प्रार्थना क्या है? हम प्रार्थना के द्वारा खुद को कैसे सशक्त करते हैं?

बचपन से ही, हमने बहुत सी प्रार्थनाएँ बोली, गाई और सुनी हैं। समय के साथ, हमने प्रार्थना में विश्वास विकसित किया है। आइए आज हम यह समझ हासिल करके इस विश्वास को दृढ़ करें कि - 'प्रार्थना का अर्थ क्या है? प्रार्थना के क्या लाभ हैं? हमें भगवान से कैसे प्रार्थना करनी चाहिए? हमें किससे प्रार्थना करनी चाहिए? हमें क्या प्रार्थना करनी चाहिए?

यह समझ हमें एक बेहतर जीवन की ओर ले जाएगी और हमारी आध्यात्मिक यात्रा के विकास में भी मदद करेगी। प्रार्थना, जब सही समझ के साथ की जाती है, तब हमारे कल्याण और आध्यात्मिक विकास पर जबरदस्त प्रभाव पड़ता है।

तो सबसे पहले आइए समझते हैं कि प्रार्थना का अर्थ क्या है...

प्रार्थना भगवान के साथ संवाद है

Prayer

यह बातचीत है - हमारे भीतर के भगवान के साथ, या मूर्ति के साथ, और जिस भगवान की हम पूजा करते हैं, या उस दिव्य शक्ति के साथ, जिस पर हमारा दृढ़ विश्वास हैं।

यह एक वायरलेस कनेक्शन है! इसलिए, प्रार्थना किसी भी समय और किसी भी स्थान पर की जा सकती है!

सामान्य तौर पर, हमारे बुजुर्ग और गुरु सुबह जल्दी प्रार्थना करने की सलाह देते हैं। प्रात:काल सर्वप्रथम प्रार्थना करने के पीछे का विचार यह है कि हम दैनिक दिनचर्या में व्यस्त होने से पहले प्रार्थना को उचित प्राथमिकता दे रहे हैं। हालांकि, यदि सुबह प्रार्थना करना संभव नहीं है, तो हम दिन के किसी भी समय प्रार्थना कर सकते है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है|

प्रार्थना भगवान के समक्ष की गई विनती है!

परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, 'प्रार्थना' का अर्थ है ईश्वर से कुछ अलौकिक की अभिलाषा रखना है!

जब भी हमें कुछ चाहिए होता है लेकिन उसे प्राप्त करने में असमर्थ होते है या जब हमें किसी से मदद या मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है लेकिन मिल नहीं पाती है, तो हम ईश्वर से अत्यंत श्रद्धा, प्रेम और हृदयपूर्वक प्रार्थना करते हैं। और तब हमें हमारी प्रार्थना का उत्तर मिलता ही है!

जब हमारी प्रार्थना सच्ची होती है तो ज़रूर जो प्रार्थना करते हैं वो मिलता है।

प्रार्थना से उत्पन्न स्पंदनों का प्रभाव यह होता है कि हमें दैवी शक्तियों की सहायता प्राप्त होती ब्रह्मांड में कई देवी-देवता हैं जो किसी की भी मदद करने के लिए तैयार है यदि कोई सच्चे ह्रदय से उन्हें प्रार्थना करता है। लोगों को सही दिशा मिले ऐसी अदम्य भावना के कारण उनके पास बहुत पुण्य कर्म होता है। और चूंकि वे अब देवी-देवताओं के रूप में ब्रह्माण्ड में उपस्थित हैं इसलिए वे हमेशा उनकी मदद करते हैं जो शांति और मोक्ष (शाश्वत आनंद) के मार्ग पर प्रगति के लिए उत्सुक हैं। लेकिन हमें उनके समक्ष मांगना होगा! जब हम बीच रास्ते में भटक जाते हैं तब हम रूक कर किसी से मंजिल तक पहुँचने के लिए सही रास्ता पूछते है न? प्रार्थना में भी कुछ ऐसा ही होता है।

प्रार्थना भगवान से की गई विशेष विनती है:

Prayer to God

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, प्रार्थना का अर्थ है ईश्वर से से व्यापक अर्थ में मांगना! प्रार्थना का अर्थ है अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए उस शक्ति की माँग करना जिसकी हमारे पास कमी है।

उदहारण के लिए,
यदि हमारा लक्ष्य दूसरो को खुशी देना है, तो हम हर सुबह इस प्रार्थना को पांच बार हृदयपूर्वक से पढ़ सकते हैं: "हे भगवान,मेरे मन वचन काया से इस जगत के किसी भी जीव को किंचितमात्र भी दुःख न हो। " और यदि कोई हमारे साथ दुर्व्यवहार करता है, तो हम उस व्यक्ति पर कृपा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करेंगे। व्यक्ति को बदलने की कोशिश करने के बजाय, उनके लिए अच्छी भावनाएं रखना बेहतर है।

व्यक्ति के बुरे समय में प्रार्थना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

कभी-कभी, व्यक्ति अपने भाग्य को बदलने के प्रयास में प्रार्थना का सहारा लेता है। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी बीमारी से पीड़ित हैं, या हमारा समय खराब चल रहा है, तो हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमारे कर्म धुल जाएं।

तो, क्या प्रार्थना हमारे बुरे कर्मों को धो देती है? आइए समझते हैं....

अनेक प्रकार के कर्म भुगतने पड़ते हैं। एक प्रकार के कर्मों को प्रार्थना के द्वारा धोया जा सकता है, दूसरा प्रकार का कर्म वह होता है जिसे सच्चे आध्यात्मिक पुरुषार्थ द्वारा धोया जा सकता है, और तीसरे प्रकार का कर्म वह होता है जिसे हम कितना भी पुरुषार्थ करें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भुगतना ही पड़ता है। तीसरे प्रकार का कर्म चिकणे है।

शास्त्रों में इस चिकणे कर्म को 'निकाचित' कर्म कहा गया है। जिसमें व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में कर्म भोगना ही पड़ता है। हालांकि, उस समय प्रार्थना के माध्यम से कुछ राहत मिल सकती है। इसलिए हमेशा प्रार्थना करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रार्थना कर्म को नष्ट करने में सहायक तो नहीं है लेकिन इस अवस्था में व्यक्ति को स्थिरता और आंतरिक शांति देती है ।

जब हमारे कर्म हमे दुःख देते है, तब जागृति आती है। तब हम ईश्वर से प्रार्थना करते है कि, "हे ईश्वर हमे इन कर्मों से बचाओं। तभी हमे जागृति उत्पन्न होती है। ईश्वर हमे जागृति नहीं देते , उनका नाम लेने से ही जागृति आती है।

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, “बाहर बहुत समस्याएँ हैं, बहुत निराशा है, तो भजन करना अच्छा है। यदि व्यक्ति बहुत बेचैन है और वह ऊँचे स्वर में भजन गाए, तब भीतर स्थिति शांत हो जाएगी। इसके अलावा एक कारण यह है कि मौन प्रार्थना जैसा कुछ नहीं है।"

प्रार्थना का अर्थ है अपनी समस्याओं और चिंताओं को समर्पित करना

Prayer means surrendering

जीवन में जब भी कोई परेशानी आती है तब हम भगवान से प्रार्थना करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि प्रार्थना यानि अपनी सभी संदेहों और चिंताओं को समर्पित करना, अपनी सभी योजनाओं और उलझनों को भगवान के चरण कमल में समर्पित करना।

हम हर रोज़ प्रार्थना करते हैं, 'हे भगवान, मैं आपको समर्पित करता हूं।' अगर हमने भगवान के चरणों में शरण ली है, तो चिंता क्यों करें?'

भगवान हमेशा कहते हैं कि चिंता नहीं करनी चाहिए। चिंता सबसे बड़ा अहंकार है। चिंता तभी उत्पन्न होती है जब हम यह मान लेते हैं कि 'मैं अकेला व्यक्ति हूं जो यह कर सकता है। 'भगवान कृष्ण ने कहा है, "आप चिंता क्यों करते हैं, कृष्ण वह सब कुछ करेंगे जो आवश्यक है।" भगवान महावीर ने भी कहा है, "आप अपने पूर्व भाव के फल को बिल्कुल भी बदल नहीं पाएंगे।

परम पूज्य दादा भगवान बताते हैं कि, "जिस व्यक्ति को ईश्वर में विश्वास नहीं है, वह चिंता करेगा। यदि आपको वास्तव में ईश्वर में विश्वास होता, तो आप सब कुछ उस पर छोड़ देना चाहिए और शांति से सो जाना चाहिए। इस तरह चिंता कौन करेगा? इसलिए भगवान पर भरोसा रखें। क्या भगवान आपकी बात नहीं सुन रहे होंगे ?”

वे आगे सुझाव देते हैं, “एक सप्ताह के लिए सब कुछ भगवान पर छोड़ दो और चिंता करना बंद करो। फिर एक दिन, मेरे पास आओ और मैं तुम्हें भगवान को जानने में मदद करूंगा, जिससे तुम्हारी चिंताएं हमेशा के लिए दूर हो जाएंगी।"

प्रार्थना हमारी अपनी प्रगति के लिए एक साधन है।

Prayer for world

प्रत्येक माता-पिता को अपने बच्चों को सिखाना चाहिए कि हर सुबह स्नान करने के बाद, उन्हें शुद्ध मन से प्रार्थना करनी चाहिए,
"हे भगवान ! “मुझे और जगत के सभी लोगों को सच्ची समज दो, सदबुद्धि दो, जगत को मुक्ति दो।“

यदि आप, माता-पिता के तौर पर ऐसा करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप अपने बच्चों में अच्छे संस्कार सिंचन करने में सफल रहे हैं। पहले तो बच्चे विरोध कर सकते हैं, लेकिन थोड़ी दिनों बाद उन्हें प्रार्थना करना अच्छा लगेगा और वे सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे।

आमतौर पर एक बच्चा कम उम्र से ही प्रार्थना के महत्व को सीख जाता है। तभी उसके अंदर दृढ़ विश्वास विकसित होता है कि भगवान प्रार्थनाओं को सुनते है क्योंकि पूरे मन से की गई प्रार्थनाए निश्चित रूप से फल देती है और कुछ ही समय में, भगवान बच्चो के हमेशा के लिए मित्र बन जाते हैं!

प्रार्थना व्यक्ति को विनम्र बनाती है

जब व्यकित नम्रता से झुक कर प्रार्थना के लिए नमस्कार करता है तो वह स्वीकार करता है कि अभी उसे बहुत कुछ सीखना है। इसलिए जब हम प्रार्थना करते है, तब हम अपने अहंकार का समर्पित करते है और अपने अंदर की अशुद्धियों को छोड़ रहे होते है। व्यकित का अहंकार कम होना वही आध्यात्मिक उन्नति की क्रिया है, जो अपने लिए हो चुकी अज्ञान मान्यतों को धीरे- धीरे कम करेगा। जब हम भगवान से अपने अहंकार को नष्ट करने की शक्ति मांगते हैं, तो हममें परम विनय का विकास होता है।

प्रार्थना धीरे-धीरे हमें उसके (ईश्वर) जैसा बना देती है।

नियम यह है कि यदि हम ऐसे महापुरुषों के सर्वोच्च गुणों की पूजा करते हैं, जिन्होंने आध्यात्मिकता में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है, तो हमें धीरे-धीरे यह लगने लगता है कि बिना किसी प्रकार के पुरुषार्थ के वे गुण हमारे भीतर आ गए हैं। यह एक अद्भुत नियम है! जब हम प्रार्थना करते हैं, तो हमारा ध्यान बाहरी रूप से जिन्होंने आध्यात्मिकता में उत्कृष्टता प्राप्त की हो उन महापुरुषों के उच्च गुणों पर केंद्रित होता है और भीतर में पता न चले लेकिन दृढ़ इच्छा से वह गुण हममें विकसित होते हैं।

प्रार्थना हमें मीठी और मधुरी वाणी प्राप्त करने में मदद करती है

सच्चे चरित्र की शक्ति का अनुमान वाणी से लगाया जा सकता है। ज्ञानी पुरुष की वाणी मीठी और मधुरी होती है; यह किसी भी सुनने वाले के अंदर नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं उत्पन्न करती।

इस तरह की वाणी को प्राप्त करने के लिए, परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, "प्रति दिन आपको ह्रदय पूर्वक और प्रार्थनापूर्ण भाव से कहना चाहिए, 'मेरी वाणी से किसी को दुःख न पहुंचे, और मेरी वाणी ऐसी हो कि वह दूसरे व्यक्ति की मदद और सुख दे।' जब कारणरूप से वाणी के ऐसे बीज बोने के बाद व्यक्ति को सच्ची वाणी प्राप्त होती है।

What is Prayer?

Indirect worship is to worship an external object in which we have faith; but any perceived blessings actually come from the Soul within us. Direct worship is to worship the pure Soul within oneself.

प्रार्थना यदि सच न हो तो अपना महत्व खो देती है

यदि प्रार्थना करते समय हमारा चित्त हाजिर न हो, तो ऐसी प्रार्थना को सच्ची प्रार्थना नहीं माना जा सकता।

आइए नीचे दी गई बातचीत से इसे और समझते हैं:

प्रश्नकर्ता : प्रार्थना करने से उसका फल तो मिलता है न?

दादाश्री : प्रार्थना सच्ची होनी चाहिए। कोई हृदयशुध्धिवाला हो तो उसकी प्रार्थना सच्ची होती है, प्रार्थना करते समय चित्त कहीं ओर हो तो उसकी प्रार्थना सच्ची नहीं कहलाती। अँधाधुंध नहीं चलता, तोता आया राम-गया राम बोले, राम राम बोले, वह समझकर बोलता है या बिना समझे? यह प्रार्थनाएँ तो समझकर, विचारपूर्वक, ह्रदय को असर हो, ऐसी होनी चाहिए।

प्रश्नकर्ता : आपने वह वाक्य कहा था न, कि ‘किसी भी जीव को मन-वचन-काया से दु:ख न हो।’ सुबह में इतना बोलें तो चलेगा या नहीं चलेगा?

दादाश्री : वह पाँच बार बोलें, लेकिन वह इस तरह बोलना चाहिए कि पैसे गिनते समय जैसी स्थिति होती है, उस तरह बोलना चाहिए। रुपये गिनते समय जैसा चित्त होता है, जैसा अंत:करण होता है, वैसा ही बोलते समय रखना पड़ता है।

प्रश्नकर्ता : जब हम भगवान से प्रार्थना करने बैठते हैं तब, चाहे कितने भी प्रयत्न करें फिर भी हमारा मन उसी समय भटकने निकलता है।

दादाश्री : ऐसा है न, मन को, चित्त को, जहाँ पर प्रेम हो न, वहाँ स्थिर रहता है। प्रेम ही नहीं हो तो स्थिर कैसे रहेगा? अभी अगर बैंक में जाए, तो डॉलर में पूरे दिन स्थिर रहता है और भगवान में स्थिर नहीं रहता। भगवान से लोगों को प्रेम ही नहीं है। लोगों को स्त्रियो पर प्रेम है और डॉलर पर प्रेम है। दो जगहों पर प्रेम है। स्त्रियों पर भी कुछ देर के लिए ही। डॉलर (लक्ष्मी) पर पूरे दिन प्रेम रहता है, अत: वहाँ पर आराम से स्थिर रहता है। बैंक में रहता है या नहीं रहता? बैंक में दस हज़ार डॉलर, रुपए छुट्टे दिए हों तो गिनने में स्थिर रहता है या नहीं रहता?

प्रश्नकर्ता : वह तो कुछ ही देर के लिए न?

दादाश्री : नहीं, अंत तक। दस हज़ार गिनने तक रहता है। बीच में बेटा आ जाए फिर भी देखता तक नहीं, सही बात है या गलत बात?

प्रश्नकर्ता : बिल्कुल सही बात।

दादाश्री : यह तो उसकी डॉलर पर प्रीति है। भगवान पर बिल्कुल भी प्रीति नहीं है लोगों को। अगर एक ही दिन भी भगवान पर प्रीति आए न, तो आपको सभी चीज़ें मिल जाएँ। इस दुनिया में कोई चीज़ ऐसी नहीं है कि जो उसे न मिल सके, लेकिन भगवान पर प्रीति नहीं है।

प्रश्नकर्ता : भगवान पर प्रीति आए, उसके लिए क्या करना चाहिए, दादा?

दादाश्री : उसे जानना चाहिए कि भगवान से मुझे क्या फायदा मिलेगा? जैसे कि, डॉलर से फायदा मिलता है न, लोग वह जानते हैं, उसी तरह, इससे क्या फायदा मिलेगा, वह सब जानना चाहिए।

सच्ची प्रार्थना से, व्यक्ति अपने भीतर में बैठे हुए भगवान (खुद के आत्मा) से अधिक से अधिक जुड़ जाता है। ऐसी शुद्ध प्रार्थना से मनुष्य की संपूर्ण जागृति बदल जाती है।

प्रार्थना वह सेतु है जो हमें आत्मा के साथ अनुसन्धान करवाती है

Prayer

प्रार्थना का फल यह है की व्यक्ति जो चाहता है वह मिलता है। यदि व्यक्ति सांसारिक सुख मांगे तो सांसारिक फल मिलता है।

जब मनुष्य सांसारिक कारणों से प्रार्थना करता है तो उसे शांति की प्राप्ति के साथ-साथ अपने समस्याओं का समाधान भी मिल जाता है। लेकिन प्रार्थना के महत्व को सिर्फ इतने तक सीमित रखना कहाँ तक उचित है? प्रार्थना से और भी कई कड़ियाँ खुल सकती हैं।

परम पूज्य दादाश्री दो प्रकार की प्रार्थनाओं के बारे में बताते हैं:

  1. एक सांसारिक जीवन के उद्देश्य के लिए
  2. दूसरा अंतिम उद्देश्य और आत्मा के लक्ष्य के लिए।

इस दुनिया में हर जीव को सांसारिक समस्याएं हैं; ले लेकिन वास्तविक कठिनाइयाँ हमारे आंतरिक कषाय हैं - राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ क्योंकि वे हमें आत्मा से दूर ले जाते हैं।

आध्यात्मिक विकास चाहने वालों के लिए प्रार्थना अमूल्य है। सभी सांसारिक इच्छाओं का अंत ह्रदयस्पर्शी आध्यात्मिक प्रार्थना से होता है और अंतिम लक्ष्य तक भी पहुंचाती है | मुक्ति के मार्ग पर चलते समय जब कोई थकान महसूस करता है या अटक जाता है और ऐसा लगता है कि कोई प्रगति नहीं हो रही है, उस समय दिल से की गई प्रार्थना आध्यात्मिक प्रगति के द्वार खोलती है।

प्रार्थना का अर्थ है शक्तियाँ माँगना

हमारी गलतियां ही हमारी प्रगति की राह में सबसे बड़ी बाधा हैं। हमें अपने भीतर के सभी दोषों की एक सूची बनानी चाहिए और उन सभी दोषों से बाहर आने के लिए शक्तियाँ मांगनी चाहिए। जब कोई व्यक्ति प्रतिक्रमण करता है और दादाजी के पास ऐसी गलती फिर से न होने के लिए शक्तियाँ मांगता है, तो यह गलतियाँ धीरे-धीरे छूट जाएगी। प्रार्थना से छोटी-छोटी गलतियाँ अवश्य दूर हो जाती हैं। गलतियाँ होती रहती हैं क्योंकि हमने पहले उनके लिए प्रार्थना नहीं की। अब प्रार्थना के द्वारा वे विलीन हो जाएँगी।

जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया है, वह खुद के आत्मा से या ईश्वर से शक्ति मांग सकता है। जिन लोगों ने आत्मज्ञान प्राप्त नहीं किया है, वे जिस भगवान की पूजा करते हैं उनके पास या दादा भगवान से शक्ति मांग सकते हैं।

यहाँ कुछ प्रार्थनाएँ हैं जो किसी व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है।

प्रातः काल की प्रार्थना

हर सुबह हमें निम्नलिखित प्रार्थना हृदयपूर्वक करनी चाहिए, इससे हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आएगी।

"हे भगवान, मेरे मन, वचन और काया से किसी को दुःख न पहुंचे ऐसी शक्ति दो,
हे भगवान, मुझे अपने जैसा बना लें और मुझे मोक्ष में ले जाएं।"

अपनी पढ़ाई शुरू करने से पहले प्रतिदिन प्रार्थना करें

हर बच्चे की प्राथमिक जिम्मेदारी अच्छी तरह से पढ़ाई करना है। इसलिए, यदि प्रत्येक माता-पिता या शिक्षक अपने बच्चों को पढ़ने से पहले कैसे प्रार्थना करनी यह सिखाना चाहिए, इससे उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए पर्याप्त शक्ति मिलेगी:

उन्हें अपनी आंखें बंद करने और दस मिनट के लिए अच्छी स्थिरता के साथ जोर से बोलने के लिए कहें, 'दादा भगवान के असीम जय जय कार हो! और जब वे बोले तब उनसे प्रत्येक अक्षर को अपनी बंद आँखों से पढ़ने के लिए कहें।

हमारी याददाश्त को बढ़ाने और पढ़ाई को सरलता से समझने के लिए एक विशेष प्रार्थना।

परीक्षा से पहले, सामान्यता सभी को भय रहता कि जो मैंने पढ़ा है यदि वो मुझे याद नहीं रहा तो मैं क्या करूंगा। इस भय दूर करने लिए निम्नलिखित प्रार्थना का उपाय है:

“हे अंतर्यामी परमात्मा! मैं आपसे हृदयपूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि मुझे पढ़ाई के लिए सर्वोत्तम याददास्त दो ।
उसके लिए, हे अंतर्यामी परमात्मा! मेरे चित्तवृत्ति के जो जो दोष हुए हो उसकी क्षमा मांगता हूँ और चित्तवृत्ति को आप में और
पढ़ने में एकाग्र करने की शक्ति दो, शक्ति दो।“

मृत व्यक्ति के लिए प्रार्थना

जब हमारे जीवन की अंतिम समय है, तब हम निश्चित रूप से हृदयपूर्वक यह प्रार्थना कर सकते है। यदि कोई व्यक्ति मृत्युशय्या पर है, लेकिन अपनी बीमारी के कारण इस प्रार्थना को बोल नहीं सकते है, तो नजदीक की कोई भी व्यकित जो आसपास हो उनके लिए यह प्रार्थना जोर से कर सकता है:

“हे श्री सीमंधर स्वामी प्रभु!
मैं मन-वचन-काया तथा मेरे नाम की सर्व माया, भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म आप प्रकट परमात्म स्वरूप प्रभु के सुचरणों में समर्पित करता हूँ।
हे भगवान मैं आपकी अनन्य शरण लेता हूँ। मुझे आपकी अनन्य शरण मिले। अंतिम घड़ी पर हाज़िर रहना। मुझे उँगली पकड़कर मोक्ष में ले जाना। अंत तक संग में रहना।
हे प्रभु, मुझे मोक्ष के सिवाय इस जगत् की दूसरी कोई भी विनाशी चीज़ नहीं चाहिए। मेरा अगला जन्म आपके चरणों में और शरण में ही हो।“

साथ ही 'दादा भगवान असीम जय जयकार हो' का बोलने से भी शांति और आनंद की प्राप्ति होगी।

जो लोग मुसीबत में है उनके के लिए प्रार्थना !

इस दुनिया में कितना दुख और दर्द है! तो, हम इस स्थिति में मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं?

प्रार्थना, हाँ, सच्चे दिल से प्रार्थना अनुकूल संयोग ला सकती हैं।

आइए हम अलग अलग व्यकित द्वारा परम पूज्य दादा भगवान के साथ निम्नलिखित बातचीत से और अधिक समझ प्राप्त करें ...

प्रश्नकर्ता : अपने देश में तो बारिश नहीं हो रही हो तो प्रार्थना करते हैं तो फिर बारिश आती है, वह क्या है, समझाइए?

दादाश्री : हाँ, ऐसा है न प्रार्थना वह निमित्त है उसमें। अच्छा निमित्त हो और प्रार्थना करे तो बरसता भी है। ये तो साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स हैं। आपको भावना करनी चाहिए कि टाइम हो गया है।

प्रश्नकर्ता : कहीं भी भूकंप आए या हुल्लड़ हो जाए, प्राकृतिक आपदा आ जाए तब अगर हम यहाँ बैठे-बैठे ऐसी प्रार्थना करें कि ‘हे भगवान! वहाँ शांति रहे और सभी को हेल्प (मदद) मिले ऐसा कीजिए, तो वह पहुँचती है या सिर्फ यों ही गप्प है?

दादाश्री : नहीं। वह पहुँचती है। पहुँचती है और अगर ऐसी भावना करें कि ये लोग दु:खी हो जाए तो वह भी पहुँचती है। दिल सच्चा हो तो पहुँचती है। उसमें अंदर सत्यता, अंदर साफ है या नहीं इस पर आधार रखता है।

प्रश्नकर्ता : अगर सच्ची, अंदर से संपूर्ण अंत:करणपूर्वक प्रार्थना हो, तो अगर कोई बीमार हो तो उसके परिणाम पर असर होता है?

दादाश्री : फलित होती है न, लेकिन उतना प्योरिटी हो तो फलित होती है। मुख्य सवाल शुद्धता का, हार्ट का साफ होना, वह तो बहुत उच्च बात है। हार्ट साफ, ‘प्योर हार्ट।’ हार्ट बिल्कुल ‘प्योर’ होना, वह तो भगवान कहलाता है।

इस संसार के सभी जीवो के लिए प्रार्थना करनी !

अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात है कि सभी के लिए प्रार्थना करना है। निम्नलिखित प्रार्थना को दिन में आप जितनी बार करना चाहो उतनी बार आप कर सकते है!

" हे दादा जगकल्याण करो
सभी जीव मोक्ष का ज्ञान पमो
दुनिया के विघ्न विघ्न टले
स्वामी सब को शरण में ले।
दादा भगवान ना असीम जय जय कार हो।"

जब हमारी प्रार्थना दिल से होती है, तो वह दुनिया में कहीं भी पहुंच सकती है!

* नोट: दादा भगवान हमारे भीतर बिराजे हुए भगवान (शुद्ध आत्मा) को सम्बोधित हैं।

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