कहेगा, “हमारे बीच मतभेद है लेकिन साथ ही साथ मेरे मन में आपके प्रति उतना ही आदर भी है।” हालाँकि, विरोधी हमेशा रहेगा। सभी का दृष्टिकोण एक समान नहीं होता। सभी के विचार एक समान नहीं हो सकते। घर में, आपका व्यवहार सामंजस्यपूर्ण होना चाहिए। आपकी पत्नी को ऐसा लगना चाहिए कि आपके जैसा पति उसे नहीं मिल सकता और आपको ऐसा लगना चाहिए कि इसके जैसी पत्नी आपको नहीं मिल सकती, जब ऐसा होगा तभी आपका वैवाहिक जीवन सार्थक कहलाएगा।
यह वैवाहिक जीवन में कलह को दूर करने के उपाय में से सबसे चतुर उपाय है। जिस प्रकार नौकरी में आपके उत्तरदायित्व की रुपरेखा निश्चित होती है, उसी प्रकार वैवाहिक जीवन में अपनी जिम्मेदारियों की रुपरेखा भी आपके पास होनी चाहिए। एक बार यह स्पष्ट हो जाए कि किसके डिपार्टमेन्ट में क्या आता है, उसके बाद आपको दूसरे के डिपार्टमेन्ट में दखल नहीं करनी चाहिए। पुरुष को स्त्री के काम में और स्त्री को पुरुष के काम में दखल नहीं करनी चाहिए। दोनों को अपने-अपने डिपार्टमेन्ट में ही रहना चाहिए। हालाँकि यदि आपको लगे कि आपके जीवनसाथी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में नहीं पहुँच पा रहे हैं तो फिर अवश्य ही आपको उनकी मदद करनी चाहिए। तभी आप अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बना पाएँगे।
यह सुखी वैवाहिक जीवन के उपाय में से सबसे आवश्यक उपाय है। अपने जीवनसाथी के अलावा किसी दूसरे के साथ आपका शारीरिक संपर्क या संबंध नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ा जोखिम यदि कोई है, तो वह है किसी और के जीवनसाथी से सुख लेना! अपने पति या पत्नी से सुख लेने में कोई हर्ज़ नहीं है। तभी कहा जा सकेगा कि आप अपने जीवनसाथी के प्रति सिन्सियर हो।
एक बार एक पति ने परम पूज्य दादाश्री से शिकायत की कि उनकी पत्नी उनके माता-पिता के साथ रहना नहीं चाहती और उन्हें अपने घर बुलाना भी नहीं चाहती। परम पूज्य दादाश्री ने उनके बीच समाधान करवाया और उनका संबंध बना रहे ऐसा मार्गदर्शन दिया। दादाश्री ने उन्हें सलाह दी कि वे अपनी पत्नी के माता-पिता को आमंत्रित करें और उनका ध्यान रखें। अपनी पत्नी के साथ अपने संबंध में इस तरह सांमजस्य रखें कि वह खुद ही आपके माता-पिता की देखभाल करने के ले कहे।
ज्ञानी पुरुष, हम सभी को, मतभेद के कारण संबंध न टूटे इसके लिए चाबी देते हुए कहते हैं कि, “ हम सब एक समान ही हैं, हमारे बीच कोई भेद नहीं है।” यह वाक्य हर रोज सुबह पाँच बार बोलें, जिससे एक दिन ऐसा आएगा जब आपका किसी भी व्यक्ति के साथ किंचितमात्र मतभेद नहीं रहेगा।
निम्न अवतरण, परम पूज्य दादाश्री के साथ हुए सत्संग में से लिए गए हैं।
१) दादाश्री : मत ही नहीं रखना चाहिए। अरे! दोनों ने शादी की फिर मत अलग कैसा? दोनों ने शादी की, फिर भी मत अलग रखते होंगे?
प्रश्नकर्ता : नहीं रखना चाहिए, मगर रहता है।
दादाश्री : वह आप छोड़ देना। अलग मत रखा जाता होगा? वर्ना शादी नहीं करनी थी। शादी की है तो एक हो जाओ।
२) प्रश्नकर्ता: ऐसे मतभेद बंद करने के लिए आप कौन सा रास्ता बताते हैं?
दादाश्री : मैं तो यही रास्ता बताता हूँ कि, ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’। वह कहे कि, ‘खिचड़ी बनानी है’, तो आप ‘एडजस्ट’ हो जाना। और आप कहो कि, ‘नहीं, अभी हमें बाहर जाना है, सत्संग में जाना है’, तो उसे ‘एडजस्ट’ हो जाना चाहिए। जो पहले बोले, उसके साथ एडजस्ट हो जाओ।
दादाश्रीः औरंगाबाद में एक मुस्लिम लड़की आई थी। मैंने पूछा, ‘क्या नाम है तुम्हारा?’ तब कहती हैं, ‘दादाजी, मेरा नाम मशरूर है’। मैंने कहा, ‘आ, यहाँ बैठ मेरे पास, क्यों आई हैं तू?’ वह आई। यहाँ आने पर उसे अच्छा लगा। अंतर में ठंडक हुई कि ये खुदा के असिस्टेन्ट (सहायकर्ता) जैसे तो लग ही रहे हैं, ऐसा लगा तो फिर बैठ गई। बाद में दूसरी बातें निकली। फिर मैंने पूछा, ‘क्या करती है तू?’ उसने कहा, ‘मैं लेक्चरर (व्याख्याता) हूँ’। तब मैंने पूछा, ‘शादी-वादी की या नहीं की?’ तो कहा, ‘नहीं, शादी नहीं की, लेकिन मँगनी हुई है’। मैंने कहा, ‘कहाँ हुई है, मुंबई में?’ तो कहा, ‘नहीं, पाकिस्तान में’। ‘कब करने वाली हो?’ तब कहे, ‘छ: महीने में ही’। मैंने कहा, ‘किसके साथ? पति कैसा खोज निकाला है?’ तो कहा, ‘लॉयर है’। बाद में मैंने पूछा कि, ‘वह पति बनकर तुझे कुछ दु:ख नहीं देगा? अभी तुझे किसी प्रकार का दु:ख नहीं है और पति पाने जाएगी और पति दु:ख देगा तो?’ मैंने कहा, ‘उसके साथ शादी करने के बाद तेरी क्या योजना है? उसके साथ शादी होने से पहले तेरी कुछ योजना होगी न कि उसके साथ कैसे व्यवहार करेगी या फिर योजना नहीं की है? वहाँ शादी के बाद क्या करना उसके लिए कुछ तैयारियाँ तूने की होंगी न, कि शादी के बाद उस लॉयर (वकील) के साथ तेरी जमेगी या नहीं?’ तब वह कहती है, ‘मैंने सब तैयारियाँ कर रखी हैं। वह ऐसे बोलेगा तो मैं ऐसा जवाब दूँगी। वह ऐसे कहेगा तो मैं ऐसा कहूँगी, वह ऐसा कहेगा तो, एक-एक बात के जवाब मेरे पास तैयार हैं’।
जितनी रशिया ने अमरीका के सामने युद्ध की तैयारियाँ कर डाली हैं न, उतनी तैयारियाँ कर रखी थीं। दोनों ओर से पूरी तैयारियाँ! वह तो मतभेद खड़ा करने की ही तैयारियाँ कर रखी थीं। वह झगड़ा करे, उससे पहले ही यह बम फोड़ दे! वह ऐसे सुलगाए तो हमें ऐसे सुलगाना। अत: वहाँ जाने से पहले ही हुल्लड़ करने को तैयार है न! वह इस तरफ तीर छोड़े, तब हमें उस ओर रोकेट छोड़ना। मैंने कहा, ‘यह तो तूने कोल्ड वॉर शुरू कर दिया। वह कब शांत होगा?’ कोल्ड वॉर बंद होता है? यह देखो न, बड़े साम्राज्य वालों का कहाँ बंद हो रहा है, रशिया-अमरीका का? ये लड़कियाँ ऐसा सब सोचती हैं, सारा प्रबंध कर दे इस तरह। ये लड़के तो बेचारे भोले! लड़के ऐसा सब नहीं करते और उस घड़ी मार खा जाते हैं, भोले हैं न! यह आप जो कहते हो न, प्रपंच के सामने क्या तैयारी करनी चाहिए? लेकिन उस लड़की ने सारी तैयारियाँ कर रखी थीं, बोम्बार्डिंग कब और कैसे करूँगी! वह ऐसा बोले तो अटेक, वैसे बोले तो ऐसे अटेक। ‘सभी तैयारियाँ कर रखी हैं कहती थी!’ फिर बीच में मैंने उसे कहा, ‘यह सब तुझे किसने सिखाया है? निकाल बाहर करेगा और तलाक दे देगा!’ तलाक दे देगा या नहीं देगा? मैंने कह दिया कि इस तरह तो छ: महीने में तलाक हो जाएगा, तुझे तलाक लेने हैं? यह तरीका गलत है। फिर मैंने उसे कहा, ‘तुझे तलाक नहीं दे, इसलिए मैं तुझे यह सब सिखा रहा हूँ।’ तो मुझसे कहती है, ‘दादाजी, ऐसा नहीं करूँ तो क्या करूँ? वर्ना तो वह मुझे दबा देगा’। मैंने कहा, ‘वह क्या दबाने वाला था? बेचारा लटटू! वह तुझे क्या दबाने वाला था?’ बाद में मैंने पूछा, ‘बहन, मेरा कहा मानोगी? तुझे सुखी होना है या दु:खी होना है? बाकी जो औरतें सब तैयारियाँ करके पति के पास गई थीं, वे अंत में दु:खी हुई हैं। तू मेरे कहने के मुताबिक जाना, किसी भी तैयारी के बगैर जाना’। फिर उसे समझाया। घर में हर रोज़ क्लेश होगा तो वकील कहेगा, ‘जाने दो, इससे तो अच्छा दूसरी लाऊँ’। उसमें फिर यह टिट फोर टैट (जैसे को तैसा) होगा। जहाँ प्रेम के सौदे करने हैं, वहाँ ऐसे सौदे क्यों करें?
प्रश्नकर्ता : प्रेम के।
दादाश्री : प्रेम के! भले आसक्ति से हो लेकिन कुछ प्रेम जैसा है न! उस पर द्वेष तो नहीं होता न! मैंने कहा, ‘ऐसा नहीं करते। तू पढ़ी-लिखी है इसलिए ऐसी तैयारियाँ कर रखी है? यह तो वॉर (लड़ाई) है? यह क्या हिंदुस्तान और पाकिस्तान की वॉर है? संसार में सभी यही कर रहे हैं। यें लड़के-लड़कियाँ सभी यही कर रहे हैं। फिर दोनों का जीवन नष्ट हो जाता है’। फिर उसे सब प्रकार से समझाया।
पति के साथ इस प्रकार बर्ताव करना चाहिए। इस प्रकार यानी वह टेढ़ा चले तो तू सीधी चलना। उसका समाधान होना चाहिए, हल निकालना चाहिए। वह झगड़ने की तैयार हो तब तू एकता रखना। वह अलगाव रखे फिर भी आप एकता रखना। वह बार बार अलग होने की बातें करे, उस हालत में भी तू कहना कि ‘हम एक हैं’। क्योंकि ये सब रिलेटिव संबंध हैं। वे रिश्ता तोड़ दें और तू भी तोड़ देगी तो टूट जाएगा कल सवेरे। अर्थात तलाक दे देगा।
तब पूछा, ‘मुझे क्या करना है?’ मैंने उसे समझाया, ‘उनका मूड देखकर व्यवहार करने को कहा, जब मूड में नहीं हो तब तू मन में ‘अल्लाह’ का नाम लेती रहना और मूड ठीक हो तब उनके साथ बातचीत शुरू करना। वह मूड में न हो और तू छेड़ेगी तो आग लग जाएगी’। तुझे उन्हें निर्दोष देखना है। वे तुझे उल्टा-सीधा कहें फिर भी तू शांत रहना। सच्चा प्रेम होना चाहिए। आसक्ति में तो छ:-बारह महीने में फिर टूट ही जाएगा। प्रेम में सहनशीलता होनी चाहिए, एडजस्टेबल (समाधानी) होना चाहिए। मशरूर को मैंने ऐसा पढ़ा दिया। मैंने कहा, ‘तू कुछ भी मत करना, जब वह इस ओर तीर चलाए तब अपनी स्थिरता रखकर ‘दादा, दादा’ करती रहना। फिर उस ओर तीर चलाए तब स्थिरता रखकर ‘दादा, दादा’ करना। तू एक भी तीर मत चलाना’। फिर मैंने विधि कर दी। बाद में पूछा कि ‘तेरे ससुराल में कौन-कौन हैं?’ तब कहा, ‘मेरी सास है’। मैने पूछा, ‘सास के साथ तू कैसे एडजस्टमेन्ट करेगी?’ तब कहने लगी, ‘उसका भी मैं सामना कर लूँगी’। फिर मैंने उसे समझाया। बाद में उसने कहा, ‘हाँ, दादाजी, मुझे ये सब बातें पसंद आई।’ ‘तू इस प्रकार करना तो तलाक नहीं देगा और सास के साथ मेल रहेगा।’ फिर उसने मुझे एक चंदन की माला पहनाई। मैंने कहा, ‘यह माला तू ले जाना और तेरे साथ रखना। माला के दर्शन करने के बाद पति के साथ अपना व्यवहार चलाना, तो बहुत सुंदर चलेगा। उसने वह माला आज भी अपने पास रखी हुई है।’ उससे चरित्रबल की बात कही थी कि ‘पति कुछ भी बोले, तुझे कुछ भी कहे, तब भी तू मौन धारण करके, शांत भाव से रहेगी, तो तुझ में चरित्रबल उत्पन्न होगा और उसका उस पर प्रभाव पड़ेगा। वकील हो तो भी। वह कैसे भी डाँटे, तब ‘दादा’ का नाम लेना और स्थिर रहना। उसके मन में होगा कि यह कैसी औरत है! यह तो हार ही नहीं मानती! बाद में वह हार जाएगा’। फिर उसने ऐसा ही किया, लड़की ही ऐसी थी। दादा जैसे सिखाने वाले मिल जाएँ तो फिर क्या बाकी रहेगा? वर्ना पहले एडजस्टमेन्ट ऐसा था, रशिया और अमरीका जैसा। वहाँ बटन दबाते ही सुलगे सब, सटासट। क्या यह मानवता है? किसलिए डरते हो? जीवन किसलिए होता है? जब संयोग ही ऐसे हैं, तब क्या करें फिर? वे जो जीतने की तैयारी करते हैं न, इससे चरित्रबल ‘लूज़’ (कमज़ोर) हो जाता है। हम ऐसी किसी प्रकार की तैयारी नहीं करते। चरित्र का उपयोग, जिसे आप तैयारी कहते हो, लेकिन उससे आप में जो चरित्रबल है वह ‘लूज़’ हो जाता है और अगर चरित्रबल खत्म हो जाएगा, तब तेरे पति के सामने तेरी कीमत ही नहीं रहेगी। इस तरह उस लड़की की समझ में अच्छी तरह बैठ गया। बाद में मुझसे कहा कि ‘दादाजी, अब मैं किसी दिन हारूँगी नहीं, ऐसी गारन्टी देती हूँ’। अपने साथ कोई प्रपंच करे और जवाब में हम भी वैसा ही करें तो हमारा चरित्रबल टूट जाएगा। कोई कितने भी प्रपंच करे लेकिन अपने प्रपंच से खुद ही उसमें फँस जाता है।
संदर्भः Book Name: माता-पिता और बच्चों का व्यवहार (Page # 90 Paragraph 4 &5, Entire Page #91,92,93, & Page #94 Paragraph 1to 3)
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