प्रश्नकर्ता : काम-धंधे में सामनेवाले का अहम् नहीं दुभे ऐसा हमेशा नहीं रह पाता, किसी न किसी के अहम् को तो ठेस लग ही जाती है।
दादाश्री : उसे ‘अहम् दुभाना’ नहीं कहते। अहम् दुभाना यानी क्या कि वह बेचारा कुछ बोलना चाहे और हम कहें, ‘चुप बैठ, तू कुछ मत बोल।’ ऐसे उसके अहंकार को दुभाना नहीं चाहिए। और काम-धंधे में अहम् दुभाना यानी उसमें वास्तव में अहम् नहीं दुभता, मन दुभता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन अहम् तो अच्छी वस्तु नहीं है, तो फिर उसे दुभाने में क्या हर्ज है?
दादाश्री : वह खुद ही अभी अहंकार स्वरूप है, इसलिए उसे नहीं दुभाना चाहिए। वह जो कुछ भी करता है, उसमें मैं ही करता हूँ, ऐसा वह मानता है। इसलिए नहीं दुभाना चाहिए। आप घर में भी किसी को नहीं डाँटना। किसी का अहंकार नहीं दुभे ऐसा रखना। किसी का भी अहंकार नहीं दुभाना चाहिए। लोगों का अहंकार दुभाने से वे आपसे जुदा हो जाते हैं, फिर कभी आपको नहीं मिलते। आपको किसी से ऐसा नहीं कहना चाहिए कि, ‘तू यूज़लेस (निकम्मा) है, तू ऐसा है, वैसा है।’ ऐसे किसी का मान भंग नहीं करना चाहिए। हाँ, डाँट सकते हैं, डाँटने में हर्ज नहीं है। कुछ भी हो लेकिन किसी का अहंकार नहीं दुभाना चाहिए। सिर पर प्रहार हो उसमें हर्ज नहीं, लेकिन उसके अहंकार पर प्रहार नहीं होना चाहिए। किसी का अहंकार भग्न नहीं करना चाहिए।
कोई मज़दूर हो, उसका भी तिरस्कार नहीं करना। तिरस्कार से उसका अहम् दुभेगा। हमें उसकी ज़रूरत नहीं हो तो उससे कहें कि ‘भैया, अब मुझे तेरा काम नहीं है’ और यदि उसका अहंकार दुभता नहीं हो तो पैसे देकर भी उसे काम से फारि़ग कर देना। पैसे तो आ जाएँगे लेकिन उसका अहम् नहीं दुभाना चाहिए। वर्ना वह बैर रखेगा, ज़बरदस्त बैर बाँधेगा! हमारा कल्याण नहीं होने देगा, बीच में आएगा।
यह तो बहुत गहन बात है! अब इसके बावजूद किसी का अहंकार आपसे दुभाया गया हो तो यहाँ हमारे पास (इस कलम अनुसार) शक्ति माँगना। यानी जो हुआ उससे खुद का अभिप्राय अलग रखते हैं, इसलिए उसकी अधिक ज़िम्मेदारी नहीं रहती। क्योंकि अब उसका अभिप्राय अलग हो गया। अभिप्राय जो अहंकार दुभाने का था, वह इस प्रकार माँग करने से अलग हो गया |
Book Name: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म (Page #4 Paragraph #2,#3,#4 ; Page #5 Paragraph #1 & #2)
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