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ज़रूरत पड़ने पर क्रोध करें, लेकिन ड्रामेटिक।

एक बैंक का मेनेजर कहने लगा, 'दादाजी मैंने तो कभी भी वाइफ को या बेटे को या बेटी को एक शब्द भी नहीं कहा है। चाहे कोई गलती करे, चाहे जो करते हों, लेकिन मैं बोलता नहीं हूँ।' वह समझा कि दादाजी मुझे अच्छी-सी पाघडी पहना देंगे ! वह कौन-सी आशा रखता था, समझे न? और मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया कि आपको किसने बैंक का मेनेजर बनाया? आपको बेटे-बेटी को संभालना नहीं आता और पत्नी को संभालना नहीं आता! तब वो तो घबरा गया बेचारा। लेकिन मैंने उनसे कहा, आप अंतिम प्रकार के बेकार व्यक्ति हो। इस दुनिया में किसी काम के नहीं हो आप।' वो व्यक्ति मन में मानता था कि मैं ऐसा कहूँगा तो 'दादा' मुझे बड़ा इनाम देंगे। अरे, इसका इनाम होता है? बेटा उल्टा करता हो, तब हमें उसे 'क्यों ऐसा किया? अब मत करना' ऐसा नाटकीय बोलना है। नहीं तो बेटा ऐसा ही समझेगा कि हम जो कुछ भी करते हैं वो 'करेक्ट' (सच) ही है। क्योंकि पिताजी ने 'एक्सेप्ट' (स्वीकार) किया है। बोलो नहीं इसलिए तो घर के लोग बिगड गए हैं। बोलना सब है, लेकिन नाटकीय! बच्चों को रात को बिठाकर समझाना चाहिए, बातचीत करनी चाहिए। घर के सभी कोनों में से कचरा निकालना पड़ेगा न? बच्चों को थोडासा हिलाने (सावधान करने) कि ही जरुरत है। वैसे संस्कार तो होते हैं, लेकिन हिलाना पड़ता है। उनको हिलाने में कोई गुनाह नहीं है।

हर एक में 'नोर्मलिटी' ले आओ। एक आँख में प्रेम और एक आँख में सख्ती चाहिए। सख्ती से सामनेवाले को ज्यादा नुकसान नहीं होता, क्रोध करने से बहुत नुकसान होता है। सख्ती यानी क्रोध नहीं, लेकिन फूँकार। हम भी व्यापार करने जाते हैं, तब फूँकार मरते हैं, 'क्यों ऐसा करते हो? क्यों कम नहीं करते?' व्यवहार में जिस जगह जो भाव कि जरुरत होती है, वहाँ वह भाव उत्पन्न नहीं हुआ तो उससे व्यवहार बिगाड़ा कहते हैं।

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