प्रश्नकर्ता : हम झूठ बोलें हो तो वह भी कर्म बाँधना ही कहलाएगा न?
दादाश्री : अवश्य ही! लेकिन झूठ बोलने का भाव करना तो झूठ बोलने से भारी कर्म है। झूठ बोलना तो मानों कर्म फल है। झूठ बोलने का भाव ही, झूठ बोलने का हमारा निश्चय, उससे कर्मबंधन होता है। आपकी समझ में आया? यह वाक्य आपकी हेल्प (मदद) करेगा कुछ? क्या हेल्प करेगा?
प्रश्नकर्ता : झूठ बोलना रोक देना चाहिए।
दादाश्री : नहीं, झूठ बोलने का अभिप्राय ही छोड़ देना चाहिए। और झूठ बोल दिया तो पश्चाताप करना चाहिए कि ‘क्या करूँ? ऐसा झूठ बोलना नहीं चाहिए।’ लेकिन झूठ बोलना बंद नहीं हो सकेगा, लेकिन वह अभिप्राय बंद हो जाएगा। ‘अब आज से झूठ नहीं बोलूँगा, झूठ बोलना महापाप है, महा दु:खदायी है, और झूठ बोलना ही बंधन है।’ ऐसा आपका अभिप्राय यदि हो गया तो आपके झूठ बोलने से संबंधित सभी पाप बंद हो जाएँगे
Book Name: प्रतिक्रमण (Page #68 Paragraph #4 to #7)
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