प्रश्नकर्ता : ४. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
दादाश्री : हाँ, ठीक है। हमें किसी के लिए अभाव हो, मान लीजिए कि आप ऑफिस में बैठे हैं और कोई आया तो आपको उसके प्रति अभाव हुआ, तिरस्कार हुआ, तो फिर आपको मन में सोचकर उसका पछतावा करना चाहिए कि ऐसा नहीं होना चाहिए।
इस तिरस्कार से कभी भी नहीं छूट सकते। उसमें तो निरे बैर ही बंधते हैं। किसी के भी प्रति ज़रा-सा भी तिरस्कार होगा, अरे इस निर्जीव के साथ भी तिरस्कार होगा तो भी आप नहीं छूट पाएँगे। अर्थात् किसी के प्रति ज़रा-सा भी तिरस्कार नहीं चलेगा। और जब तक किसी के लिए तिरस्कार होगा, तब तक वीतराग नहीं हो पाएँगे। वीतराग होना पडे़गा, तभी आप छूट सकेंगे।
Book Name: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म (Page #14 Last Paragraph ; Page #15 Paragraph #1,#2, #3)
Q. यदि कोई गलत है फिर भी उसके अहंकार को मैं चोट क्यों नहीं पहुँचाऊँ?
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Q. वाणी को कैसे सुधारे? दुःखदाई शब्द बोलने से कैसे बचें?
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A. प्रश्नकर्ता: २. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाए... Read More
Q. किसी को आत्मज्ञान के रास्ते पर किस तरह लाएँ?
A. दादाश्री: आपका शब्द ऐसा निकले कि सामनेवाले का काम हो जाए। प्रश्नकर्ता: आप पौद्गलिक या ‘रीयल’... Read More
Q. अपने अध्यात्मिक विकास को किस तरह बढ़ाएँ?
A. ऐसा है न, इस काल के हिसाब से लोगों में इतनी शक्ति नहीं है। जितनी शक्ति है उतना ही दिया है। इतनी... Read More
Q. सभी धर्मो का सार : नौ कलमें
A. एक भाई से मैंने कहा कि, ‘इन नौ कलमों में सब समा गया है। इसमें कुछ भी बाकी नहीं रखा है। आप ये नौ... Read More
Q. सांसारिक बंधनों से मुक्ति कैसे प्राप्त की जा सकती है?
A. प्रश्नकर्ता: ये जो नौ कलमें दी हैं वह विचार, वाणी और वर्तन की शुद्धता के लिए ही दी हैं... Read More
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