वाणी जड़ है, रिकॉर्ड ही है। यह टेपरिकॉर्ड बजता है, उसके पहले टेप में उतरता है या नहीं? उसी प्रकार इस वाणी की भी पूरी टेप उतर चुकी है। और उसे संयोग मिलते ही, जैसे पिन लगे और रिकॉर्ड शुरू हो जाती है, वैसे ही वाणी शुरू हो जाती है।
कई बार ऐसा होता है या नहीं कि आपने दृढ़ निश्चय किया हो कि सास के सामने या पति के सामने नहीं बोलना है, फिर भी बोल लिया जाता है या नहीं? बोल लिया जाता है। वह क्या है? अपनी तो इच्छा नहीं थी। तब क्या पति की इच्छा थी कि पत्नी मुझे गाली दे? तब फिर कौन बुलवाता है। यह तो रिकॉर्ड बोलता है और टेप हो चुकी रिकॉर्ड को कोई बाप भी बदल नहीं सकता।
बहुत बार कोई मन में पक्का करके आया हो कि आज तो उसे ऐसा सुनाना है और वैसा कह दूँगा। और जब उसके पास जाता है और दूसरे दो-पाँच लोगों को देखता है, तो एक अक्षर भी बोले बिना वापिस आता है या नहीं? अरे, बोलने जाए पर जबान ही नहीं चलती। ऐसा होता है या नहीं? यदि तेरी सत्ता की वाणी हो, तो तू चाहे, वैसी ही वाणी निकले। पर वैसा होता है? कैसे होगा?
यह विज्ञान इतना सुंदर है न कि किसी प्रकार से बाधक ही नहीं और झटपट हल ला दे ऐसा है। पर इस विज्ञान को लक्ष्य में रखे कि दादा ने कहा है कि वाणी मतलब बस रिकॉर्ड ही है, फिर कोई चाहे जैसा बोला हो या कोतवाल झिड़कता हो पर उसकी वाणी वह रिकॉर्ड ही है, वैसा फिट हो जाना चाहिए, तब फिर यह कोतवाल झिड़क रहा हो तो हमें असर नहीं करेगा।
कोई भी व्यक्ति बहुत अधिक बोलता हो तो भी हमें समझ जाना चाहिए कि यह रिकॉर्ड बोली। रिकॉर्ड को रिकॉर्ड समझें, तो हम लुढ़क नहीं पड़ेंगे। नहीं तो तन्मयाकार हो जाएँ तो क्या होगा?
अपने ज्ञान में यह 'वाणी रिकॉर्ड है' वह एक चाबी है और उसमें हमें गप्प नहीं मारनी है। वह है ही रिकॉर्ड। और रिकॉर्ड मानकर यदि आज से आरंभ करो तो? तब फिर है कोई दुःख? अपनी ऊँची जाति में लकड़ी लेकर मारामारी नहीं करते। यहाँ तो सब वाणी के ही धमाके! अब उसे जीत लेने के बाद रहा कुछ? इसलिए मैंने यह खुलासा किया कि वाणी रिकॉर्ड है। यह बाहर खुलासा करने का कारण क्या है? उसके कारण हमारे मन में से वाणी की कीमत चली जाएगी। हमें तो कोई चाहे जैसा बोले न तो भी उसकी एक अक्षर भी कीमत नहीं है। मैं जानता हूँ कि वह बेचारा किस तरह बोल सकता है? वह खुद ही लट्टू है न! और यह तो रिकॉर्ड बोल रहा है। वह तो लट्टू है, दया रखने जैसा है!
1) ये टेपरिकार्डर और ट्रान्समीटर जैसे कितने ही साधन अभी उपलब्ध हो गए हैं। इससे बड़े-बड़े लोगों को भय लगा ही करता है कि कोई कुछ रेकॉर्ड कर लेगा तो? अब उसमें (टेप मशीन में) तो शब्द टेप हुए उतना ही है। पर यह मनुष्य की बोडी-मन सारा ही टेप हो जाए वैसे हैं। उसका लोग ज़रा-सा भी भय नहीं रखते हैं। यदि सामनेवाला नींद में हो और आप कहो कि, 'यह नालायक है' तो वह उस व्यक्ति के भीतर टेप हो गया। वह फिर उस व्यक्ति को फल देगा। इसलिए सोते हुए व्यक्ति के लिए भी नहीं बोलना चाहिए, एक अक्षर भी नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि सारा टेप हो जाता है, वैसी यह मशीनरी है। बोलना हो तो अच्छा बोलना कि, 'साहब, आप बहुत अच्छे व्यक्ति हो।' अच्छा भाव रखना, तो उसका फल आपको सुख मिलेगा। पर उल्टा थोड़ा भी बोले, अंधेरे में भी बोले या अकेले में बोले, तो उसका फल कड़वा ज़हर जैसा आएगा। यह सब टेप ही हो जाएगा। इसलिए टेपिंग अच्छा करवाओ।
2) जगत् पूरा निर्दोष है। निर्दोष देखकर मैं आपको कहता हूँ कि निर्दोष है। किसलिए निर्दोष है जगत्? शुद्धात्मा निर्दोष हैं या नहीं? तब दोषित क्या लगता है? यह पुद्गल। अब पुद्गल उदयकर्म के आधीन है, पूरी ज़िन्दगी। अब उदयकर्म में हो वैसा यह बोलता है, उसमें आप क्या करोगे फिर?!
3) एक घंटा नौकर को, बेटे को या पत्नी को डाँटा हो तो फिर वह पति होकर या सास होकर आपको पूरी ज़िन्दगी कुचलते रहेंगे! न्याय तो चाहिए या नहीं चाहिए? यही भुगतना कहलाता है। आप किसीको दुःख दोगे तो आपके लिए पूरी ज़िन्दगी का दुःख आएगा। एक ही घंटा दुःख दोगे तो उसका फल पूरी ज़िन्दगी मिलेगा। फिर चिल्लाओ कि 'पत्नी मुझे ऐसा क्यों करती है?' पत्नी को ऐसा होता है कि, 'इस पति के साथ मुझसे ऐसा क्यों हो जाता है?' उसे भी दुःख होता है, पर क्या हो?
4) एक भी शब्द मज़ाक के लिए उपयोग नहीं किया हो, एक भी शब्द झूठे स्वार्थ या छीन लेने के लिए उपयोग नहीं किया हो, शब्द का दुरुपयोग नहीं किया हो, खुद का मान बढ़े उसके लिए वाणी नहीं बोले हों, तब वचनबल उत्पन्न होता है।
Book Name: वाणी, व्यवहार में... (Page #26 Last Paragragh; Page #27 & Page #28 Paragragh #1)
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