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ब्रह्मचारी के विशिष्ट गुण क्या हैं?

एक ब्रह्मचारी होने के लिए सिर्फ ब्रह्मचर्य का व्रत लेना ही काफी नहीं है

ब्रह्मचारी होने का अर्थ क्या होता है? आइये परम पूज्य दादाश्री से इस प्रश्न का उत्तर जाने। दादाश्री ने एक ब्रह्मचारी मे कौन से गुण होने चाहिये, इसके बारे मे सविस्तार से बताया है। 

  • पूरी तरह से आत्मनिर्भर। आर्थिक रूप से और अन्य प्रकार से स्वयं की देखभाल करने में सक्षम हो।
  • एक ब्रह्मचारी अपना समय और शक्ति पूरी तरह से अपने ध्येय के प्रति समर्पित कर सकता है, क्योंकि उसपर जीवन साथी, ससुराल अथवा बच्चों की ज़िम्मेदारी नहीं होती है।
  • उनमें वचन-बल होता है वे जैसा कहते है वैसा ही कर पाते है।
  • उनमे ज़बरदस्त मनोबल होता है।
  • उनका मन उनके नियंत्रण में रहता है।
  • वे आसानी से अपना ध्येय प्राप्त कर सकते है।
  • उनके अंतर्मन और द्रष्टि शुद्ध हो चुके होते है, जिससे संसारिक चीज़ों की इच्छा ही नहीं होती!
  • ब्रह्मचर्य का पालन करने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है, इसके फलस्वरूप उन्हें किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते।
  • विषय विकार में पड़ने के बजाय उन्हें सहर्ष मर जाना स्वीकार होता है। विषय विकार की परिस्थितियों में भी वे ब्रह्मचर्य व्रत भंग नहीं होने देते इस हद तक मजबूत होना आवश्यक है। और इसके लिए दृढ़ संकल्प कैसे प्राप्त होता है? उसके लिए ब्रह्मचर्य पालन की शुद्ध भावना और इसके प्रति संपूर्ण सिंसेरिटी (ईमानदारी) होना आवश्यक है।

जिन लोगों ने ब्रह्मचर्य का रास्ता चुना है, उनमें ऊपर लिखे गए सभी विशिष्ट गुण होते है। यद्यपि जिन्होंने ब्रह्मचर्य के उच्चतम स्तर को प्राप्त किया है उनमें ये अतिरिक्त गुण भी होते हैं: 

  • उन्हें किसी के लिए भी विषय का विचार तक नहीं आता!
  • उन्हें देखने मात्र से लोग आनंदित हो जाते है। (दुःख भूल जाते हे)
  • ब्रह्मचर्य, व्यक्ति में तेजस्विता लाता है। त्वचा गोरी हो या काली इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। चेहरे पर तेज होना चाहिए। ब्रह्मचर्य का तेज आपके सामने की दीवार पर भी प्रतिबिंबित होगा! दूसरे देशों के लोग भी अगर ब्रह्मचारी की ओर देखेंगे,  वे भी प्रभावित होकर कहेंगे  “ देखा ब्रह्मचारी आये  है!”
  • किसी भी शास्त्र और पुस्तकों के आध्यात्मिक सार को धारण करने में सक्षम होते है।
  • उनके विचार, आंतरिक भाव और आचरण इस प्रकार के होते हैं की किसी को भी उनसे  किंचित मात्र भी दुःख नहीं होता।
  • उनके क्रोध-मान-लोभ, उनके काबू में होते हैं।
  • यहां तक ​​कि उनका चरित्र बहुत ऊंचा होता है।
  • उनमें  मोरालिटी और  सिंसेरिटी सम्पूर्ण विकसित होते है।
  • उनमें सहज नम्रता होती है। सहज अर्थात उन्हें विनम्र होने का प्रयास नहीं करना पड़ता। वे सभी के साथ सहज ही नम्रतापूर्वक बातें करते है।
  • उनमें सहज सरलता होती है। इसके लिए उन्हें प्रयास नहीं करना पड़ता। आप जैसा कहोगे वैसा वे करेंगे।
  • उनमें सहज संतोष होता है, यंहा तक कि अगर थाली में सिर्फ थोडा चावल और कढी दे, तब भी उनका अहंकार खड़ा नहीं होता। सहज संतोष!
  • उनमें सहज क्षमा होती है।
  • उनके शील का ऐसा प्रभाव होता है कि कोई उनका अपमान करना चाहता हो तब भी एक शब्द भी नहीं बोल पाएगा!
  • उनमें परिग्रह-अपरिग्रह सहज और सरल होता है।
  • उनमे संपूर्ण स्थिरता एवं शुद्धता होती है।
  • यहां तक कि देवता भी उन्हें नमन करते हैं।
  • यहाँ तक कि उनपर भगवान की भी छाया नहीं पड़ती।

जब यह सभी गुण उनमें सहज हो जाते है तब शीलवान पद प्राप्त होता है। 

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