जीवन में कई बार ऐसा समय आता है , जब टकराव खड़े होते हैं और हमें यह मालूम नहीं होता है कि उनसे कैसे निपटें। उस समय मन में सबसे पहला विचार मौन रहने का आता है क्योंकि उस समय कुछ भी कहने से परिस्थिति बिगड़ सकती है। लेकिन क्या यह टकराव से बचने का सही तरीका है ? आइए जाने की, परम पूज्य दादा भगवान इस सम्बन्ध में में क्या कहना चाहते हैं:
प्रश्नकर्ता : अबोला लेकर बात को टालने से उसका निकाल हो सकता है?
दादाश्री : नहीं हो सकता। हमें तो सामनेवााला मिले तो कैसे हो? कैसे नहीं? ऐसे कहना चाहिए। सामनेवाला ज़रा शोर मचाए तो हमें ज़रा धीरे से ‘समभाव से निकाल’ करना चाहिए। उसका निकाल तो करना ही पड़ेगा न, जब कभी भी? अबोला करने से क्या निकाल हो गया? वह निकाल नहीं होता, इसलिए तो अबोला खड़ा होता है। अबोला मतलब बोझा, जिसका निकाल नहीं हुआ उसका बोझा। हमें तो तुरन्त उसे खड़ा रखकर कहना चाहिए, ‘ठहरो न, मेरी कोई भूल हुई हो तो मुझे कहो, मेरी बहुत भूलें होती हैं। आप तो बहुत होशियार, पढ़े-लिखे इसलिए आपकी नहीं होती, पर मैं कम पढ़ा-लिखा हूँ इसलिए मेरी बहुत भूलें होती हैं, ऐसा कहें तो वह खुश हो जाएगा।’
प्रश्नकर्ता : ऐसा कहने पर भी वह नरम नहीं पड़ें तब क्या करें?
दादाश्री : नरम नहीं पड़े तो हमें क्या करना है? हमें तो कहकर छोड़ देना है। फिर क्या उपाय है? कभी न कभी तो नरम पड़ेंगे। डाँटकर नरम करो तो उससे कोई नरम होता नहीं है। आज नरम दिखेगा, पर वह मन में नोंध रखेगा और हम जब नरम हो जाएँगे, उस दिन वह सारा वापिस निकालेगा। यानी जगत् बैरवाला है। कुदरत का नियम ऐसा है कि हरएक जीव अंदर बैर रखता ही है। भीतर परमाणुओं का संग्रह करके रखते हैं। इसलिए हमें पूरा केस ही ख़ारिज कर देना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : हम सामनेवाले को अबोला तोड़ने के लिए कहें कि ‘मेरी भूल हो गई, अब माफ़ी माँगता हूँ’, तो भी वह अधिक अकड़ने लगे तो क्या करना चाहिए?
दादाश्री : तो हमें कहना बंद कर देना चाहिए। उसका स्वभाव टेढ़ा है ऐसा जानकर बंद कर देना चाहिए हमें। उसे ऐसा कुछ उल्टा ज्ञान हो गया होगा कि ‘बहुत नमे नादान’ वहाँ फिर दूर ही रहना चाहिए। फिर जो हिसाब हो, वह सही। परन्तु जितने लोग सरल हों न, वहाँ तो हल ले आना चाहिए। घर में कौन-कौन सरल है और कौन-कौन टेढ़ा है, हम वह नहीं समझते?
प्रश्नकर्ता : सामनेवाला सरल नहीं हो तो उसके साथ हमें व्यवहार तोड़ देना चाहिए?
दादाश्री : नहीं तोड़ना चाहिए। व्यवहार तोड़ने से टूटता नहीं है। व्यवहार तोड़ने से टूटे, ऐसा है भी नहीं। इसलिए हमें वहाँ मौन रहना चाहिए कि किसी दिन चिढ़ेगा तब अपना हिसाब पूरा हो जाएगा, हम मौन रखें तो किसी दिन वह चिढ़ेगा और खुद ही बोलेगा कि, ‘आप बोलते नहीं हो, कितने दिनों से चुपचाप फिरते हो!’ ऐसा चिढ़े, मतलब अपना हिसाब पूरा हो गया।
आप ऐसा सोच सकते हो कि अगर है कि यदि मै मौन रहा तो सामने वाला व्यक्ति भूल से, मेरी मौन को मेरी गलती मान सकता है और झगड़ा बढ़ा सकता है।हालाँकि, यह आपकी मान्यता है। यदि कोई व्यक्ति रात में उठकर बाथरूम जाता है और दीवार से टकरा जाता है , तो क्या इसका अर्थ यह है कि दीवार उस व्यक्ति से टकरा गई क्योंकि वह चुप था?
अगर इस दीवार में कुछ भी करने की शक्ति है, तब शरीर में भी है।क्या हमारे पास इस दीवार से लड़ने का अधिकार या शक्ति है? उसी तरह से, लोगों पर गुस्सा होना और लड़ने की क्या मतलब है? दूसरे व्यक्ति के पास भी निश्चित रूप से स्वतंत्र नियंत्रण या शक्ति नहीं है, इसलिए आप भी दीवार की तरह क्यों नहीं बन जाते हैं? जब आप अपनी पत्नी को डाँटते हैं, तो उसके भीतर का ईश्वर यह नोट करते है कि आप क्या कर रहे हैं। अगर वह आपको डाँटने लगे, तब आपको दीवार की तरह बन जाना चाहिए और आपके भीतर का ईश्वर आपकी मदद करेगा।
आपके ओर से, जब आप यह निर्णय लेते हैं और दृढ़ संकल्प करते हैं कि अब मुझे किसी के साथ घर्षण नहीं करना है ,यहीं से आपकी सही सोच की शुरुआत होती है। आगे चलकर यही निश्चय आपके सभी टकराव को खत्म करने में आपकी मदद करेगा। यह आपके भीतर उसी क्षण आंतरिक ज्ञान और आंतरिक दृष्टिकोण उत्पन्न करदेगा, जो आपको सभी टकरावों से मुक्ति की गारंटी देगा।
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