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टेढ़ी पत्नी/पति के साथ कैसा व्यवहार करें?

दादाश्री : हम तो इतना जानते हैं कि झगड़ने के बाद वाइफ के साथ व्यवहार ही नहीं रखना हो तो अलग बात है। परन्तु वापिस बोलना है तो फिर बीच की सारी ही भाषा गलत है हमें तो यह लक्ष्य में ही होता है कि दो घंटे बाद वापिस बोलना है, इसलिए उसके साथ कच-कच नहीं करें। यह तो, आपको अभिप्राय वापिस बदलना नहीं हो तो अलग बात है। अभिप्राय अपना बदले नहीं तो अपना किया हुआ खरा है। वापिस यदि वाइफ के साथ बैठनेवाले ही न हों तो झगड़े वह ठीक है। पर यह तो कल वापिस साथ में बैठकर भोजन करनेवाले हो, तो फिर कल नाटक किया उसका क्या? वह विचार करना पड़ेगा न? ये लोग तिल सेक-सेककर बोते हैं, इसलिए सारी मेहनत बेकार जाती है। झगड़े हो रहे हों तब लक्ष्य में होना चाहिए कि ये कर्म नाच नचा रहे हैं। फिर उस 'नाच' का ज्ञानपूर्वक हल लाना चाहिए।

प्रश्नकर्ता : दादा, यह तो झगड़ा करनेवाले दोनों व्यक्तियों को समझना चाहिए न?

दादाश्री : ना, यह तो 'सब-सबकी सँभालो।' हम लोग सुधरें तो सामनेलावा सुधरता है। यह तो विचारणा है, और एक घड़ी बाद में साथ बैठना है तो कलह किसलिए? शादी की है तो कलह किसलिए? आप बीते कल को भुला चुके हों और हमें तो सारी की सारी वस्तु 'ज्ञान' में हाज़िर होती हैं। जब कि यह तो सद्विचारणा है और 'ज्ञान' न हो उसे भी काम आए। यह अज्ञान से मानता है कि वह चढ़ बैठेगी। कोई हमें पूछें तो हम कहें कि तू भी लट्टू और वह भी लट्टू तो किस तरह चढ़ बैठेगी? वह कोई उसके बस में है? वह तो 'व्यवस्थित' के बस में है और वाइफ चढ़कर कहाँ ऊपर बैठनेवाली है? आप ज़रा झुक जाओ तो उस बिचारी के मन में भी अरमान पूरा होगा कि अब पति मेरे काबू में है। यानी संतोष हो उसे।

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