अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
दादाश्री : भोजन लेते समय आपको अमुक सब्ज़ी, जैसे कि टमाटर की ही रुचि हो, जिसकी आपको फिर से याद आती रहे, तो वह लुब्धता कहलाती है। टमाटर खाने में हर्ज नहीं है लेकिन फिर से याद नहीं आना चाहिए। वर्ना हमारी सारी शक्ति लुब्धता में चली जाएगी। इसलिए हमें कहना चाहिए कि, ‘जो भी आए मुझे मंज़ूर है।’ किसी भी प्रकार की लुब्धता नहीं होनी चाहिए। थाली में जो खाना आए, आम्ररस और रोटी आए, तो आराम से खाना। उसमें किसी प्रकार का हर्ज नहीं है। लेकिन जो कुछ आए उसे स्वीकार करना, दूसरा कुछ याद नहीं करना।
प्रश्नकर्ता : समरसी यानी क्या?
दादाश्री : समरसी यानी पूरणपूरी (दालवाली मीठी पूड़ी), दाल-भात, सब्ज़ी सब खाइए, मगर अकेली पूरणपूरी ही ठूँस-ठूँसकर नहीं खानी चाहिए।
कुछ लोग मिठाई खाना छोड़ देते हैं, तब मीठाई उस पर दावा करेगी कि मेरे साथ तुझे क्या तकलीफ है? दोष भैंसे का और दंड चरवाहे को! अरे, जीभ की क्या गलती? गलती तो भैंसे की है। भैंस की गलती यानी अज्ञानता की गलती।
प्रश्नकर्ता : लेकिन समरसी भोजन यानी क्या? उसमें भाव की समानता किस प्रकार रहती है?
दादाश्री : आप लोगों के समाज में जैसा भोजन बनाते हैं न, वह आपकी ‘समाज’ की रुचि अनुसार समरसी लगे, वैसा भोजन बनाते हैं। और अन्य लोगों को आपके ‘समाज’ का खिलाएँ तो उन्हें समरसी नहीं लगेगा, आप लोग मिर्च आदि कम खानेवाले हों। प्रत्येक जाति का समरसी भोजन अलग-अलग होता है। समरसी भोजन यानी टेस्टफुल, स्वादिष्ट भोजन। मिर्च ज़्यादा नहीं, फलाँ ज़्यादा नहीं, सब उचित मात्रा में डाला हो ऐसी वस्तु। कोई कहता है कि, ‘मैं तो सिर्फ दूध पीकर चला लूँगा।’ यह समरसी आहार नहीं कहलाता। समरसी यानी भली-भाँति षट्रस भोजन साथ मिलाकर खाओ, टेस्टफुल बनाकर खाओ। अन्य कुछ कड़वा नहीं खा पाओ तो करेले खाओ, कंकोड़ा खाओ, मेथी खाओ लेकिन कड़वा भी लेना चाहिए। कड़वा नहीं लेते इसी वज़ह से तो सारे रोग होते हैं। इसलिए फिर क्विनाइन (कड़वी दवाई) लेनी पड़ती है! उस रस की कमी होने से यह तकलीफ होती है। अर्थात् सभी रस लेने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : उसका मतलब यह है कि समरसी लेने के लिए शक्ति माँगना कि हे दादा भगवान! मैं समरसी आहार ले सकूँ ऐसी शक्ति दीजिए?
दादाश्री : हाँ, आप यह शक्ति माँगना। आपकी भावना क्या है? समरसी आहार लेने की आपकी भावना हुई, वही आपका पुरुषार्थ। और मैं शक्ति दूँ, इससे आपका पुरुषार्थ परिपक्व हो गया।
प्रश्नकर्ता : किसी भी रस में लुब्धता नहीं होनी चाहिए वह भी ठीक है?
दादाश्री : हाँ, अर्थात् किसी को ऐसा तो नहीं होना चाहिए कि मुझे खटाई के सिवा और कुछ रुचिकर नहीं लगता। कुछ कहते हैं कि, ‘हमें मीठा खाए बगैर मज़ा नहीं आता।’ तब तीखे का क्या कसूर? कुछ कहें, ‘हमें मीठा रुचिकर नहीं लगता, अकेला तीखा ही चाहिए।’ यह सब समरसी नहीं कहलाता। समरसी यानी सब ‘एक्सेप्टेड (स्वीकार्य)’, कम-ज़्यादा मात्रा में पर सब एक्सेप्टेड।
Book Name: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म (Page # 18, Paragraph #7; Page #19 ; Page #20 Paragraph #1 & #2)
Q. यदि कोई गलत है फिर भी उसके अहंकार को मैं चोट क्यों नहीं पहुँचाऊँ?
A. प्रश्नकर्ता : काम-धंधे में सामनेवाले का अहम् नहीं दुभे ऐसा हमेशा नहीं रह पाता, किसी न किसी के अहम् को तो ठेस लग ही जाती है। दादाश्री : उसे ‘अहम् दुभाना’...Read More
Q. वाणी को कैसे सुधारे? दुःखदाई शब्द बोलने से कैसे बचें?
A. दादाश्री : कठोर भाषा नहीं बोलनी चाहिए। किसी के साथ कठोर भाषा निकल गई और उसे बुरा लगा तो हमें उसको रूबरू कहना चाहिए कि 'भैया, मुझ से भूल हो गई, मा़फी माँगता...Read More
Q. अभाव और तिरस्कार करने से कैसे बचें?
A. प्रश्नकर्ता : ४. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति...Read More
Q. विषय विकार में से कैसे मुक्त हों?
A. ६. ‘हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति स्त्री, पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचित्मात्र भी विषय-विकार...Read More
Q. किसी भी धर्म के प्रमाण को क्यों नहीं दुभाना चाहिए?
A. प्रश्नकर्ता: २. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाए या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति...Read More
Q. किसी को आत्मज्ञान के रास्ते पर किस तरह लाएँ?
A. दादाश्री: आपका शब्द ऐसा निकले कि सामनेवाले का काम हो जाए। प्रश्नकर्ता: आप पौद्गलिक या ‘रीयल’ (आत्म) के कल्याण की बात करते हैं? दादाश्री: पुद्गल नहीं,...Read More
Q. अपने अध्यात्मिक विकास को किस तरह बढ़ाएँ?
A. ऐसा है न, इस काल के हिसाब से लोगों में इतनी शक्ति नहीं है। जितनी शक्ति है उतना ही दिया है। इतनी भावना करेंगे उनका अगले जन्म में मनुष्यत्व नहीं जाएगा, इसकी...Read More
Q. सभी धर्मो का सार : नौ कलमें
A. एक भाई से मैंने कहा कि, ‘इन नौ कलमों में सब समा गया है। इसमें कुछ भी बाकी नहीं रखा है। आप ये नौ कलमें रोज़ पढ़ना।’ फिर उसने कहा, ‘लेकिन यह नहीं हो पाएगा।’...Read More
Q. सांसारिक बंधनों से मुक्ति कैसे प्राप्त की जा सकती है?
A. प्रश्नकर्ता: ये जो नौ कलमें दी हैं वह विचार, वाणी और वर्तन की शुद्धता के लिए ही दी हैं न? दादाश्री: नहीं, नहीं। अक्रम मार्ग में इसकी ज़रूरत ही नहीं है। ये...Read More
subscribe your email for our latest news and events