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जीवमात्र को अभयदान देने पर इतना भार क्यों दिया गया है?

प्रश्नकर्ता : धर्म में अभयदान को इतना अधिक महत्व क्यों दिया है?

दादाश्री :  अभयदान को तो सभी लोगों ने महत्व दिया है। अभयदान तो मुख्य वस्तु है। अभयदान मतलब क्या कि यहाँ चिडि़याँ बैठी हों तो वे उड़ जाएँगी, ऐसा समझकर हमें धीरे से दूसरी तरफ से चले जाना। रात को बारह बजे आए हों और दो कुत्ते सो गए हों तो अपने बूट से वे चोंककर जाग जाएँगे, ऐसा मानकर बूट पैरों में से निकालकर और धीरे-धीरे घर आना चाहिए। हमसे कोई डरे, उसे मनुष्यता ही कैसे कहा जाए? बाहर कुत्ते भी हमसे नहीं डरने चाहिए। हम ऐसे पैर खटकाते हुए आएँ और कुत्ता कान ऐसे करके खड़ा हो तो हमें समझ जाना चाहिए कि ओहोहो, अभयदान चूक गए! अभयदान यानी कोई भी जीव हमसे भयभीत न हो। कहीं भी देखा है अभयदानी पुरुषों को? अभयदान तो सबसे बड़ा दान है।

मैं बाईस साल का था, तब कुत्ते को नहीं डरने देता था। हम निरंतर अभयदान ही देते हैं, दूसरा कुछ देते नहीं। हमारे जैसा अभयदान देना यदि कोई सीख गया तो उसका कल्याण हो जाए! भय का दान देने की तो लोगों को प्रेक्टिस पहले से ही है, नहीं? 'मैं तुझे देख लूँगा' कहेगा। तो वह अभयदान कहलाएगा या भय का दान कहलाएगा?

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