केवल एक शब्द को स्वीकार करे: ‘एडजस्ट एवरीव्हेर!’ एडजस्ट! एडजस्ट! एडजस्ट! घर में क्लेश नहीं होना चाहिए। जीवन की कठिन परिस्थितियों में एडजस्टमेंट से शांति बनी रहेगी।
एडजस्ट होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इस जीवन की प्रत्येक अवस्था क्षणिक है, आखिरमें इसका अंत भी निश्चित है। यदि यह लंबे समय तक चलता रहे तो और आप एडजस्ट न हुए तो आप स्वयं को और अपने जीवन-साथी को भी दुःख पहुंचा रहे है।
अगर हम प्रत्येक परिस्थिति में सामनेवाले व्यक्ति के साथ एडजस्ट हो जाये , जो जीवन कितना सुन्दर हो जाये ! अंत में, हमे मृत्यु के बाद क्या साथ में लेकर जाना है ? कोई कहेगा, की भाई "अपनी पत्नी को सीधा कर दो " लकिन उसे सीधा करने जाओगे तो खुद टेढ़ा हो जाओगे ! अपनी पत्नी को सीधी करने मत बैठना, वह जैसी भी है उसे स्वीकार करना। उनके साथ आपका जन्मोजन्म का संबंध हो तो अलग बात है, पर यह किसे पता है कि अगले जन्म वे कहा जाएँगी। दोनों के मृत्यु, कर्म अलग अलग। कुछ लेना भी नहीं , कुछ देना भी नहीं। यंहा से वह किसके पास जाएगी , क्या ठिकाना। आप उसे सीधी करो और अगले जन्म में जाएगी किसी और के हिस्से में।
इसलिए न तो आप उन्हें सुधारे, ना ही वह आप को। जैसा भी आपको मिला है, वह सोना है, यही मानकर चलिए। चाहे आप कितना भी प्रयास करें किसी को सुधारने का, लेकिन आप किसी की जन्मजात प्रकृति और स्वभाव को नहीं सुधार सकते। हम कितना भी प्रयास करें कुत्ते की पूँछ को सीधां करने का लेकिन कुत्ते की पूँछ टेढ़ी की टेढ़ी रहती है। इसलिए आप सावधान होकर चलिए। जैसा भी है एडजस्ट एवरीव्हेर।
चलिए हम अपने विवाहित जीवन की भिन्न भिन्न परिस्थितयों को समझे और अध्यन्न करे की किस प्रकार सफल विवाहित जीवन के लिए एडजस्ट करना है।
मान लीजिये कि, आपके जीवनसाथी का किसी के साथ अनबन हुई है और वह इतने क्रोध में हैं कि जैसे ही आप घर में आते है, वह आप पर चिल्लाना शुरू कर देती हैं। उन्हें एक प्रेशर कुकर की तरह माने , जो नीचे तले से जब गर्म हो जाता है, तब सीटी के माध्यम से सारी गर्मी ऊपर से निकालता है। तो हमे क्या करना चाहिए? क्या हमे भी क्रोधित होना चाहिए? जब इस तरह की परिस्थिति आती हैं , तब एडजस्ट करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। हम नहीं जानते कि किस बात पर वो इतने उग्र है। इसलिए, हमे विवाद को ओर आगे बढ़ाना नहीं है।। यदि वह आपसे बहस करना शुरू करे, तो उन्हें शांत करें।
मान लो, किसी काम के कारण वश आपको घर आने में देर हो गई और आपकी पत्नी इस वजह से नाराज़ हो गई। वह यह कहकर उनकी नाराज़गी जताए कि,"इतनी देर से आये हो! मुझे ऐसा नहीं चलेगा"। एसा कहकर जब वह अपना नियंत्रण घुमा दे, तब आपको उन्हें यह कहना चाहिए कि,"हाँ, तुम्हारी बात तो सही है , तुम कहो तो मैं चला जाता हूँ, और तुम कहो तो मैं अंदर आ कर बैठु, तो में बैठ जाउँगा "। तब वह कहेगी "वापस नहीं जाना, यहाँ सो जाओ चुपचाप"। तब इन्हें पूछो, "तुम कहो तो खाना खाऊं, वर्ना सो जाऊ"। तब यदि वह कहे "नहीं, खाना खा लो"। तब आपको उनका कहा मान कर खा लेना चाहिए। अर्थात एडजस्ट हो गए , तब सुबह को फर्स्ट क्लास चाय मिलेगी। जब वो क्रोध में है , और तब आप भी क्रोधित होते हो, तब सुबह का नाश्ता वो मुँह फुलां कर मिलेगा। वो चाय का कप मेज़ पर पटककर रखेगी और यह सिलसिला तीन दिन तक चलता रहेगा।
आप सोचेंगे ,'स्त्री जाति ऐसी क्यों हैं?' लेकिन वास्तव में स्त्री जाति तो आपका काउंटरवेट है। वे आपके लिए मददगार हैं।
‘पत्नी तो है पति के लिए काउन्टर वेट।’
यदि यह काउन्टर वेट न हुआ तो पति लुढ़क जायेगा। इंजन में काउन्टर वेट रखा जाता है, वर्ना इंजन चलते चलते लुढ़क जाएगा।। इसी तरह मनुष्य का काउन्टर वेट स्त्री है। यानी स्त्री होगी तो लुढ़केगा नहीं। वर्ना दौड़-धूप करके भी कोई ठिकाना नहीं रहता। आज यहाँ तो कल कहाँ से कहाँ निकल गया होता। यह स्त्री है इसलिए वह घर लौटता है, वर्ना वह घर आता क्या?
जिस तरह गाड़ी को दोनों पहिये ,संतुलन बनाकर आगे बढ़ने के लिए चाहिए उसी तरह विवाह को चलाने के लिए पति और पत्नी दोनों चाहिए। हसबंड तो वाइफ का काउन्टर वेट है, किस तरह ? कारण कि प्रत्येक के पास खुद के विशिष्ट गुण व विशेषताएँ हैं। उनके गुण एक दूसरे के पूरक हैं। यदि यह गुण रचनात्मक और सृजनात्मक रूप से उपयोग किया जाये तब उनका दाम्पत्य जीवन फलता-फूलता है।
मान लीजिये आपने पहले से ही निर्णय लिया कि आज शाम को अपनी पत्नी के साथ मित्र के घर जाना है। परन्तु जब आप घर पर पहुंचे तो आपने पाया आपकी पत्नी बहुत थकी हुई है। उन्हें बाहर नहीं जाना, तो आप क्या करोगे ? अपना वचन मित्र के साथ पूरा करने के लिए, अपने जीवन-साथी को आग्रह करके ले जाने के लिए, पीड़ा नहीं देनी है। ऐसा इसलिए अगर मित्र के साथ कुछ भी शिकायत होती है ,उसे बाद में निबटाया जा सकता है। लेकिन घर में शिकायत नहीं होनी चाहिए। मित्र के ऊपर अच्छा प्रभाव पड़े , इसलिए घर पर अनावश्यक समस्या नहीं उत्पन्न करनी है। वास्तव में, आपका जीवन- साथी आपके मित्रों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। आपका जीवन-साथी आपका सबसे करीबी हैं, इसलिए आपको अपने जीवन-साथी की किंमत पर अपनी मित्रता को बचाने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
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