प्रश्नकर्ता : यह प्रेमस्वरूप जो है, वह भी कहलाता है कि हृदय में से आता है और इमोशनलपन भी हृदय में से ही आता है न?
दादाश्री : ना, वह प्रेम नहीं है। प्रेम तो शुद्ध प्रेम होना चाहिए। ये ट्रेन में सब लोग बैठे हैं और ट्रेन इमोशनल हो जाए तो क्या हो?
प्रश्नकर्ता : गड़बड़ हो जाए। एक्सिडेन्ट हो जाए।
दादाश्री : लोग मर जाएँ। इसी तरह ये मनुष्य इमोशनल होते हैं तब अंदर इतने सारे जीव मर जाते हैं और उसकी जिम्मेदारी खुद के सिर पर आती है। अनेक प्रकार की ऐसी जिम्मेदारियाँ आती हैं, इमोशनल हो जाने से।
प्रश्नकर्ता : बगैर इमोशन का मनुष्य पत्थर जैसा नहीं हो जाएगा?
दादाश्री : मैं इमोशन बिना का हूँ, तो पत्थर जैसा लगता हूँ? बिलकुल इमोशन नहीं है मुझमें। इमोशनवाला मिकेनिकल हो जाता है। पर मोशनवाला तो मिकेनिकल होता नहीं न!
प्रश्नकर्ता : पर यदि खुद का सेल्फ रियलाइज़ नहीं हुआ हो तो फिर ये इमोशन बगैर का मनुष्य पत्थर जैसा ही लगेगा न?
दादाश्री : वह होता ही नहीं है। ऐसा होता ही नहीं न! ऐसा कभी होता ही नहीं। नहीं तो फिर उसे मेन्टल में ले जाते हैं। पर वे मेन्टल भी सब इमोशनल ही होते हैं। पूरा जगत् ही इमोशनल है।
Book Name: प्रेम ( Page #53 Paragraph #1 to #8)
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