मोक्ष के बाद क्या होता है? मोक्ष के बाद आत्मा का क्या होता है? जब आप मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं, तब आप पुरे ब्रह्मांड के ज्ञाता द्रष्टा के रूप में आत्मा के अनंत सुख में रहते हैं। जब व्यक्ति को अनुभव होता है कि न तो वह शरीर है और न तो नाम है परन्तु एक केवल शुद्धात्मा है, तब वह मोक्ष को प्राप्त करता है। लेकिन, इस सांसारिक जीवन में आत्मा आया कैसे? आत्मा की उत्क्रांति कैसे होती है? चलिए जानें अधिक!
इस ब्रह्मांड में अनंत आत्माएं और जड़ परमाणु हैं। आत्मा उन छ: तत्वों में से एक है, जो शाश्वत है। आध्यात्मिक विज्ञान के नियम के अनुसार जो शाश्वत है, उसका कोई आदि या अंत नहीं होता।
जब दो शाश्वत तत्त्व, आत्मा और जड़ परमाणु संपर्क में आते है तब जीव अस्तित्व में आता है। तीसरा तत्त्व अहंकार "मैं चंदू हूँ (पाठक अपना नाम समझें)" इस मान्यता के साथ उत्पन्न होता है। यह एक कुदरती घटना है जैसे उदाहरण के रूप से सूर्य और पानी के मिलने से बाष्पीभवन होता है।
आत्मा अज्ञानता के आवरण से ढँका हुआ है और पहले से निगोद (वह स्थान जहाँ अनंत आत्माएँ पूरी तरह से आवरण से ढके हुए हैं) में हैं। उत्क्रांति के नियम के अनुसार यह फिर समसरण मार्ग में प्रवेश करता है, जहाँ एकेन्द्रिय जीव से पंचेन्द्रिय जीव मनुष्य तक विकसित होता है। हालाँकि, मनुष्य के योनि में प्रवेश करने के बाद, कर्ता के रूप में अहंकार उत्पन्न होता है और उसी प्रकार से पाप कर्म और पुण्य कर्म को बांधता है। इन्ही कर्मों के आधार से चार गति (देवगति, मनुष्यगति, नर्कगति और जानवरगति ) में जन्म लेता है।
जब एक बार जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होने का भाव होता है और शाश्वत सुख की खोज शुरू होती है, तब वह मोक्ष के मार्ग को प्राप्त करता है। जब कोई अपने वास्तविक स्वरूप का अनुभव करता है, तब वह सभी आवरणों से मुक्त हो जाता है और जब आत्मा सर्व आवरणों से मुक्त हो जाता है तब इस ब्रह्मांड से मुक्त हो जाता है। (दूसरी स्थिति का मोक्ष)
पूरा ब्रह्मांड जैसे एक मनुष्य दोनों पैर फैलाकर और कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो ऐसे आकार का है। हम (मनुष्य, पशु और पक्षी) ब्रह्मांड के मध्य (कमर) में स्थित हैं। कमर के नीचे सात नर्कगतियाँ आई हुई हैं। कमर से ऊपर के भाग में कई देवगतियाँ हैं। सिर से ऊपर के भाग को सिद्धक्षेत्र कहा जाता है। ब्रह्मांड के ठीक ऊपर सिद्धक्षेत्र है, यानी ब्रह्मांड का किनारा जहाँ केवल आकाश तत्त्व है, वहाँ कोई अन्य तत्त्व नहीं है। आत्मा सांसारिक सभी परमाणुओं के बंधन से मुक्त हो कर सिद्धक्षेत्र में पहुँचता है और इसे ही दूसरे प्रकार का मोक्ष कहा जाता है।
आत्मा का मूल स्वभाव शाश्वत है और हल्का होने के कारण इसका उर्ध्वगामी स्वभाव है। हालाँकि, आत्मा के ऊपर अज्ञानता के कारण जो आवरण होते हैं उससे आत्मा भारी हो जाता है और नीची गति में आवरण के अनुसार जन्म लेता है। आत्म-साक्षात्कार के बाद, आप संसार के सभी परमाणुओं से मुक्त हो जाते हैं। आत्मा को घेरे हुए सभी परमाणु ख़त्म हो जाते हैं और आत्मा सिद्धक्षेत्र में स्थान प्राप्त करता है। मोक्ष प्राप्ति के बाद वास्तविकता में यही होता है।
सिद्धक्षेत्र ऐसा क्षेत्र है जहां कोई भी परमाणु या अणु आपको चिपक नहीं सकते। ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे कोई परमाणु या अणु नहीं हैं जो आपको असर कर सकें।
वहाँ आत्मा सदा अपने ही आनंद को अनुभव करता है और अपने स्थान पर रहता है। तब, क्या करना बाकी रहा? देखने और जानने का काम निरंतर चलता रहता है! देखने और जानने का परिणाम आनंद है। इसलिए, जब कोई यहाँ हाथ उठाता है, तो सिद्धक्षेत्र में विराजमान वह मुक्त आत्मा देख सकते हैं।
उनके पास अस्तित्व, वस्तुत्व और पूर्णतत्त्व की जागृति होती है। वस्तुत्व के प्रति जाग्रति होने के कारण वहाँ हमेशा सुख, परमानंद ही होता है!
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