आध्यात्मिक दृष्टि से, मोक्ष की परिभाषा मुक्ति और निर्वाण की व्याख्या की तरह ही है। कई लोगों के लिए, मोक्ष का अर्थ है सभी दुखों से मुक्ति; जबकि कुछ लोगों के लिए मोक्ष का अर्थ है जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति है। बहुत कम लोग यह भी मानते हैं कि मोक्ष का अर्थ है सभी पापों से मुक्ति। क्या ये सभी व्याख्याएँ वास्तविक हैं? क्या सच में मोक्ष है? क्या वास्तव में मोक्ष जैसा कोई सत्य होता है? आइए देखते हैं!
कोई चीज़ वास्तविक है या काल्पनिक है उसको जानने का सरल तरीका है उसे अनुभव करना। उदाहरण के लिए; जब आपको एक विशेष तरह की चाय परोसी जाती है, तो आपकी चाय वास्तव में मीठी है या विशेष है, यह सुनिश्चित करने के लिए उसका स्वाद लेना होगा। जब एक बार आपको स्वाद का अनुभव हो जायेगा तो आपको इसमें कोई शक नहीं रहेगा। इस प्रकार, यह ‘अनुभव’ जो इस बात को निश्चित करने के लिए आवश्यक है कि कुछ वास्तविकता है।
मोक्ष वास्तविक है यह सुनिश्चित करने के लिए, हमें इसको अनुभव करने की आवश्यकता है। हमें जीते जी ही इसका आनंद लेना चाहिए। मोक्ष हमारे हाथ में रोकड़ की तरह आ जाना चाहिए।
मोक्ष की एक परिभाषा है 'शाश्वत सुख'। चलिए जानते हैं रोकड़ जैसे शाश्वत सुख का अनुभव कैसे करें...
मोक्ष के दो प्रकार हैं।
जब आप इसी जीवन में दुखों से मुक्ति का अनुभव करते हैं तब यह पहले प्रकार का मोक्ष है। कोई हमें दुःख पहुँचाता है या हमारे घर में कुछ दुर्घटना होती है, उस स्थिति में भी हमारा आंतरिक सुख बना रहे तब यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति ने वास्तव में पहले प्रकार के मोक्ष का अनुभव किया है।
अत्यंत दुःख या प्रतिकूलता के बीच भी आपको आत्मा के आनंद का अनुभव होगा। यह तभी संभव है जब आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त होता है और आप शुद्धात्मा में रहें। जब आप स्वयं के अज्ञान से मुक्त हो जाते हैं, तब आप सभी दुःखों से मुक्त उस अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं।
आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद आपको कोई दुःख का अनुभव नहीं होगा। जागृत आत्मा के प्रकाश में आप अपनी गलतियों को देख पाएँगे।
दूसरे प्रकार का मोक्ष तब प्राप्त होता है, जब आप अपने सभी कर्मों से मुक्त हो जाते हैं, अर्थात सभी सांसारिक अणु से मुक्त होते हैं। एक भी अणु आपके आत्मा से नहीं चिपकता। सभी कर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाते हैं और आप जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए, आपको आत्मा का पूर्ण अनुभव मनुष्य देह में ही होना चाहिए। मात्र इस देह से ही आप प्रत्येक परमाणु सहित पूरे ब्रह्मांड को देख सकते हैं और फिर परम मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इन सभी अनुभवों को प्राप्त करने के बाद, आप मोक्ष, सिद्धक्षेत्र में जाते हैं। यही परम मुक्ति है!
दो प्रकार के मोक्ष के बारे में परम पूज्य दादाश्री के साथ संवाद इस प्रकार है।
प्रश्नकर्ता : मोक्ष का अर्थ साधारण रूप से हम ऐसा समझते हैं कि जन्म-मरण में से मुक्ति।
दादाश्री : हाँ, वह सही है लेकिन वह अंतिम मुक्ति है, वह सेकन्डरी स्टेज है। लेकिन पहले स्टेज में पहला मोक्ष अर्थात् संसारी दु:खों का अभाव बर्तता है। संसार के दु:ख में भी दु:ख स्पर्श नहीं करे, उपाधि में भी समाधि रहे, वह पहला मोक्ष। और फिर जब यह देह छूटती है तब आत्यंतिक मोक्ष है लेकिन पहला मोक्ष यहीं पर होना चाहिए। मेरा मोक्ष हो ही चुका है न! संसार में रहें फिर भी संसार स्पर्श न करे, ऐसा मोक्ष हो जाना चाहिए। वह इस अक्रम विज्ञान से ऐसा हो सकता है।
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