परम पूज्य दादा भगवान का जन्म ७ नवम्बर, १९०८ को भारत के गुजरात राज्य के तरसाली गाँव में हुआ था। जन्म से ही उनमें खास गुण देखने को मिलते थे। उनकी सोच और समझ उनकी उम्र से बहुत अधिक थी। उनके ये विलक्षण गुण, कुछ उनके व्यक्तित्व के कारण और कुछ माताजी के संस्कारों के कारण थे।
झवेर बा ने बचपन से ही अपने नन्हें गलो(अंबालालजी को प्यार से गलो कहते थे) में अहिंसा, सहानुभूति और नोबिलिटी के गुण सींचे। एक दिन स्कूल में उनकी एक लड़के से लड़ाई हो गई और उन्हें चोट लग गई। तब माताजी ने उन्हें सिखाया कि 'मार खाकर आना लेकिन कभी किसीको मारना मत'! जब उनके घाव पर पट्टी बाँध रही थी, तब उन्होंने कहा कि ज़रा सोचो तो सही बिचारे उस लड़के को कितना दर्द हो रहा होगा। और उसकी माँ को कितना दुःख हुआ होगा?
एक बार जब रात को उन्होंने खटमल काटने की शिकायत की तब उनकी माताजी ने कहा, 'बेटा मुझे भी खटमल काट रहे हैं, लेकिन ये बेचारे क्या टीफिन लेकर आए हैं? वे तो अपना खाना खाकर चले जाते हैं'।
गणित का एक सवाल हल करते हुए उन्होंने भगवान ढूँढ निकाले।'गणित के एक सवाल में उन्हें L.C.M. (छोटी से छोटी अविभाज्य संख्या) निकालने को कहा गया। और इस सवाल पर से उन्होंने तुरन्त ही भगवान को खोज निकाला। ये सभी जीव भी 'संख्याएँ' ही है न!"भगवान प्रत्येक जीव में वे अविभाज्य रूप से विद्यमान हैं"।
जब वे बारह वर्ष के थे, तब गले में पहनी हुई उनकी कंठी टूट गई थी। उनकी माताजी ने उन्हें नई कंठी बनवाने के लिए फिर से गुरु जी के पास जाने के लिए कहा, तब उन्होंने अपनी माताजी से कहा, 'गुरु वे कहलाते हैं जो हमें प्रकाश देते हैं। मैं किसी ऐसे गुरु की दी हुई कंठी नहीं पहनना चाहता जो मुझे सही राह न दिखा सकें'।
वे बहुत उदार स्वभाव के थे। दूसरों के बारे में सोचते थे और सभी की मदद करने के लिए तैयार रहते थे। कभी-कभी वे नज़दीक के एक आश्रम में जाकर वहाँ पर रहनेवाले एक संत की सेवा करते थे। उनकी सेवा से प्रसन्न होकर एक दिन संत ने उनसे कहा, 'बेटा, भगवान तुझे मोक्ष में ले जाएगा'! अंबालालने तुरन्त ही कहा, 'अगर भगवान मुझे मोक्ष में ले जानेवाले हैं तो मुझे उसकी आवश्यकता नहीं है। क्योंकि ऐसा करने पर वे मेरे ऊपरी बन जाएँगे। अगर भगवान मुझे मोक्ष देंगे तो वे वापिस ले भी सकते हैं!' 'मोक्ष का मतलब न तो कोई ऊपरी, न ही कोई अन्डरहेन्ड'। उस समय उनकी उम्र तेरह वर्ष की थी।
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