ज्ञानी पुरुष, जिन्हें आध्यात्मिक गुरु या आध्यात्मिक सुकानी भी कहते हैं, वही कि निशदिन जिन्हें आत्मा का उपयोग है। वे क्रोध, मान, माया और लोभ से मुक्त होते हैं। हमें उनकी उपस्थिति में शांति का अनुभव होता है, तब हमें यह अहसास होता है कि वे ज्ञानी पुरुष हैं। उनकी वाणी किसी भी शास्त्र में नहीं मिलती फिर भी हमें परिणाम अनुभव में आते हैं। ऐसे ऐसे होते हैं आध्यात्मिक मार्गदर्शक! आध्यात्मिक मार्ग पर ज्ञानी पुरुष की कृपा प्राप्त करने के लिए केवल परम विनय की ही आवश्यकता है।
तो आइए समझते हैं कि आध्यात्मिक मार्ग पर ज्ञानी की क्या भूमिका है…
बचपन से ही हमारे गुरु कहें, लोग सिखाएँ, मम्मी-पापा कहें, करो करो; वह करना पड़ता है। धर्म में ‘करना’ पड़ता है। साधन के आधार से करना पड़े या मन-वचन-काया के आधार से करना पड़े उसे धर्म कहा जाता है।
मंत्रों और शास्त्रों के आराधन से इन्सान डेवलप होता है और ऊपर चढ़ता जाता है। चौथी कक्षा में से पाँचवी कक्षा में जाए इससे वह पीएचडी हुआ नहीं कहलाएगा; अभी तो उसे लंबा सफर तय करना है, है न? ठीक इसी तरह, वह डेवलपमेन्ट के बिना पीएचडी में नहीं आ पाएगा। इसलिए डेवलपमेन्ट के लिए ये सभी कदम आवश्यक हैं!
इसलिए, धार्मिक गुरु धर्म सिखाते हैं। लेकिन अंत में उनमें से कई एक ही बात कहते हैं, “अगर तुम्हें आप आत्मा प्राप्त करना हो तो आत्मज्ञानी के पास, सत् पुरुष के पास जाना।” जब उन्हें पूछते हैं, “क्यों” तो उनका जवाब होता है, “मैं कुसंगी को सत्संगी करने आया हूँ। आगे का तुम्हें आत्मज्ञानी के पास मिलेगा।”
मोक्ष पाने के लिए मोक्षदाता चाहिए और मोक्षदाता ही ज्ञानी हैं। मोक्षदाता के बिना मोक्षप्राप्ति होती ही नहीं।
कोई भी मुमुक्षु के लिए, मूल मोक्षमार्ग जानना आवश्यक है। वह जानने के लिए मोक्षमार्ग के दाता की आवश्यकता है और वे तरणतारण होने चाहिए। शास्त्र हमें मार्गदर्शन तो देते हैं। फिर भी वास्तविकता में मोक्ष पाने के लिए अंत में शास्त्र भी यही कहते हैं कि “गो टु ज्ञानी!!”, क्योंकि आत्मा तो अवर्णनीय है और अवक्तव्य है, वाणी से बोला जा सके, वह ऐसा नहीं है। उसका वर्णन हो सके ऐसा नहीं है। इसलिए, आध्यात्मिक गुरु की प्राथमिक भूमिका हमें इस मार्ग पर चढ़ाने की है!
जिनका आत्मा प्रकट हुआ हो उनकी बहुत ज़्यादा अहमियत है, क्योंकि सिर्फ़ प्रकट दिया ही दूसरे दियों को जला सकता है। मान लीजिए, एक प्रकट दिया है; उस दिये से दूसरा दिया प्रकट करना हो तो उसके लिए दोनों दियों की प्रत्यक्ष हाज़री ज़रूरी है, है न? यही कारण है कि एक प्रत्यक्ष ज्ञानी का होना ज़रूरी है!
प्रत्यक्ष ज्ञानी की कृपा से हमें वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है कि “चंदु (अपना नाम समझें) अलग है और मैं शुद्धात्मा हूँ।” इसके साथ ही, शुद्धात्मा की जागृति शुरू हो जाती है। यह कोई क्रियाकांड नहीं है; यह विज्ञान है!
आत्मा हमेशा शुद्ध ही है! सिर्फ़, “मैं चंदु हूँ (अपना नाम समझें)” इस गलत मान्यता की वजह से हमें शुद्धात्मा का अनुभव नहीं होता। ज्ञानी की प्रत्यक्ष हाज़री में यह भ्रांति टूटती है और सच्ची समझ प्राप्त होती है। हमें मैं कौन हूँ, कर्ता कौन है और समस्याओं को कैसे समभाव से हल किया जाए इसका ज्ञान प्राप्त होता है। इस ज्ञान के आधार से हम शुद्धात्मा की जागृति, सच्ची मान्यता और सच्ची समझ में रह सकते हैं। यह ज्ञान हमें शुद्धात्मा की जागृति, सच्ची मान्यता और सही समझ में रहने में मदद करता है।
‘मैं कौन हूँ’ यह समझ में नहीं आता, तब तक धर्म-अधर्म में झोले खाने पड़ते हैं। जिस तरह लोग हमें देखते हैं, हम वही हैं ऐसा हम मानते हैं। सच्चा स्वरूप क्या है यह हमें पता नहीं। हमारे सामने जो आता है, उसे भी हम जिस तरह बाकि सारे पहचानते हैं उसी तरह पहचानते हैं। इसका कारण यह है कि अपने अस्तित्व का भान तो सभी को है, लेकिन अपने वस्तुत्व यानि की सच्चे स्वरूप का भान नहीं है। जब ज्ञानी हमें आत्मा का भान करवाते हैं, तब ‘खुद’ मूल अस्तित्व में रहता है। अर्थात् खुद खुद के स्वभाव में रहता है और व्यवहार आत्मा (प्रतिष्ठित आत्मा) उसके स्वभाव में रहता है। दोनों अलग हैं इसलिए फिर बिल्कुल अलग ही बरतता है। ज्ञानी पुरुष में अनंत प्रकार की सिद्धियाँ होती हैं, गज़ब की सिद्धियाँ होती हैं, इसलिए ऐसा हो सकता है।
‘ज्ञानी’ की यदि प्रतीति हो गई तो आत्मा की प्रतीति होकर ही रहेगी। आत्मा की प्रतीति होने के बाद, उसका लक्ष्य बैठ जाने के बाद संसारी कार्यों का कर्ता-भोक्तापन छूट जाता है। संसारी कार्य तो अपने आप होते ही रहते हैं।
ज्ञानी पुरुष ने संपूर्ण मोक्षमार्ग को देखा है, जाना है और अनुभव किया है। इसीलिए उस मार्ग में बाधक दोष, उस मार्ग में आने वाले विघ्न-आने वाली अड़चनों या आने वाले खतरे बता सकते हैं। उस मार्ग पर चलनेवालों को, दोषों का किस प्रकार निर्मूलन किया जा सकता है, वे उसका पूर्ण ज्ञान, पूर्ण उपाय बता सकते हैं।
ज्ञानी पुरुष के सत्संग में आते रहने से, उनकी वाणी सुनते रहने से, बात को समझते रहने से कुछ जागृति उत्पन्न होती है और निजदोषों को पहचानने की, देखने की शक्ति आ जाती है। उसके बाद दोषों की कोंपलों को उखाड़ने तक की जागृति उत्पन्न होने से क्रियाकारी रूप से पुरुषार्थ शुरू किया जाए तो दोष की गाँठों का निर्मूलन होता है।
लेकिन वह सारी साधना ज्ञानी पुरुष, हमारे परम आध्यात्मिक गुरु की आज्ञापूर्वक हो यह अहम है। और जैसे-जैसे ज्ञानी पुरुष उसे विस्तारपूर्वक दोषों की पहचान करवाते हैं, वैसे-वैसे उन दोषों का स्वरूप पकड़ में आता है, वह पता चलता है, फिर उन दोषों से मुक्त होने लगता है। इस प्रकार मोक्षमार्ग की पूर्णाहुति होती है। फिर भी दोषों से छूटने के लिए ज्ञानी पुरुष के चरणों में ही रहना।
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