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अक्रमविज्ञान का प्रसार

अक्रमविज्ञान के ज्ञान के प्रसार में पूज्य नीरु माँ का योगदान

परम पूज्य दादाश्री की इच्छा को ध्यान में रखकर पूज्य नीरु माँ ने सन् १९८८ में प्रथम ज्ञानविधि का कार्यक्रम आयोजित किया। ज्ञानीपुरुष की कृपा और आशीर्वाद से पूज्य नीरु माँ अपनी तबियत की परवाह किए बिना सार्वजनिक यातायात के साधनों का इस्तेमाल करके अत्यंत कष्ट उठाकर भी दूर-दराज़ के शहरों और छोटे-छोटे गाँवों में, जहाँ पर साधारण सुविधाएँ तक भी उपलब्ध नहीं थी, वहाँ पर जाती थीं, सिर्फ इसलिए ताकि वे परम पूज्य दादाश्री और अक्रम विज्ञान के बारे में लोगों को बता सकें। परम पूज्य दादाश्री को दिए गए वचन को पूरा करने के उनके दृढ़ निश्चय को कोई भी डिगा नहीं सकता था।

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परम पूज्य दादाश्री ने किसी भी धार्मिक संप्रदाय की स्थापना नहीं की थी, यह कहकर कि यह दुनिया उसीको स्वीकार करेगी जो प्योर है। सत्संग के माध्यम से परम पूज्य दादाश्री का संदेश लोगों तक पहुँचाने के इस काम से परम पूज्य नीरु माँ को सभी जगह से बहुत प्रसिद्धि और प्रशंसा मिली। लेकिन पूज्य नीरु माँ ने कभी भी खुद पर मान और आत्म प्रशंसा का दा़ग नहीं लगने दिया। उन्होंने हमेशा परम पूज्य दादाश्री को ही श्रेय दिया। उन्होंने हमेशा लोगों से यह कहकर परम पूज्य दादाश्री को ही श्रेय दिया कि उनके द्वारा दिए गए सत्संग और ज्ञानविधि परम पूज्य दादाश्री की ही कृपा और शक्ति का फल है।

पूज्य नीरु माँ योगदान ज्ञान के प्रसार में

इस वीडियो में पूज्य नीरु माँ ने दादाश्री का ज्ञान कैसे दुनिया भर में फ़ैलाया इसके बारे में बताया है। नीरु माँ की बातें हर एक व्यक्ति के हृदय को स्पर्श करने लगी थी। दादाश्री की प्रत्येक भावना नीरु माँ के निमित्त से साकार हुई। अधिक जानकारी के लिए यह वीडियो देखें।

कुदरत ने भी परम पूज्य नीरु माँ को ऐसे असाधारण गुण दिए थे, ताकि वे सारी दुनिया की माता का स्थान ले सकें। अपने आसपासवाले सभी लोगों पर उन्होंने प्रेम की जो वर्षा की, वह अतुल्य थी। हर एक को यही लगता था कि 'ये मेरी माँ हैं'। उनका प्रेम पूर्णतः अपेक्षारहित था। सभी लोग हमेशा उन्हें खुले दिल से अपनी सभी परेशानियाँ बता सकते थे। क्योंकि उन्होंने कभी भी किसी के प्रति कोई अभिप्राय नहीं दिया और उनसे मिलनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा ही आभास होता था कि, मैं नीरु माँ के लिए कुछ खास हूँ। कई युवक और युवतियों ने उनके पास आकर ब्रह्मचर्य जीवन जीने और परम पूज्य दादाश्री के इस मिशन में उनका साथ देने की इच्छा व्यक्त की।

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उनके पास ऐसी कला थी कि बहुत ही जटिल परेशानियों को भी वे बहुत आसानी से सुलझा सकती थीं। उनकी याददाश्त बहुत तीव्र थी। कोई भी चीज़ सिर्फ एक ही बार पढ़ने पर उन्हें हमेशा के लिए याद रह जाती थी। वे नाम-जगह-समय और घटनाएँ पूरी तरह से याद रख सकती थीं।

पूज्य नीरु माँ के इस भगीरथ प्रयास में टेलीविज़न के माध्यम ने भी बहुत साथ दिया। और ज्ञानीपुरुष के बारे में पूज्य नीरु माँ के सत्संग दुनिया भर में लाखों लोगों तक पहुँचने लगे। बहुत लोग उनकी तऱफ आकर्षित हुए और उनके प्रेम और करुणा का स्वाद चखा। उनकी सरल और पूर्ण प्रेम व्यवहार से लोग उनकी तऱफ चुंबक की तरह खिंचे आते थे। भारत और विदेशों में उनके फॉलोअर्स की संख्या बढ़ने लगी। जवान और बुज़ुर्ग, स्त्री और पुरुष, पढ़े-लिखे और अनपढ़, अमीर और गरीब सभी लोग इस मिशन का भाग बनना चाहते थे।

पूज्य नीरु माँ - प्रेम का अवतार

इस वीडियो में पूज्य नीरु माँ के प्रेम स्वरुप होने का वर्णन किया है। नीरु माँ लोगों के लिए श्रद्धा की प्रतिमा बन गई थी। हरेक को आत्मा स्वरुप देखकर मोक्ष मार्ग की और होने की करुणा बरसाने वाली नीरु माँ प्रेम स्वरुप ही हो गई थी। अधिक जानकारी के लिए यह वीडियो देखें।

पूज्य नीरू माँ ने पुरे जोश के साथ सत्संग का कार्य चालु रखा और लोगो को वर्त्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी का परिचय करवाया |

पूज्य नीरु माँ के निरीक्षण और मार्ग प्रदर्शन में सन् २००२ में अडालज - गांधीनगर में एक बहुत बड़े त्रिमंदिर की स्थापना हुई। इस संकुल में जैसा परम पूज्य दादाश्री के दर्शन में था, वैसा ही बहुत बड़ा निष्पक्षपाती त्रिमंदिर है, मंदिर के नीचे एक ३२,५०० स्कवायर फुट का सत्संग हॉल है। इस संकुल में एक आधुनिक टाउनशिप सीमंधरसिटी भी है।

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जीवन भर उन्होंने परम पूज्य दादाश्री के पैसों के मामले में प्योरिटी के सिद्धांत पर अमल किया और उन्होंने कभी भी किसी से अपने निजी खर्चे के लिए एक पैसा तक नहीं लिया।

१९ मार्च २००६ को पूज्य नीरु माँ ने पूर्ण समाधि में रहकर नश्वर शरीर का त्याग किया। सभी के लिए उनका अंतिम संदेश था, 'प्रेम से रहना, प्रोमिस?' अपने नश्वर शरीर का त्याग करते हुए पूज्य नीरु माँ का, यह सूक्ष्म आशीर्वाद सभी को आध्यात्मिक जागृति के एक नई ऊँचाई पर ले गया। पूज्य नीरु माँ की उपस्थिति में उनकी आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव अनेकों लोगों ने किया। लेकिन उससे भी कहीं अधिक लोग आज उनकी सूक्ष्म उपस्थिति का अनुभव कर रहे हैं।

आज पूज्य श्री दीपकभाई की निश्रा में परम पूज्य दादाश्री का यह मिशन प्योरिटी के उन्हीं सिद्धांतों सहित यथावत जारी है।

पूज्य नीरु माँ - पूर्ण समाधि दशा

इस वीडियो में पूज्य नीरु माँ के अंतिम दिनों में उनको रहती हुई समाधि दशा का वर्णन किया है। वह कहती थी के मुझे इस देह की पीड़ा लाखो मिल दूर लगती थी। जो कभी बढ़े घटे नही ऐसा शुद्ध प्रेम ही उनके जीवन का सार था। उन्होंने पूज्य दीपकभाई को यह ज्ञान देने के लिए आशीर्वाद दिए थे| आज उनकी स्थूल उपस्थिति न होने पर भी नीरु माँ हमारे साथ है ही। अधिक जानकारी के लिए यह वीडियो देखें।

पूज्य नीरुमाँ की समाधि

सीमंधरसिटी में जिस स्थान पर पूज्य नीरु माँ का अंतिम संस्कार किया गया था, आज वहाँ पर उनकी समाधि है। आज भी पूज्य नीरु माँ की सूक्ष्म उपस्थिति हर एक को उनकी तरह प्योर और प्रेमपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा और शक्ति देती है।

यहाँ से पूज्य नीरु माँ की समाधि के 360 डिग्री मनोरम दृश्य की एक झलक लें:

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