बहुत से लोगों का लक्ष्य आध्यात्मिक जागृति का होता है, इसलिए आत्मा को कैसे जागृत किया जाये वे इसकी खोज में रहते है। तो आप अपने आत्मा को किस प्रकार जागृत करेंगे?
मैं चंदूभाई हूं (अपना नाम पढ़ें); यह मन वचन काया मेरा है, इसका अनुभव रहना ही देहाध्यास कहलाता है। आत्म-साक्षात्कार के बाद, यह अनुभव छूटने लगता है और आत्म-साक्षात्कार का अनुभव शुरू हो जाता है।
आत्मा को जागृत करने और शाश्वत सुख को प्राप्त करने के लिए, लोग मोह, अंतराय, राग और द्वेष से छुटने के लिए जन्मोजन्म पुरुषार्थ करते है। यह आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करने का पारम्परिक क्रमिक मार्ग है! इस मार्ग में तप और त्याग के द्वारा, क्रोध-मान-माया-लोभ-विषय-लोभ कि निर्बलताए को दूर करके अहंकार कि शुद्धि कि जाती है। जब अहंकार शुद्ध होगा, तब वह मोक्ष के नज़दीक पहुचेगा। इसलिए क्रमिक मार्ग कठिन है।
जबकि अक्रम मार्ग में ज्ञानी की कृपा से अहंकार शुद्ध होता है। वे हमारे दोनों अहंकार (मैं चंदूभाई हूं) और ममता (यह मन-वचन काया मेरे है) को ले लेते है। उनकी आज्ञा का पालन करने से हमें आत्मा का पूर्ण अनुभव प्राप्त होता है। एक बार यह अनुभव हो जाने के बाद हमारा काम हो जाता है। यही वैज्ञानिक उत्तर है कि आत्मा को जागृत कैसे करे।
इसीलिए, आज अक्रम विज्ञान के कारण, हम आसानी से, आत्मा कि अनुभूति प्राप्त कर सकते है। हमें ज्ञानी पुरुष से ज्ञान प्राप्त करने के साथ, केवल विनम्रता और यह भाव कि "मै कुछ नहीं जानता" बस इतना ही लाना है। और किसी प्रकार कि योग्यता कि ज़रूरत नहीं। हम ज्ञानी के पास पहुच गए, यही हमारी पात्रता है। हम विशेष पुण्य कर्म बांधते है, जब हम सही समझ के साथ, तप और क्रियाये करते है, कि हमारे आत्मा और उसकी मुक्ति के लिए क्या हितकारी है। इन्ही कर्मो के फल से ज्ञानी पुरुष मिलते है। जब हम किसी ज्ञानी से मिलते हैं तो मोक्ष मांगना उचित होता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।
जब अपनी आत्मा को प्रकाशमान करने की बात आती है तब आत्मा के अनुभव के बारे में गहन चर्चा निष्फल साबित होती है। इसका कारण यह है कि जब तक हमें प्रत्यक्ष ज्ञानी नहीं मिलते है और उनके पास से ज्ञान प्राप्त नहीं करते तब तक हम केवल शब्दों में ही रहते हैं; हमे कोई अनुभव नहीं होता है। आत्मा का वर्णन और आत्मा के अनुभव में बहुत बड़ा अंतर है। शब्दों में जो वर्णन किया जाता है उसे भुलाया जा सकता है, लेकिन जो अनुभव किया है और देखा है वह कभी नहीं भुलाया जा सकता। एक प्रत्यक्ष ज्ञानी ही हमें आत्मा का अनुभव दे सकता है।
आईये, नीचे दिए गए संवाद के द्वारा, हम इसे और समझते है:
दादाश्री : वेद शब्दरूपी ज्ञान है, इसलिए बुद्धिगम्य ज्ञान है। वेद ‘थ्योरिटिकल’ हैं और ज्ञान ‘प्रेक्टिकल’ है।
प्रश्नकर्ता : यानी कि अनुभवगम्य?
दादाश्री : हाँ। अनुभवगम्य ही सच्चा ज्ञान है। बाकी, दूसरा सारा तो ‘थ्योरिटिकल’ है। वह ‘थ्योरिटिकल’ शब्द के रूप में होता है, और चेतनज्ञान तो शब्द से आगे, बहुत आगे है। वह अवक्तव्य होता है, अवर्णनीय होता है। आत्मा का वर्णन हो ही नहीं सकता, वेद कर ही नहीं सकते। फिर भी वेदों का मार्गदर्शन तो एक साधन है। वह साध्यवस्तु नहीं है। जब तक ‘ज्ञानीपुरुष’ नहीं मिलेंगे, तब तक कभी भी काम नहीं हो पाएगा।
हजारो मुमुक्षओं ने ज्ञान विधि का लाभ लिया है और सांसारिक कर्तव्यों को निभाते हुए शुद्धात्मा के अनुभव को प्राप्त किया है। वे अपने दैनिक जीवन की टकराव, भोगवटा, चिंता और सभी प्रकार के शंकाए और तनाव से उन्होंने मुक्ति का अनुभव किया हैं! ज्ञानी की कृपा से जो आत्मा प्राप्त हुआ है, उससे वे सुख का अनुभव करते है और उनके आस-पास के व्यक्ति, सुख का अनुभव करते है। आप भी इस मुक्ति का अनुभव कर सकते हैं। आपको बस इतना करना है कि आपको प्रत्यक्ष ज्ञानी के पास से ज्ञान प्राप्त करना है।
हालाँकि, हमें यह भी समझना होगा कि आत्मा की प्राप्ति का अर्थ यह नहीं, कि भीतर से कोई प्रकाश या आनंद का स्रोत उत्पन्न होगा। यह सच्चा अनुभव नहीं है। आत्मा के अनुभव का अर्थ यानि आप चंदूभाई (पाठक अपना नाम पढ़े) से अलग अनुभव करना। इसके अतिरिक्त ,आप चंदूभाई के दोष देख सकते हो। इन्द्रिय ज्ञान से देखने पर कोई इन्द्रियों से परे कैसे देख सकता है? उसके लिए आपको एक ज्ञानी पुरुष की आवश्यकता होगी, जो आपकी दृष्टि को बदल देंगे ताकि आप जागृत आत्मा के प्रकाश से देख सकें! मैं अपने आत्मा को किस प्रकार जागृत करू सकता हूं, इसके लिए बस यही मुख्य आवश्यकता है।
दादाश्री : ‘ज्ञानीपुरुष’ जो आत्मज्ञान देते हैं, वह किस तरह से देते हैं? यह भ्रांतज्ञान और यह आत्मज्ञान, यह जड़ज्ञान और यह चेतनज्ञान, उन दोनों के बीच में ‘लाइन ऑफ डिमार्केशन’ डाल देते हैं। इसलिए फिर वापस से भूल होना संभव नहीं रहता। और आत्मा निरंतर लक्ष्य में रहा करता है, एक क्षण के लिए भी आत्मा की जागृति नहीं जाती।
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