स्वप्नदोष दोष होने के मुख्य दो कारण है।
आईये जाने विस्तार से, कैसे विषय आकर्षण से स्वप्नदोषदोष उत्पन्न होता है और स्वप्नदोषदोष को कैसे रोका जा सकते है , जानते हे परम पूज्य दादाश्री से :
ब्रह्मचर्य व्रत लिया हो और कुछ उल्टा-सीधा हो जाए न, तब उलझ जाता है। एक लड़का उलझ रहा था, मैंने कहा, ‘क्यों भाई, उलझन में हो?’ आपसे बताते हुए मुझे शर्म आ रही है। मैंने कहा, ‘क्या शर्म आ रही है? लिखकर दे दे।’ मुँह से कहने में शर्म आती है तो लिखकर दे दे। ‘महीने में दो-तीन बार मुझे डिस्चार्ज हो जाता है’, कहता है। ‘अरे पगले, इसमें तो क्या इतना घबरा जाता है? तेरी नीयत नहीं है न? तेरी नीयत खराब है?’ तो कहता है, ‘बिल्कुल नहीं, बिल्कुल नहीं।’ तब मैंने कहा, तेरी नीयत साफ हो तो ब्रह्मचर्य ही है’, कहा। तब कहने लगा, ‘लेकिन क्या ऐसा हो सकता है?’ मैंने कहा, ‘भाई, वह क्या गलन नहीं है? वह तो जो पूरण हुआ है, वह गलन हो जाता है। उसमें तेरी नीयत नहीं बिगड़नी चाहिए। ऐसा रखना कि संभालना है। नीयत नहीं बिगड़नी चाहिए कि इसमें सुख है।’ अगर अंदर उलझ जाए न बेचारा तो तुरंत ठीक कर देता हूँ।
प्रश्नकर्ता : नीयत ही मूल चीज़ है! ‘नियत कैसी है’ उसी पर आधारित है सबकुछ।
दादाश्री : तेरी नीयत किस तरफ की है? तेरी नीयत खराब हो और शायद डिस्चार्ज नहीं हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि तू ब्रह्मचारी बन जाएगा। भगवान बहुत पक्के थे, कौन ऐसे समझाएगा? और कुदरत तो अपने नियम में ही है न! उल्टी हो जाए तो मर जाएगा, क्या ऐसा हो गया? शरीर है तो उल्टी नहीं होगी तो क्या होगा? रोज़ सुल्टी होती है तो फिर उल्टी नहीं होगी वापस?
प्रश्नकर्ता : अभी लास्ट थोड़े समय में कई बार पतन हो गया था, डिस्चार्ज हो गया था।
दादाश्री : तुम्हारा चित्त जितना किसी में चिपके उतना ही अंदर अपने आप डिस्चार्ज हो जाता है, फिर वह निकल जाता है। जो मृत हो जाता है, वह निकल जाता है। जो मृत नहीं होता, वह नहीं निकलता।
प्रश्नकर्ता : नहीं। उसका मतलब क्या यह हुआ कि अभी भी कहीं पर चित्त चिपकता है।
दादाश्री : हं, चिपका नहीं। अंदर चिपकता होगा थोड़ा बहुत, उसका फल है। चिपकने के बाद यह सब उखाड़ लो, यों प्रतिक्रमण करके। थोड़ा चिपक जाता है न? यानी चिपक जाए तो नियम ऐसा है कि अंदर वह तुरंत अलग हो जाता है और फिर मृत हो जाता है। वह तो अंदर रहता है, उसके बजाय अगर निकल जाए तो उसमें परेशान मत होना।
परम पूज्य दादाश्री कहते है की रात्रि का भोजन ज्यादा खाने से स्वप्नदोष होते है , आइए इस तथ्य को अब उन्हीं के शब्दों में समझते हैं कि कैसे स्वप्नदोष को बंद करें:
प्रश्नकर्ता : स्त्री के बारे में जो सपने आते हैं, वे हमें इस ब्रह्मचर्य की भावना की वजह से अच्छे नहीं लगते तो उसका कोई उपाय है?
दादाश्री : सपने, वह तो अलग चीज़ है। आपको अच्छे लगें तो नुकसान करेंगे और अच्छे नहीं लगें तो कोई नुकसान नहीं करेंगे। भले ही वे कैसे भी आए, अच्छे लगें तो आपको वैसा होगा और अच्छे नहीं लगें तो कोई झंझट ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : स्वप्नदोष क्यों होते होंगे?
दादाश्री : ऊपर पानी की टंकी हो, वह पानी नीचे गिरने लगे तो नहीं समझ जाते कि छलककर उभर गई है! स्वप्नदोष मतलब उभरना। टंकी छलककर उभर रही हो तो कॉक नहीं रखना चाहिए?
यदि आहार पर कंट्रोल करे तो स्वप्नदोष नहीं होगा। इसलिए ये महाराज एक ही बार आहार करते हैं न, वहाँ! और कुछ भी नहीं लेते, चाय-वाय कुछ भी नहीं लेते।
प्रश्नकर्ता : उसमें रात का आहार महत्वपूर्ण है। रात का कम कर देना चाहिए।
दादाश्री : रात को खाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। महाराज, एक ही बार आहार लेते हैं। लेकिन चार रोटी खा जाते हैं, उनकी उम्र तो है न। बाकी चाय नहीं, और कोई झंझट ही नहीं। पूरे दिन के लिए टंकी भर ली। टंकी भर ली तो वह पेट्रोल चलता रहता है।
अत: डिस्चार्ज तो, यह खाना यदि कंट्रोल में हो तो और कुछ भी नहीं होगा। ये तो भर-भरके खाते हैं। जो हो वह और कोई विचित्र आहार हो, तब क्या होगा? जैन तो कैसे समझदार! ऐसा आहार नहीं। ऐसा वैसा कुछ नहीं होता। फिर भी डिस्चार्ज हो जाए तो, उसमें हर्ज नहीं है। भगवान ने कहा है ‘उसमें तो हर्ज नहीं।’ वह जब भर जाए तो फिर ढक्कन खुल जाता है। जब तक ब्रह्मचर्य ऊध्र्वगमन नहीं हुआ है, तब तक अधोगमन ही होता है। ऊध्र्वगमन तो जब ब्रह्मचर्यव्रत लेना तय किया तभी से शुरूआत हो जाती है।
सावधानी से चलना अच्छा। महीने में चार बार हो जाए, फिर भी हर्ज नहीं है। हमें जान-बूझकर डिस्चार्ज नहीं करना चाहिए। वह गुनाह है। अपने आप हो जाए तो उसमें हर्ज नहीं। ये सब तो उल्टा-सीधा खाने का परिणाम है। जान-बूझकर डिस्चार्ज करना, वह भयंकर गुनाह है। आत्महत्या कहलाएगा।
1) लोगों में यह प्रचलित है, कि वीर्य का डिस्चार्ज शरीर की प्राकृतिक क्रिया है | यह लीकेज नहीं है | ज्ञानी पुरुष के दृष्टिकोण से दृष्टि बिगड़ने से और गलत विचारों से वीर्य का कुछ हिस्सा अपव्यय (एग्जॉस्ट) हो जाता है | फिर वह डिस्चार्ज हो जाता है |
2) ये पिछले घाटे सभी स्वप्नावस्था में चले जाएँगे। स्वप्नावस्था के लिए हम किसी को गुनहगार नहीं मानते हैं। हम जागृत अवस्था (में डिस्चार्ज करनेवाले) को गुनहगार मानते हैं, खुली आँख से जागृत अवस्था! फिर भी स्वप्नावस्था में जो हो जाता है उसे बिलकुल नज़रअंदाज़ करने जैसा नहीं है, वहाँ सावधानी बरतना। स्वप्नावस्था के बाद सबेरे पछतावा करना पड़ता है। उसका प्रतिक्रमण करना होगा कि दुबारा ऐसा नहीं हो।
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