अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें05 जून |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
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वाणी जड़ है, रिकॉर्ड ही है। यह टेपरिकॉर्ड बजता है, उसके पहले टेप में उतरता है या नहीं? उसी प्रकार इस वाणी की भी पूरी टेप उतर चुकी है। और उसे संयोग मिलते ही, जैसे पिन लगे और रिकॉर्ड शुरू हो जाती है, वैसे ही वाणी शुरू हो जाती है।
कई बार ऐसा होता है या नहीं कि आपने दृढ़ निश्चय किया हो कि सास के सामने या पति के सामने नहीं बोलना है, फिर भी बोल लिया जाता है या नहीं? बोल लिया जाता है। वह क्या है? अपनी तो इच्छा नहीं थी। तब क्या पति की इच्छा थी कि पत्नी मुझे गाली दे? तब फिर कौन बुलवाता है। यह तो रिकॉर्ड बोलता है और टेप हो चुकी रिकॉर्ड को कोई बाप भी बदल नहीं सकता।
बहुत बार कोई मन में पक्का करके आया हो कि आज तो उसे ऐसा सुनाना है और वैसा कह दूँगा। और जब उसके पास जाता है और दूसरे दो-पाँच लोगों को देखता है, तो एक अक्षर भी बोले बिना वापिस आता है या नहीं? अरे, बोलने जाए पर जबान ही नहीं चलती। ऐसा होता है या नहीं? यदि तेरी सत्ता की वाणी हो, तो तू चाहे, वैसी ही वाणी निकले। पर वैसा होता है? कैसे होगा?
यह विज्ञान इतना सुंदर है न कि किसी प्रकार से बाधक ही नहीं और झटपट हल ला दे ऐसा है। पर इस विज्ञान को लक्ष्य में रखे कि दादा ने कहा है कि वाणी मतलब बस रिकॉर्ड ही है, फिर कोई चाहे जैसा बोला हो या कोतवाल झिड़कता हो पर उसकी वाणी वह रिकॉर्ड ही है, वैसा फिट हो जाना चाहिए, तब फिर यह कोतवाल झिड़क रहा हो तो हमें असर नहीं करेगा।
कोई भी व्यक्ति बहुत अधिक बोलता हो तो भी हमें समझ जाना चाहिए कि यह रिकॉर्ड बोली। रिकॉर्ड को रिकॉर्ड समझें, तो हम लुढ़क नहीं पड़ेंगे। नहीं तो तन्मयाकार हो जाएँ तो क्या होगा?
अपने ज्ञान में यह 'वाणी रिकॉर्ड है' वह एक चाबी है और उसमें हमें गप्प नहीं मारनी है। वह है ही रिकॉर्ड। और रिकॉर्ड मानकर यदि आज से आरंभ करो तो? तब फिर है कोई दुःख? अपनी ऊँची जाति में लकड़ी लेकर मारामारी नहीं करते। यहाँ तो सब वाणी के ही धमाके! अब उसे जीत लेने के बाद रहा कुछ? इसलिए मैंने यह खुलासा किया कि वाणी रिकॉर्ड है। यह बाहर खुलासा करने का कारण क्या है? उसके कारण हमारे मन में से वाणी की कीमत चली जाएगी। हमें तो कोई चाहे जैसा बोले न तो भी उसकी एक अक्षर भी कीमत नहीं है। मैं जानता हूँ कि वह बेचारा किस तरह बोल सकता है? वह खुद ही लट्टू है न! और यह तो रिकॉर्ड बोल रहा है। वह तो लट्टू है, दया रखने जैसा है!
Book Name: वाणी, व्यवहार में... (Page #26 Last Paragragh; Page #27 & Page #28 Paragragh #1)
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