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आत्मा का स्वरूप क्या है ?

आत्मा को पहचानने के लिए उसके स्वरूप को जानना आवश्यक है | आत्मा कैसा दिखता है? इसका कोई आकार या रंग नहीं है; यह प्रकाश है, लेकिन साधारण प्रकाश नहीं है।

आत्मा प्रकाश स्वरूप है

आत्मा ज्ञान स्वरूप है और ज्ञान ही प्रकाश है। यह प्रकाश का किसी अन्य रूप में अस्तित्व नहीं है। आत्मा एक प्रकाश स्वरुप है, जिसको किसी प्रकार की उत्पति या आधार कि ज़रूरत नहीं होती।

दादा भगवान समझाते हैं कि यह किस प्रकार का प्रकाश है और हम इस प्रकाश को, अपने दैनिक जीवन में कैसे उपयोग में ला सकते हैं...

प्रश्नकर्ता : आत्मा तो ज्ञानवाला ही है न?

दादाश्री : वह खुद ही ज्ञान है। खुद ज्ञानवाला नहीं है, खुद ही ज्ञान है! उसे ज्ञानवाला कहेंगे तो ‘ज्ञान’ और ‘वाला’ ये दोनों अलग हो गए। अत: आत्मा खुद ही ज्ञान है, वह प्रकाश ही है खुद! उस प्रकाश के आधार पर ही यह सबकुछ दिखता है। उस प्रकाश के आधार पर यह सब समझ में भी आता है, और जाना भी जा सकता है, जान भी पाते हैं और समझ में भी आता है!

प्रत्येक जीवों के शरीर में आत्मा प्रकाशस्वरूप के अलावा और कुछ नहीं है.....

यह कथन सुनकर, कि आत्मा कैसी दिखती होगी। तब कोई भी कल्पना कर सकता है कि, आत्मा एक बल्ब या ट्यूबलाइट की तरह होगा। नहीं, यह ऐसा नहीं है। जैसे बल्ब या ट्यूबलाइट की मदद से हम, कमरे में सब कुछ देख और जान सकते हैं; उसी प्रकार,आत्मा की सहायता से हम सब कुछ देख और जान सकते हैं। यह बस एक उपमा दी है; वास्तव में, आत्मा इस साधारण प्रकाश से कहीं अधिक है।

आइए इसे एक उदाहरण के द्वारा समझते हैं।

मान लीजिए, कि आप एकदम अंधेरे वाले कमरे में हैं, जिसकी एक दीवार में एक छोटा सा छेद है। इस छेद, से सूर्य की किरणें कमरे में प्रवेश करती हैं। अब आपको प्रकाश की इन किरणों से बनी बीम के परिधि में ही धूल कण तैरते हुए दिखाई देंगे। क्या इसका यह, मतलब है कि कमरे में कहीं और धूल के कण नहीं हैं? है! तो, फिर वे क्यों नहीं दिखाई देते? क्योंकि वहां अंधेरा है।

इसलिए, जहाँ प्रकाश नहीं है वहां देखना संभव नहीं है; जबकी, प्रकाश की उपस्थिति में चीजों को स्पष्टरूप से वैसे ही देखा जा सकता है जैसे वे हैं! प्रकाश की किरण को देखते ही, आप समझ जाते है , "अरे ! सूर्योदय हो गया है।"

आइए एक और उदाहरण लेते हैं

मान लीजिए कि दीवार पर एक बड़ी तस्वीर है। यदि पूरा अँधेरा होगा, तो क्या हम उसे देख सकते हैं? नहीं, लेकिन प्रकाश की मदद से हम तस्वीर को स्पष्टरूप से देख सकते हैं, है ना?

तो यहा पर, तीन चीजें हुईं: प्रकाश, हम खुद और चित्र।

जैसे बल्ब की रौशनी मे, चित्र को देखा व पहचाना जा सकता है; उसी प्रकारआत्मा के प्रकाश से मन में आनेवाले विचारों को देखा और पढ़ा जा सकता है। आत्मा वह प्रकाश है, जो स्वयं के साथ-साथ ब्रह्मांड में विद्यमान प्रत्येक वस्तु को भी प्रकाशित करता है।। आत्मा के प्रकाश में अनंत सुख है, जबकि इसके विपरीत जो दीपक के प्रकाश में नहीं है।

आइए आगे हम आत्मा के प्रकाश के महत्व को समझें।

मान लीजिए घर में अंधेरा है। आपको कैसा लगेगा ? आप कुर्सी और मेज इत्यादि से टकराएंगे । इसके अलावा, आपको चिंता होने लगेगी कि अब आगे क्या होगा और कैसे आगे जाए ताकि किसी से, टकराव ना हो। यह चिंताजनक हो सकता है, है ना? यदि, पूरे कमरे में प्रकाश हो, तब क्या होगा?

यदि आपके पास पूर्ण प्रकाश है, तो कोई टकराव, कष्ट, चिंता, संदेह या तनाव नहीं होगा! पूर्ण प्रकाश से आप प्रसन्नता का अनुभव करेंगे और आपके आस पास के लोगों को भी प्रसन्नता का अनुभव होगा। आत्मा के प्रकाश में हम इसे अनुभव करते हैं। सबसे बड़ा अंतर यह है कि बल्ब का प्रकाश टेम्परेरी सुख देगा, जबकि आत्मा का प्रकाश परमानेन्ट सुख देगा। आत्मा के स्वरूप को समझने के लिए यह एक बहुत महत्वपूर्ण है।

आत्मा का प्रकाश सर्वव्यापी है!

मान लीजिए कोई बल्ब है, जो कि दिवार में किसी एक जगह लगा हुआ है। जबकि पूरे कमरे में बल्ब नहीं हैं; फिर भी उसका प्रकाश पूरे कमरे को, प्रकाशित कर देता है। उसी तरह एक आत्मा में पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की शक्ति होती है। यदि आत्मा कर्म से पूरी तरह मुक्त हो जाए तो प्रत्येक आत्मा पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित कर सकता है!

जिस प्रकार इस घड़े में एक लाइट रखी हुई हो, उसके ऊपर एक ढक्कन लगा दें, तो उजाला बाहर नहीं आएगा, सिर्फ उस घड़े को ही लाइट मिलेगी। फिर घड़े को फोड़ दें, तो वह लाइट कहाँ तक जाएगी? जितने भाजन में रखा हुआ होगा, जितने बड़े रूम में रखा हुआ हो उतने रूम में प्रकाश फैलेगा। उसी प्रकार आत्मा यदि निरावृत हो जाए न, तो पूरे लोकालोक में फैल जाए, ऐसा है।

खुद आत्मा ही है, लेकिन वह अज्ञानता घिरा हुआ है

अभी आत्मा शरीर में है। यह अनंत ज्ञान और अनंत दर्शन वाला है, लेकिन यह अभी अज्ञान में घिरा हुआ है। अज्ञानता का अर्थ है अपने वास्तविक स्वरूप की जागृति न होना। इसलिए, अज्ञानता के कारण, हम भूल से मान लेते हैं कि शरीर या शरीर को दिया गया नाम वही हमारा आत्मा है।

तो इसीलिए सबसे पहले आपको आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए। एक बार जब आप आत्मा को जान लेते हैं, तो इसका मतलब है कि अज्ञान दूर हो गया है।

जब आप ज्ञानीपुरुष से ज्ञान प्राप्त करेंगे, तो अज्ञानता का आवरण हट जाएगा। यहाँ 'मैं' और 'मेरा' के बीच भेदज्ञान के वैज्ञानिक प्रयोग से ज्ञानीपुरुष अज्ञानता के आवरण को तोड़ देते है और आत्मा का प्रत्यक्ष प्रकाश शुरू हो जाता है। उस प्रत्यक्ष प्रकाश से आप आत्मा का अनुभव कर सकोगे।

उसके बाद, जैसे ही ज्ञानी पुरुष की आज्ञा का पालन करना शुरू करते है, वैसे ही, धीरे-धीरे कर्मो की निर्जरा शुरू हो जाती है और आवरण टूटने लगते हैं। जैसे जैसे अज्ञानता के बहुत सारे आवरण टूटते है, तब ज्ञान के प्रकश का उदय होता है। जब आत्मा के ऊपर से सभी आवरण समाप्त हो जाते है तो पूर्ण आत्मा का प्रकाश सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है। ऐसा है आत्मा का प्रकाश!

ध्यान दें कि आत्मा का प्रकाश, बल्ब और ट्यूबलाइट के प्रकाश की तरह दिखाई नहीं देता। क्योंकि यह ज्ञान स्वरूप में है। आत्मा कैसा दिखता है, यह जानने के लिए आत्म-साक्षात्कार विधि के दौरान कोई प्रकाश दिखेगा ऐसा विचार नहीं करना है।

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