प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण कर्मफल के करने हैं या सूक्ष्म के करने हैं?
दादाश्री : सूक्ष्म के होते हैं।
प्रश्नकर्ता : विचार के या भाव के?
दादाश्री : भाव के। विचार के पीछे भाव होता ही है। अतिक्रमण हुआ तो प्रतिक्रमण होना ही चाहिए। मन से अतिक्रमण हो जाये, मन में खराब विचार आया, इस बहन के लिए बुरा विचार आया यानी 'विचार अच्छा होना चाहिए' ऐसा कहकर विचार बदल देना। मन में ऐसा लगा कि 'यह नालायक है' तो ऐसा विचार क्यों आया? हमें उसकी लाय़की-नालाय़की देखने का राइट(अधिकार) ही नहीं। और अस्पष्ट रूप से कहना हो तो कहना कि, 'सभी अच्छे हैं।' 'अच्छे हैं' कहने पर आपको कर्म का दोष नहीं लगेगा पर यदि 'बुरा' कहा तो वह अतिक्रमण कहलाये। इसलिए उसका प्रतिक्रमण अवश्य करना पड़े।
यदि फिर से ऐसा विचार आए तो वह भरा हुआ माल है, उसके विचार आते रहें। जैसा स्टॉक रहा वैसा माल निकलता रहेगा। और एक मनुष्य को किसी प्रकार की समझदारी नहीं है पर उसके मन में ऐसा हो कि, 'मैं बहुत सयाना हूँ।' ऐसा स्टॉक किया हुआ है। मगर वह स्टोक उसका कोई नुकसान नहीं करता। इसलिए उसे प्रतिक्रमण करने की ज़रूरत नहीं है।
विचार आयेंगे सही मगर उन्हें निर्माल्य कर डालना। प्रतिक्रमण कर डालना। विचार निर्जीव है।
प्रतिक्रमण शुद्धात्मा को कैसे पहुँचाना? 'देहधारी चंदुभाई, चंदुभाई के नाम की सर्व माया, चंदुभाई के मन-वचन-काया का योग, भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म से भिन्न ऐसे, हे प्रकट शुद्धात्मा! आपके लिए मुझे यह विचार आया उसके लिए मैं आपकी क्षमा माँगता हूँ और प्रतिक्रमण करता हूँ। अब फिर से ऐसा नहीं करूँगा।
बिना गाँठ पड़े विचार ही नहीं आता। जैसे ही विचार आया कि तुरंत प्रतिक्रमण अवश्य करना। यानी इकट्ठा प्रतिक्रमण करना। इन दस मिनटों में जितने भी विचार आए हैं, उन सभी का मैं एक साथ प्रतिक्रमण करता हूँ।
दादावाणी-अगस्त-2007 (Page #16)
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