दादाश्री: आपका शब्द ऐसा निकले कि सामनेवाले का काम हो जाए।
प्रश्नकर्ता: आप पौद्गलिक या ‘रीयल’ (आत्म) के कल्याण की बात करते हैं?
दादाश्री: पुद्गल नहीं, हमें तो ‘रीयल’ की ओर ले जाए उसकी ही आवश्यकता है। फिर ‘रीयल’ के सहारे आगे का (मोक्ष तक का) काम हो जाएगा। यह ‘रीयल’ प्राप्त होगा तो ‘रिलेटिव’ प्राप्त होगा ही! पूरे जगत् का कल्याण करो ऐसी भावना करनी है। सिर्फ गाने के हेतु नहीं बोलना है, भावना ही ऐसी रखनी है। ये तो लोग इसे सिर्फ गाने के लिए गाते हैं, जैसे श्लोक बोलते हैं, वैसे।
प्रश्नकर्ता: ऐसे ही फिजूल बैठा रहे, उसके बजाय ऐसी भावना करे तो उत्तम कहलाएगा न?
दादाश्री: अति उत्तम। बुरे भाव तो निकल गए! उसमें जितना हुआ उतना तो सही, उतनी तो कमाई हुई!
प्रश्नकर्ता: उस भावना को मिकेनिकल भावना कह सकते हैं?
दादाश्री: नहीं। मिकेनिकल किस तरह कह सकते हैं? मिकेनिकल तो जो ज़रूरत से ज़्यादा यों ही खुद को ख्याल नहीं रहे और ऐसे बोलता रहे, तब मिकेनिकली!
Book Name: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म (Page: #24 Paragraph #3 to #9 & Page #25 Paragraph #1 )
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