प्रश्नकर्ता : वचनबल किस तरह से उत्पन्न होता है?
दादाश्री : एक भी शब्द मज़ाक के लिए उपयोग नहीं किया हो, एक भी शब्द झूठे स्वार्थ या छीन लेने के लिए उपयोग नहीं किया हो, शब्द का दुरुपयोग नहीं किया हो, खुद का मान बढ़े उसके लिए वाणी नहीं बोले हों, तब वचनबल उत्पन्न होता है।
प्रश्नकर्ता : खुद के मान के लिए और स्वार्थ के लिए ठीक है, पर मज़ाक करें, उसमें क्या हर्ज है?
दादाश्री : मज़ाक करना तो बहुत गलत है। इसके बदले तो मान दो वह अच्छा! मज़ाक तो भगवान का हुआ कहलाता है! आपको ऐसा लगता है कि यह गधे जैसा मनुष्य है, 'आफ्टर ऑल' वह क्या है, वह पता लगा लो!! आफ्टर ऑल वह तो भगवान ही है न!
मुझे मज़ाक की बहुत आदत थी। मज़ाक यानी कैसा कि बहुत नुकसानदायक नहीं, पर सामनेवाले को मन में असर तो होता है न! अपनी बुद्धि अधिक बढ़ी हुई होती है, उसका दुरुपयोग किसमें होता है? कम बुद्धिवाले की मज़ाक करे उसमें! यह जोखिम जब से मुझे समझ में आया, तब से मज़ाक करना बंद हो गया। मज़ाक तो किया जाता होगा? मज़ाक तो भयंकर जोखिम है, गुनाह है! मज़ाक तो किसीका भी नहीं करना चाहिए।
फिर भी ऐसा मज़ाक करने में हर्ज नहीं है कि जिससे किसीको दुःख नहीं हो और सभी को आनंद हो। उसे निर्दोष मज़ाक कहा है। वह तो हम अभी भी करते हैं। क्योंकि मूल स्वभाव जाता नहीं है न! पर उसमें निर्दोषता ही होती है!
हम जोक (मज़ाक) करते हैं, पर निर्दोष जोक करते हैं। हम तो उसका रोग निकालते हैं और उसे शक्तिवाला बनाने के लिए जोक करते हैं। ज़रा मज़ा आए, आनंद आए और फिर वह आगे बढ़ता जाए। बा़की वह जोक किसीको दुःख नहीं देता। ऐसा मज़ाक चाहिए या नहीं चाहिए? सामनेवाला भी समझता है कि ये विनोद कर रहे हैं, मज़ाक नहीं उड़ा रहे हैं।
अब हम किसीका मज़ाक करें, तो उसके भी हमें प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। हमें ऐसे ही चल जाए वैसा नहीं है।
Book Name: वाणी, व्यवहार में... (Page #64 Paragragh #2 to #6 & Page #65 Paragragh #1, #2, #3, #4)
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