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क्या हम किसी को अनजाने में दुःख पहुँचाएँ तो वह गुनाह है?

प्रश्नकर्ता: अनजाने में किसी जीव की हिंसा हो जाए तो क्या करें?

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दादाश्री: अनजाने में हिंसा हो जाए किन्तु मालूम होने पर आपको तुरंत ही पश्चाताप होना चाहिए कि ‘ऐसा न हो।’ फिर से ऐसा न हो, उसके लिए जागृति रखना, ऐसा अपना उदेश्य रखना। भगवान ने कहा था, ‘किसी को मारना नहीं है ऐसा दृढ़ भाव रखना।’ किसी जीव को ज़रा सा भी दु:ख नहीं देना है, ऐसी हररोज़ पाँच बार भावना करना। ‘मन, वचन, काया से किसी जीव को किंचित्मात्र दु:ख न हो’ पाँच बार ऐसा बोलकर संसारी प्रक्रिया शुरू करना, तो अत: ज़िम्मेदारी कम हो जाएगी। क्योंकि भाव करने का अधिकार है, क्रिया अपनी सत्ता में नहीं है।

प्रश्नकर्ता: भूल से हो गया हो तो भी पाप लगेगा न?

दादाश्री: भूल से आग में हाथ डालें तो क्या होगा?

प्रश्नकर्ता: जल जाएगा।

दादाश्री: छोटा बच्चा नहीं जलेगा?

प्रश्नकर्ता: जलेगा।

दादाश्री: वह भी जलेगा? अर्थात् छोडे़गा नहीं। अनजाने में करो या जानबूझकर करो, कुछ भी छोडे़गा नहीं। 

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