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अभाव और तिरस्कार करने से कैसे बचें?

प्रश्नकर्ता : ४. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।

दादाश्री : हाँ, ठीक है। हमें किसी के लिए अभाव हो, मान लीजिए कि आप ऑफिस में बैठे हैं और कोई आया तो आपको उसके प्रति अभाव हुआ, तिरस्कार हुआ, तो फिर आपको मन में सोचकर उसका पछतावा करना चाहिए कि ऐसा नहीं होना चाहिए।

इस तिरस्कार से कभी भी नहीं छूट सकते। उसमें तो निरे बैर ही बंधते हैं। किसी के भी प्रति ज़रा-सा भी तिरस्कार होगा, अरे इस निर्जीव के साथ भी तिरस्कार होगा तो भी आप नहीं छूट पाएँगे। अर्थात् किसी के प्रति ज़रा-सा भी तिरस्कार नहीं चलेगा। और जब तक किसी के लिए तिरस्कार होगा, तब तक वीतराग नहीं हो पाएँगे। वीतराग होना पडे़गा, तभी आप छूट सकेंगे।

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