हम कहते हैं, 'मैं चन्दुलाल हूँ।'
हम यह भी कहते हैं कि, 'मेरा नाम चन्दुलाल है।'
तो परोक्ष रूप से, हम कहते हैं कि हम यह शरीर हैं।
लेकिन हम कभी नहीं कहते कि, 'मैं यह शरीर हूँ।'
हम कहते हैं, 'यह मेरा शरीर है।'
हम यह भी कहते हैं कि, 'यह मेरी भुजा है, यह मेरे पैर हैं, मेरी आँखें, मेरे कान आदि हैं ...'
फिर 'मैं' कौन है और 'मेरा' कौन है?
क्या आपने कभी इसे गूगल किया है?
इससे पहले कि आप और ज़्यादा खोज करें, परम पूज्य दादाश्री और एक जर्मन दंपति सुसान और लॉयड के बीच यह संवाद पढ़ें :
परम पूज्य दादाश्री ने उनसे पूछा, "क्या आप 'I' या 'My' इनमे से किसमे तन्मयाकर होना पसंद करेंगे? इस 'I' और 'My' के तालाब हैं। जो लोग 'मैं' के तालाब में तन्मयाकर हो गए हैं , उनकी कभी मृत्यु नहीं हुई, जबकि जो लोग 'My' के तालाब में तन्मयाकर हुए हैं, वे कभी नहीं रहे। तो उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि यदि ऐसा हो, कि हमें अब कभी भी मरना न पड़े। तो मैंने समझाया, " 'I' में कोई चिंता नहीं है । 'My' के लिए चिंता मत करो। 'I' अमर है, 'My' नश्वर है। " इसलिए, 'I' और 'My' को अलग करें! महज आधे घंटे के भीतर वे यह समझ गए और वे खुश हो गए।"
यह आपको ज़्यादा भ्रमित कर देगा, है ना? ठीक है, इसलिए आध्यात्मिक मुमुक्षु के साथ परम पूज्य दादाश्री के प्रत्यक्ष संवाद को देखकर इसे थोड़ा सरल करने का प्रयास किया है।
दादाश्री : क्या नाम है आपका?
प्रश्नकर्ता : मेरा नाम चंदूभाई है।
दादाश्री : वाक़ई आप चंदूभाई हैं?
प्रश्नकर्ता : जी हाँ।
दादाश्री : चंदूभाई तो आपका नाम है। चंदूभाई आपका नाम नहीं है? आप ‘खुद’ चंदूभाई हो या आपका नाम चंदूभाई है?
प्रश्नकर्ता : वह तो नाम है।
दादाश्री : हाँ, तो फिर ‘आप’ कौन? यदि ‘चंदूभाई’ आपका नाम है तो ‘आप’ कौन हो? आपका ‘नाम’ और ‘आप’ अलग नहीं हैं? अगर ‘आप’ नाम से अलग हो तो ‘आप’(खुद) कौन हो? यह बात आपको समझ में आती है न कि मैं क्या कहना चाहता हूँ? ‘यह मेरा चश्मा’ कहने पर तो चश्मा और हम अलग हुए न? उसी प्रकार क्या अब ऐसा नहीं लगता कि आप(खुद) नाम से अलग हो?जैसे कि दुकान का नाम रखें ‘जनरल टे्रडर्स’, तो वह कोई गुनाह नहीं है। लेकिन अगर उसके सेठ से हम कहें कि ‘ऐ! जनरल ट्रेडर्स, यहाँ आ।’ तो सेठ क्या कहेंगे कि ‘मेरा नाम तो जयंतीलाल है और जनरल टे्रडर्स तो मेरी दुकान का नाम है।’ अर्थात दुकान का नाम अलग और सेठ उससे अलग, माल अलग, सब अलग-अलग है न? आपको क्या लगता है?
प्रश्नकर्ता : सही है।
दादाश्री : लेकिन यहाँ तो, ‘नहीं, मैं ही चंदूभाई हूँ’ ऐसा कहेंगे। अर्थात दुकान का बोर्ड भी मैं, और सेठ भी मैं! आप चंदूभाई हो, वह तो पहचानने का साधन है। बचपन से ही लोग आपको 'चन्दुलाल' कहते रहे और आपको विश्वास हो गया कि "मैं चन्दुलाल हूँ।" आप इस नाम को आप मानते हैं। वास्तव में आप वह नहीं हैं, लेकिन आप जोर देकर कहते हैं कि आप 'चन्दुलाल' है क्योंकि हर कोई आपको ऐसा बताता है। चूँकि आप नहीं जानते कि आप वास्तव में कौन हैं, आप अपने आपको वह नाम मानते हैं जो आपको दिया गया है। इससे आप पर बहुत शक्तिशाली मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव आपके भीतर इतना गहरा समाया हुआ है, कि आप मानते हैं कि आप 'चन्दुलाल' हैं। यह विश्वास गलत है, और इस गलत धारणा के कारण, आपने अनगिनत जीवन 'अपनी आँखें खोलकर सोए हुए' (अपनी असली पहचान से अनजान) बिताए हैं।
* चन्दुलाल = जब भी दादाश्री 'चन्दुलाल' नाम का उपयोग करते हैं या जिस व्यक्ति का नाम दादाश्री संबोधित करते हैं, पाठक को सटीक समझ के लिए अपना नाम डालना चाहिए।
आपसे कहा जाए कि, सेपरेट 'I' and 'My' विथ सेपरेटर, तो आप 'I' और 'My' को सेपरेट कर सकेंगे क्या? 'I' एन्ड 'My' को सेपरेट
प्रश्नकर्ता : 'My' साथ में होगा न!
दादाश्री : क्या-क्या 'My' है आपके पास?
प्रश्नकर्ता : मेरा घर और घर की सभी चीज़ें।
दादाश्री : सभी आपकी कहलाती हैं? और वाइफ किसकी कहलाती हैं?
प्रश्नकर्ता : वह भी मेरी।
दादाश्री : और बच्चे किसके?
प्रश्नकर्ता : वे भी मेरे।
दादाश्री : और यह घड़ी किसकी?
प्रश्नकर्ता : वह भी मेरी।
दादाश्री : और यह हाथ किसके?
प्रश्नकर्ता : हाथ भी मेरे हैं।
दादाश्री : फिर ‘मेरा सिर, मेरा शरीर, मेरे पैर, मेरे कान, मेरी आँखें’ ऐसा कहेंगे। इस शरीर की सारी चीज़ों को ‘मेरा’ कहते हैं, तब ‘मेरा’ कहनेवाले ‘आप’ कौन हैं? यह नहीं सोचा? ‘'My' नेम इज़ चंदूभाई’ कहें और फिर कहें ‘मैं चंदूभाई हूँ’, इसमें कोई विरोधाभास नहीं लगता?
प्रश्नकर्ता : लगता है।
दादाश्री : आप चंदूभाई हो, लेकिन इसमें 'I' एन्ड 'My' दो हैं। यह 'I' एन्ड 'My' की दो रेल्वेलाइन अलग ही हैं। पेरेलल ही रहती हैं, कभी एकाकार होती ही नहीं। फिर भी आप एकाकार मानते हो, तो समझकर इसमें से 'My' को सेपरेट कर दो। आपमें जो 'My' है न, उसे एक ओर रख दो। 'My' हार्ट, तो उसे एक ओर रख दो। इस शरीर में से और क्या-क्या सेपरेट करना होगा?
प्रश्नकर्ता : पैर, इन्द्रियाँ।
दादाश्री : हाँ, सभी। पाँच इन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ सभी। और फिर ‘माइ माइन्ड’ कहते हैं कि ‘आइ एम माइन्ड’ कहते हैं?
प्रश्नकर्ता : ‘माइ माइन्ड’ कहते हैं।
दादाश्री : मेरी बुद्धि कहते हैं न?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : मेरा चित्त कहते हैं न?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : और ‘माइ इगोइज़म’ बोलते हैं कि‘आइ एम इगोइज़म’ बोलते हैं?’
प्रश्नकर्ता : ‘माइ इगोइज़म’।
दादाश्री : ‘माइ इगोइज़म’ कहोगे तो उसे अलग कर सकोगे। लेकिन उसके आगे जो है, उसमें आपका हिस्सा क्या है, वह आप नहीं जानते। इसलिए फिर पूर्ण रूप से सेपरेशन नहीं हो पाता। आप, अपना कुछ हद तक ही जानते हो। आप स्थूल चीज़ें ही जानते हो, सूक्ष्म की पहचान ही नहीं है। सूक्ष्म को माइनस करना, फिर सूक्ष्मतर को माइनस करना, फिर सूक्ष्मतम को माइनस करना तो ज्ञानीपुरुष का ही काम है। लेकिन एक-एक करके सारे स्पेयर पार्ट्स माइनस करते जाएँ तो 'I' और माइ, दोनों अलग हो सकते हैं न? 'I' और 'My' दोनों अलग करने पर आखिर में क्या बचेगा? 'My' को एक ओर रख दें तो आखिर क्या बचा?
प्रश्नकर्ता : 'I'
दादाश्री : आप सिर्फ वह 'I' ही हो। बस, उसी 'I' को रियलाइज़ करना है।
प्रश्नकर्ता : तो सेपरेट करके यह समझना है कि जो बाकी बचा वह ‘मैं’ हूँ?
दादाश्री : हाँ, सेपरेट करने पर जो बाकी बचा, वह आप ‘खुद हो’, 'I' आप खुद ही हो। (शुद्धात्मा)
‘I’ भगवान है और ‘My’ माया है। ‘My’ वह माया है। ‘My’ is relative to ‘I’. ‘I’ is real. आत्मा के गुणों का इस ‘I’ में आरोपण करो, तब भी आपकी शक्तियाँ बहुत बढ़ जाएँगी। मूल आत्मा ज्ञानी के बिना नहीं मिल सकता। परंतु ये ‘I’ and ‘My’ बिल्कुल अलग ही है। ऐसा सभी को, फ़ॉरेन के लोगों को भी यदि समझ में आ जाए तो उनकी परेशानियाँ बहुत कम हो जाएँगी। यह साइन्स है। अक्रम विज्ञान की यह आध्यात्मिक research का बिल्कुल नया ही तरीका है। ‘I’ वह स्वायत्त भाव है और ‘My’ वह मालिकीभाव है।
जैसे इस अँगूठी में सोना और तांबा दोनों मिले हुए हैं, उसे हम गाँव में ले जाकर किसी से कहें कि, ‘भाई, अलग अलग कर दीजिए न!’ तो क्या कोई भी कर देगा? कौन कर पाएगा?
प्रश्नकर्ता : सुनार ही कर पाएगा।
दादाश्री : जिसका यह काम है, जो इसमें एक्सपर्ट है, वह सोना और तांबा दोनों अलग कर देगा। सौ का सौ प्रतिशत सोना अलग कर देगा, क्योंकि वह दोनों के गुणधर्मों को जानता है कि सोने के गुणधर्म ऐसे हैं और ताँबे के गुणधर्म ऐसे हैं। उसी प्रकार ज्ञानीपुरुष आत्मा के गुणधर्मों को जानते हैं और अनात्मा के गुणधर्मों को भी जानते हैं।
जैसे अँगूठी में सोना और ताँबे का ‘मिक्सचर’ होता है अत: उन्हें अलग किया जा सकता है। सोना और तांबा दोनों कम्पाउन्ड स्वरूप हो जाएँ, तो उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। क्योंकि इससे गुणधर्म अलग ही प्रकार के हो जाते। इसी प्रकार जीव के अंदर चेतन और अचेतन का मिक्सचर है, वे कम्पाउन्ड स्वरूप नहीं हुए हैं। इसलिए फिर से स्वभाव में लाए जा सकते हैं। कम्पाउंड हुआ होता तो पता ही नहीं चलता। चेतन के गुणधर्मों का भी पता नहीं चलता और अचेतन के गुणधर्मों का भी पता नहीं चलता और तीसरा ही गुणधर्म उत्पन्न हो जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। वह तो सिर्फ मिक्सचर ही है। इसलिए अगर ज्ञानीपुरुष जुदा कर दें तो आत्मा का पहचान हो जाए।
1) आत्मा और अनात्मा मिश्रण रूप में होते हैं न कि यौगिक रूप में, इसीलिए एक को दूसरे से निकालना संभव है। यदि वे यौगिक रूप में होते, तो दोनों को अलग करना संभव नहीं होता।इसलिए, ज्ञानी पुरुष दोनों को अलग करने में सक्षम है, और एक अपने स्वरूप को समझने में सक्षम है।
2) तुम्हारे भीतर absolute ‘I’ ईश्वर है। इससे बढ़कर आपके ऊपर कोई दूसरा भगवान या उपरी नहीं है। आप पर अनुशासन करने के लिए कोई सर्वशक्तिमान शक्ति नहीं है। आप पूरी तरह से स्वतंत्र हैं। ऐसा कोई नहीं है जो आपको चोट पहुँचा सकता है या आपके लिए बाधा बन सकता है। केवल एक चीज़ है जो आपको चोट या बाधा डाल सकती है, वह है आपकी अपनी गलतियाँ।
3) कर्म तभी बनाया जा सकता है जब 'कर्तापन' हो। ‘चन्दुलाल’ के रूप में, जब आप कहते हैं और विश्वास रखते हैं कि, "मैंने ऐसा किया......," या "मैंने वेसा किया ..." तब आप 'कर्ता' बन जाते हैं। यह विश्वास फिर कर्म का सहारा बन जाता है । जब कोई 'कर्ता' होना बंद कर देता है, तो कर्म का कोई आधार या समर्थन नहीं होता है, इसलिए वह दूर हो जाता है।
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