व्यक्ति को अंतिम समय में बहुत सी इच्छाएँ अधूरी रह जाएँगी ऐसा लगता है। जब अचानक मृत्यु नज़दीक आती है तो “अभी बेटी की शादी नहीं हुई”, “पोते का मुँह देखकर जाना है”, “मेरे बाद परिवार का कौन?” ऐसी चिंताएँ उसे घेर लेती हैं। लेकिन हक़ीक़त यह है कि हमने कई-कई अवतार जन्म लिए हैं और मृत्यु भी पाई है। पूर्वजन्म के रिश्तेदारों को छोड़कर आए हैं, जो इस जन्म में हमें याद नहीं हैं। अब यहाँ के रिश्तेदारों को छोड़कर जाएँगे, अगले जन्म में इन्हें भी भूल जाएँगे। लेकिन मृत्यु के समय हम अगर चिंता, दुःख या पीड़ा के साथ देह छोड़ेंगे तो अगला जन्म अधोगति में जन्म होगा। इसलिए जीवन के अंतिम पलों में हमें हमारा ध्यान धर्म में, प्रभु की भक्ति में या आत्मा में रखना चाहिए, जिससे हमारी गति सुधर जाए। जब से पता चले कि मृत्यु नज़दीक है, तभी से सारी चिंता, द्वेष और उपाधियों (बाहर से आने वाला दुःख) को भूलाकर भगवान के ध्यान में आ जाना चाहिए।
परम पूज्य दादा भगवान एक प्रसंग का वर्णन करते हुए कहते हैं, “एक अस्सी साल के चाचा थे, उन्हें अस्पताल में भर्ती किया था। मैं जानता था कि ये दो-चार दिन में जाने वाले हैं यहाँ से, फिर भी मुझे कहते हैं कि ‘वे चंदूलाल तो हमें यहाँ देखने भी नहीं आते।’ हमने बताया कि ‘चंदूलाल तो आ गए।’ तब कहते कि ‘उस नगीनदास का क्या?’ अत: बिस्तर में पड़े-पड़े नोंध करते रहते कि कौन-कौन देखने आता है। अरे, अपने शरीर का ध्यान रख न! ये दो-चार दिनों में तो जाने वाला है। पहले तू अपनी गठरियाँ सँभाल। तेरी यहाँ से ले जाने की गठरी तो जमा कर। यह नगीनदास नहीं आया तो उसको क्या करना है?”
मृत्यु के समय राग-द्वेष बढ़ाने की बजाय भगवान के ध्यान में रहें तो गति सुधरेगी। इस बात को एक दृष्टांत से समझते हैं।
पोतनपुर नाम की नगरी में प्रसन्नचंद्र नाम के महान राजा थे। महावीर भगवान की देशना सुनकर उनको बहुत वैराग्य आ गया, इसलिए उन्होंने राज्य की गद्दी अपने नवयुवक राजकुमार को सौंप दी और खुद दीक्षा लेकर महावीर भगवान के साथ निकल पड़े।
एक बार महावीर भगवान राजगृही नगरी पधारे तब राजर्षि प्रसन्नचंद्र भी उनके साथ थे। प्रसन्नचंद्र मुनि एक पैर पर खड़े होकर, दोनों हाथों को ऊपर करके, सूर्य के सामने दृष्टि रखकर उग्र तपस्या कर रहे थे। मगध सम्राट श्रेणिक अपने लश्कर के साथ समोवसरण में भगवान महावीर को वंदन करने आए। प्रसन्नचंद्र मुनि की ऐसी कठोर तपस्या देखकर श्रेणिक राजा बहुत प्रभावित हुए।
दूसरी तरफ़ ऐसा हुआ कि बाहर दो सैनिक प्रसन्नचंद्र मुनि को देखकर पहचान गए और वहीं खड़े-खड़े अंदर-अंदर बातें कर रहे थे, ”यह तो वही प्रसन्नचंद्र राजा है न! खुद तो वैराग्य लेकर निकल पड़े और छोटे कुमार को राजगद्दी पर बैठा दिया। लेकिन छोटे राजकुमार के पास राज्य चलाने की कुशलता कहाँ से होगी? सुना है कि प्रसन्नचंद्र मुनि के दो मंत्री फूट गए हैं। उन्होंने चंपानगरी के दधिवाहन राजा के साथ मिलकर योजना बनाई है। दधिवाहन राजा ने प्रसन्नचंद्र राजा के राज्य के ऊपर चढ़ाई कर दी। इतना ही नहीं, राजकुमार को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया है और फूटे हुए मंत्री सामंत राजा बनकर वहाँ राज कर रहे हैं। बेचारे राजकुमार की कैसी हालत हुई!”
सैनिकों की बातें प्रसन्नचंद्र मुनि के कानों पर पड़ी। ये सब सुनकर उनके अंदर जबरदस्त द्वेष उत्पन्न हुआ और मन ही मन में दोनों मंत्रियों के साथ बड़ा युद्ध किया। बाहर से तो खुद ध्यान में खड़े थे, लेकिन अंदर घमासान युद्ध चल रहा था।
उसी समय समवसरण में श्रेणिक महाराजा ने भगवान महावीर से पूछा, “प्रभु! बाहर कठोर तप करने वाले प्रसन्नचंद्र मुनि अगर इसी क्षण मृत्यु को प्राप्त करें तो उनकी कौनसी गति होगी?”
भगवान महावीर ने कहा, “इस क्षण अगर उनकी मृत्यु हुई तो वे सातवीं नर्क में जाएँगे।”
महाराज श्रेणिक उलझन में पड़ गए। उन्होंने प्रभु से कहा, ”पर वे तो उग्र ध्यान कर रहे हैं, नर्क में कैसे जाएँगे?”
तब भगवान महावीर ने कहा कि, “बाहर से ध्यान में खड़े हैं पर अंदर भाव से तो ज़बरदस्त युद्ध चल रहा है। वे भाव से उनके मंत्रियों को मार रहे हैं। अंदर परिणति ज़बरदस्त कषाय वाली हो गई है। इस समय उनकी मृत्यु होगी तो वे सातवीं नर्क में जाएँगे।”
थोड़ी देर बाद फिर से श्रेणिक राजा ने पूछा, “तो अभी वे देह त्यागें तो उनकी कौनसी गति होगी?”
तब भगवान महावीर ने कहा, “अभी वह देह त्यागेंगे तो देवगति में जाएँगे।
श्रेणिक राजा को आश्चर्य हुआ। उन्होंने भगवान से कहा, “प्रभु, पहली बार नर्क गति में जाएँगे ऐसा कहा और थोड़े ही क्षणों के बाद देवगति में जाएँगे ऐसा कहा। ये दो बिल्कुल अलग बातें किस तरह से हो सकती हैं?
भगवान महावीर ने कहा, “भाव से युद्ध करते-करते प्रसन्न मुनि के पास शस्त्र कम पड़ गए। मन ही मन वे निराश हो गए। उन्हें लगा कि मुकुट निकालकर उसी से मार डालूँ। ऐसा सोचकर मुकुट निकालने के लिए माथे पर हाथ रखा तब उन्हें ध्यान आया कि माथे पर मुकुट तो क्या बाल भी नहीं हैं! अभी खुद मुनि के वेश में हैं, सिर का मुंडन किया हुआ है। तब प्रसन्नचंद्र मुनि को एहसास हुआ कि “अरे! मैं कैसे हिंसक विचारों में खो गया था? मैं तो साधु हूँ, मैं शस्त्र तो क्या, मन से भी कुछ नहीं उठा सकता।” ऐसा सोच कर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। अभी मुनि पश्चात्ताप में हैं, इसलिए इस क्षण उनकी मृत्यु होगी तो वे देवगति में जाएँगे।”
महाराजा श्रेणिक को भारी आश्चर्य हुआ। उन्होंने दोबारा पूछा कि, “अभी प्रसन्नचंद्र मुनि की मृत्यु हो तो वे कहाँ जाएँगे?”
भगवान महावीर ने कहा, “मोक्ष में जाएँगे!” उसी क्षण दुंदुभि बजी, देवों ने फूल बरसाए और आकाशवाणी हुई कि प्रसन्नचंद्र मुनि को केवलज्ञान हो गया है! अंदर पछतावा करते-करते प्रसन्नचंद्र मुनि ज्ञान की श्रेणियाँ चढ़ गए और उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया!
इस वृत्तांत का सार यह लेना है कि, जिस क्षण मृत्यु होती है उस क्षण अंदर के भाव कैसे हैं वह बहुत महत्त्वपूर्ण है और उसके आधार पर ही आनेवाला भव तय होता है।
कई बार मृत्यु के समय भयंकर वेदना होती है, तब भगवान भी याद ना आएँ ऐसा होता है। इसलिए ही स्वस्थ हैं तब तक जीवन की सभी गठरियाँ समेट लेनी चाहिए। पूरी ज़िंदगी में जिनके साथ ऋणानुबंध से बँधे हुए थे, उन सभी को याद करके, जिस-जिस व्यक्ति को हमारी वजह से दुःख हुआ हो उनके पश्चात्ताप करना शुरू कर देना चाहिए।
मृत्यु के समय अंदर के भाव शुद्ध रहे उसके लिए क्या करें, इसकी समझ देते हुए परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं कि, “आपके घर के सभी सदस्यों के साथ, आपसे कुछ न कुछ पहले दुःख हुआ होता है, उसके आपको प्रतिक्रमण करने हैं। संख्यात या असंख्यात जन्मों में जो राग-द्वेष, विषय, कषाय के दोष किए हों, उनकी क्षमा माँगता हूँ। ऐसे रोज़ एक-एक व्यक्ति की, ऐसा घर के हर एक व्यक्ति को याद कर-कर के करना चाहिए। बाद में आस-पास के, पास-पड़ोस के सबको लेकर उपयोग रखकर यह करते रहना चाहिए। आप करोगे उसके बाद यह बोझ हलका हो जाएगा। ऐसे ही हल्का नहीं होता है।“
परम पूज्य दादाश्री अपना अनुभव कहते हैं कि, “हमने सारे विश्व के साथ इस प्रकार निवारण किया है। पहले ऐसे निवारण किया था, तभी तो यह छुटकारा हुआ। जब तक हमारा दोष आपके मन में है, तब तक मुझे चैन नहीं लेने देगा! इसलिए, हम जब ऐसा प्रतिक्रमण करते हैं, तब वहाँ पर मिट जाता है।“
हमें जिस व्यक्ति के प्रतिक्रमण करने हों उस व्यक्ति की अगर मृत्यु हो गई हो तो, उनको याद करके प्रतिक्रमण करने की रीत परम पूज्य दादा भगवान हमें यहाँ बता रहे हैं।
प्रश्नकर्ता: जिसकी क्षमा माँगनी है, उस व्यक्ति का देह विलय हो गया हो, तो प्रतिक्रमण कैसे करें ?
दादाश्री: देहविलय हो गया हो, तब भी उसकी फोटो हो, उसका चेहरा याद हो, तो कर सकते हैं। चेहरा ज़रा याद नहीं हो और नाम मालूम हो, तो नाम लेकर भी कर सकते हैं, तो उसको पहुँच जाएगा सब।
प्रश्नकर्ता: यानी मृतक व्यक्ति के लिए प्रतिक्रमण किस प्रकार करना है?
दादाश्री: मन-वचन-काया, भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म, मृतक का नाम तथा उसके नाम की सर्व माया से भिन्न ऐसे, उसके शुद्धात्मा को याद करना, और बाद में 'ऐसी गलतियाँ की थीं' उन्हें याद करना (आलोचना)। उन गलतियों के लिए मुझे पश्चात्ताप होता है और उनके लिए मुझे क्षमा करो (प्रतिक्रमण)। ऐसी गलतियाँ नहीं होंगी ऐसा दृढ़ निश्चय करता हूँ, ऐसा तय करना है (प्रत्याखान)।
परम पूज्य दादा भगवान ने अंतिम समय में नीचे दी गई प्रार्थना करने का सूचन किया है, जहाँ खुद जिन भगवान को मानते हों उन्हें याद करके नीचे दी गई प्रार्थना कर सकते हैं।
हे दादा भगवान, हे श्री सीमंधर स्वामी प्रभु, मैं मन-वचन-काया...* (जिसका अंतिम समय आ गया हो वह व्यक्ति, खुद का नाम लें)... तथा ...*... के नाम की सर्व माया, भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म आप प्रकट परमात्म स्वरूप प्रभु के सुचरणों में समर्पित करता हूँ।
हे दादा भगवान, हे श्री सीमंधर स्वामी प्रभु, मैं आपकी अनन्य शरण लेता हूँ। मुझे आपकी अनन्य शरण मिले। अंतिम घड़ी पर हाज़िर रहना। मुझे उँगली पकड़कर मोक्ष में ले जाना। अंत तक संग में रहना।
हे प्रभु, मुझे मोक्ष के सिवाय इस जगत् की दूसरी कोई भी विनाशी चीज़ नहीं चाहिए। मेरा अगला जन्म आपके चरणों में और शरण में ही हो।
'दादा भगवान ना असीम जय जयकार हो' बोलते रहना।
* (जिसका अंतिम समय आ गया हो, उसे इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए।)
इस प्रकार वह व्यक्ति बार-बार बोले अथवा कोई उसके पास बार-बार बुलवाए
परम पूज्य दादा भगवान ने प्रियजन की मृत्यु के पश्चात् नीचे दी गई प्रार्थना करने का सूचन किया है, जहाँ खुद जिन भगवान को मानते हों उन्हें याद करके नीचे दी गई प्रार्थना कर सकते हैं।
प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, प्रत्यक्ष सीमंधर स्वामी की साक्षी में, देहधारी ... *... के मन-वचन-काया के योग, भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म से भिन्न ऐसे हे शुद्धात्मा भगवान, आप ऐसी कृपा करो कि ...*... जहाँ हो वहाँ सुख-शांति पाए, मोक्ष पाए।
आज दिन के अद्यक्षण पर्यंत मुझ से ..*.. के प्रति जो भी राग-द्वेष, कषाय हुए हों, उनकी माफ़ी चाहता हूँ। हृदयपूर्वक पछतावा करता हूँ। मुझे माफ करो और फिर से ऐसे दोष कभी भी नहीं हों, ऐसी शक्ति दो।'
* मृत व्यक्ति का नाम लें।
इस प्रकार प्रार्थना बार-बार करनी चाहिए। बाद में जितनी बार मृत व्यक्ति याद आए तब-तब यह प्रार्थना करनी चाहिए।
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