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क्या अध्यात्म प्राप्त करने के लिए भौतिक सुख सुविधाओं का त्याग करना आवश्यक है?

आज के समाज में एक आम धारणा है कि यदि कोई आध्यात्मिक मार्ग अपनाना चाहता है, तो उसे सभी सांसारिक सुख सुविधाओं का त्याग करना होगा, सभी सांसारिक कर्तव्यों और दायित्वों से निवृत्त होना पड़ेगा, सभी सांसारिक बंधनों को त्यागना होगा और अंत में, खुद को ध्यान, जप, प्रार्थना, तपस्या आदि जैसी प्रवृत्तियों में जुड़ना पड़ेगा। तभी कोई अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

हालाँकि, परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, “त्याग सहज रूप से होना चाहिए। अपने आप ही छूट जाना चाहिए।“

श्रीमद राजचंद्र, भगवान श्री कृष्ण, अर्जुन और भगवान राम जैसे महापुरुषों ने अपने सभी सांसारिक कर्तव्यों और दायित्वों को पूरी ईमानदारी और आदर्श के साथ निभाते हुए आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किया।

उनके लिए ऐसा करना कैसे संभव हुआ?

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, ”भौतिक के अवलंबन के बगैर कोई नहीं रह पाता। ‘स्वरूप’ का अवलंबन मिलने के बाद भौतिक का अवलंबन नहीं रहता। ‘खुद’ निरालंब हो जाता है। किसी भी तरह के ‘इफेक्ट्स’ में, असर में ‘मैं मुक्त हूँ’ ऐसा रहा करे वही सच्ची आज़ादी है!”

ऐसी स्वतंत्रता को मोक्ष कहा गया है!

अध्यात्म का अंतिम उद्देश्य आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना, सभी कर्मों को पूरा करना और मोक्ष प्राप्त करना है। तो आइए, हम परम पूज्य दादा भगवान के शब्दों में समझते हैं कि 'मोक्ष' का अर्थ क्या है और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है...

प्रश्नकर्ता : मोक्ष अर्थात् क्या

दादाश्री : मोक्ष अर्थात् सर्व दु:खों से मुक्ति और सनातन परमानंद रहे। मोक्ष अर्थात् मुक्तभाव।

प्रश्नकर्ता : बंधन किससे है?

दादाश्री : अज्ञान से।

प्रश्नकर्ता : मोक्ष, वह स्थल है या अवस्था है?

दादाश्री : वह अवस्था है और वह यह ‘अवस्था’ नहीं है, वह स्वाभाविक अवस्था है।

प्रश्नकर्ता : मोक्ष अर्थात् स्वतंत्रता?

दादाश्री : हाँ, सच्ची आज़ादी-कोई ऊपरी नहीं और कोई अन्डरहैन्ड भी नहीं।

प्रश्नकर्ता : वैसी मुक्त स्थिति संसार में उपलब्ध है?

दादाश्री : क्यों नहीं? यह मैं प्राप्त करके बैठा ही हूँ न! संसार में रहकर उपलब्ध हो सकता है, उसके प्रमाण के रूप में मैं हूँ। मुझे देखकर आपको एन्करेजमेन्ट मिलता है कि संसार में भी उपलब्ध हो सके ऐसा है।

इसका अर्थ यह है कि स्वरूप की अज्ञानता आध्यात्मिक स्वतंत्रता के बंधन का कारण है, ना कि सांसारिक सुख। अतः स्वरूप की अज्ञानता को दूर करना आवश्यक है, यह तभी संभव होगा जब हम आत्मा को जानेंगे। एक बार हम अपने वास्तविक स्वरूप यानि कि आत्मा का अनुभव कर लेंगे; तब हम मोक्ष के मार्ग पर पहुँच जाएँगे।

लेकिन सांसारिक सुख-सुविधाओं को त्यागे बिना क्या हम आत्मा का अनुभव कर सकते हैं? चलिए पता करते हैं...

व्यवहार में रहना और मोक्षमार्ग में जाना, वे दोनों बातें वर्तमान परिस्थिति में एक साथ हो सकें, वैसा संभव नहीं है परन्तु अनुभव में आए वैसी बात है। जब आपको अनुभव में आएगा तब समझ में आएगा। ऐसे संभव नहीं लगता, परन्तु अनुभव में आए वैसी बात है। क्योंकि दोनों वस्तुएँ अलग हैं और जो वस्तुएँ अलग हों उनका भेद बरतता है।

अध्यात्म प्राप्त करने के दो मार्ग हैं:

  • क्रमिक मार्ग
  • अक्रम मार्ग

क्रमिक मार्ग एक साधारण पारंपरिक मार्ग है जिसमें व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं का त्याग करता है और धीरे-धीरे एक एक कदम चढ़ते हुए मोक्ष के अंतिम लक्ष्य तक पहुँचता है। इसमें सभी सांसारिक सुख सुविधाओं का त्याग करना पड़ता है।

दूसरा मार्ग अक्रम मार्ग है, जो एक अपवाद मार्ग है और सचमुच तो इस वर्तमान युग का एक आश्चर्य है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस पथ पर आगे बढ़ते समय, आपको किसी भौतिक वस्तु को ग्रहण करने या त्यागने की आवश्यकता नहीं है। आप अपना सांसारिक जीवन जीते हुए भी मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, जैसे चक्रवर्ती भरत राजाने किया था - उन्होंने युद्ध लड़े, कई कलाएँ सीखी, अपने राजवी जीवन का आनंद लिया और फिर भी मोक्ष प्राप्त किया!

यदि व्यवहार बाधक होता तो जिन्होंने व्यवहार छोड़ दिया है , तो अब उनके लिए हल आ जाना चाहिए, ऐसा अर्थ हुआ। वास्तव में मोक्ष के लिए व्यवहार बाधक नहीं है। मोक्ष में व्यवहार बाधा नहीं डालता, सिर्फ अज्ञान ही बाधक है। ‘ज्ञानी पुरुष’ ऐसा अचूक ज्ञान देते हैं कि तुरन्त ही वर्तन में आ जाता है। जो ज्ञान क्रियाकारी हो, वही ज्ञान कहलाता है।

अक्रम मार्ग में, हम ज्ञानी की कृपा से आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं!!!

मात्र दो घंटों में, हमें स्वरूप का अनुभवज्ञान प्राप्त हो जाता है। इस प्रक्रिया को ज्ञानविधि कहा जाता है, जो कि बहुत सरल है और पूरी तरह से निःशुल्क भी।

ज्ञानविधि में, हमें वास्तव में 'मैं कौन हूँ' का ज्ञान मिलता है और हमें सही समझ मिलती है कि, ''मैं चंदूलाल नहीं हूँ (आप यहाँ अपना नाम समझें); मैं एक शुद्धात्मा हूँ।”

इसलिए, अक्रम विज्ञान हमारे रोजमर्रा के सांसारिक जीवन में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता है। हम इस सांसारिक जीवन को सभी सुख-सुविधाओं के साथ जी सकते हैं, और फिर भी उससे असर मुक्त रह सकते हैं; ऐसा है इस अक्रम मार्ग का विज्ञान!

जब कोई ज्ञानी पुरुष की कृपा प्राप्त करता है और मोक्ष का वीज़ा प्राप्त कर लेता है, तो एक अद्भुत भविष्य हाथ में होता है। न केवल वर्तमान जीवन, बल्कि भविष्य भी सुख और आराम से भर जाता है। ऐसा है अक्रम मार्ग!

अंत में, सिर्फ़ इतना ही कहना है कि:

सांसारिक सुख को नहीं त्यागना है, लेकिन सुख की मूर्छा को अवश्य त्यागना है। अतः त्याग, सुख सुविधाओं के मोह का होना चाहिए। आत्मा की स्थिति में रहकर सांसारिक सुख को ज्ञेय के रूप में जानना है। हालाँकि, वहाँ पहुँचने के लिए, पहले हमें ज्ञानी पुरुष से आत्मज्ञान प्राप्त करना होगा!!!

वस्तु की मूर्च्छा गई, मतलब अध्यात्म नुकसान गया! आइए अगले प्रश्न में इस विषय पर गहराई से चर्चा करें...

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