प्रश्नकर्ता : निराशा के समय में भी उसे जागृति रहती है और वह यह भी जानता है कि यह मुझे नहीं हो रहा है।
दादाश्री : वास्तव में वही आत्मा है| लेकिन इसके बजाय वह एक निराशा के प्रभाव में धूमिल और ठंडा हो जाता है। जब उसे ऐसा होता है तब आपको उसे उत्साहित करने की ज़रूरत है। इसके अलावा और कर भी क्या सकते हैं ? यह ज़रूरी नहीं है कि आप उसे हर दिन उत्साहित कर पाएं। सिर्फ जब डिप्रेशन आए, तब यह कहना आवश्यक है, “मैं अनंत शक्तिवाला हूँ”, मैं अनंत सुख का धाम हूँ।”
वह जगह जहाँ पर कभी भी निराशा नहीं आ सकती, वह ‘हमारी’ जगह है। वह जगह, अनंत सुख का धाम है। अगर आप ऐसा कहोगे तो आप अपने स्थान की तरफ आसानी से आगे बढ़ पाओगे।
- जब डिप्रेशन हो और तब यदि आप इस जागृति में रहें कि, ‘यह मेरा वास्तविक स्वरूप नहीं है’, ‘मैं शुद्धात्मा हूँ’, मैं इस डिप्रेशन को जानता हूँ’| यदि ऐसा जुदापन रहे तो आपका उद्देश्य पूरा हो जाता है। लगातार जागृति की रक्षा करना, उसे पुष्टि देते रहना और पोषण देना वही वास्तव में खुद का शुद्धात्मा स्वरुप है।
प्रश्नकर्ता : और वास्तव में आत्मा ज्ञाता ही है, है न? कब डिप्रेशन हुआ, कितना हुआ, क्या वह पिछली बार से कम है या ज्यादा है?
दादाश्री : आत्मा सबकुछ जानता है।
प्रश्नकर्ता : जैसे कोई निराशा में भी ज्ञाता रहता है, उसी तरह उन्नति में भी आत्मा में रहे, तो फिर निराशा का समय ही नहीं आएगा, है न?
दादाश्री : अगर कोई अपने बारे में अच्छा सुनता है और तब, ‘आत्मा जानता है कि उस समय आप मान में जकड़ गए हैं। एक बार ऊंचाई पर चढ़े हैं तो निश्चित ही नीचे आना होगा।’