जब हम ईश्वर, अध्यात्म और मोक्ष की बात करते हैं, तो हमारे मन में अनेक प्रश्न उठते हैं, जैसे, “कब तक मुझे उपवास करना होगा?”, “मुझे कौन सी तपस्या करनी चाहिए?”, “क्या मुझे अपना परिवार, संपत्ति आदि छोड़ना पड़ेगा?" “मुझे कब तक मंत्रों का जाप करना है?" और "क्या मुझे धार्मिक क्रिया करना चाहिए?"
परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, “मंत्रजाप आपको संसार में शांति देता है। मन को शांत करे, वह मंत्र, उससे भौतिक सुख मिलते हैं और मोक्ष तो ज्ञानमार्ग के बिना नहीं हो सकता।“
मोक्ष के मार्ग में कोई क्रिया नहीं होती हैं। धार्मिक क्रिया तो केवल सांसारिक जीवन में होते हैं। यह उनके लिए है जो भौतिक और बाह्य सुख चाहते हैं। धार्मिक क्रिया करने से आपको सांसारिक भौतिक सुख प्राप्त होंगे; आपको स्वर्ग समान सुख की प्राप्ति होगी। लेकिन यदि आप शाश्वत सुख को प्राप्त करना चाहते हैं और क्षणिक सांसारिक सुखों की इच्छा नहीं रखते, तो मोक्षमार्ग आपके लिए है।
अज्ञान-क्रिया से मुक्ति है ही नहीं। यदि कोई दिन भर तपस्या करे फिर भी मोक्ष नहीं होगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह स्वयं को कर्ता समझते हैं। ऐसा माना जाता है कि "मैं ही तपस्या करता हूं"। "मैं कर्ता हूँ" यह ही मान्यता बंधन का कारण है। अज्ञानता के कारण बंधन है; ज्ञान से मुक्ति है।
यदि मैं कोई क्रिया नहीं कर रहा हूँ, मैं जीवन में कोई त्याग भी नहीं कर रहा, तो मुझे मोक्ष कैसे मिलेगा? मोक्ष प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक है?
जो मोक्ष प्राप्त करना चाहता है उसे दो चीज़ों की आवश्यकता होती है: आत्मज्ञान और ज्ञानी की आज्ञा का पालन करना। आइए देखें कि परम पूज्य दादाश्री आत्मज्ञान पर क्या कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : आपने कहा कि आप अपने आप को पहचानो तो अपने आपको पहचानने के लिए क्या करें?
दादाश्री : वह तो मेरे पास आओ। आप कह दो कि हमें अपने आपको पहचानना है, तब मैं आपकी पहचान करवा दूँ।
प्रश्नकर्ता : ‘मैं कौन हूँ’ यह जानने की जो बात है, वह इस संसार में रहकर कैसे संभव हो सकती है?
दादाश्री : तब कहाँ रहकर जान सकते हैं उसे? संसार के अलावा और कोई जगह है कि जहाँ रह सकें? इस जगत् में सभी संसारी ही हैं और सभी संसार में ही रहते हैं। यहाँ ‘मैं कौन हूँ’ यह जानने को मिले ऐसा है। ‘आप कौन हैं’ यह समझने का विज्ञान ही है यहाँ पर। यहाँ आना, हम आपको पहचान करवा देंगे।
जो मुक्त हो चुके हों वहाँ पर जाकर हम कहें कि ‘साहब, मेरी मुक्ति कर दीजिए! वही अंतिम उपाय है, सबसे अच्छा उपाय। ‘खुद कौन है’ वह ज्ञान नक्की हो जाए तो उसे मोक्ष गति मिलेगी। और यदि आत्मज्ञानी नहीं मिलें तो (तब तक) आत्मज्ञानी की पुस्तकें पढऩी चाहिए।
आत्मा साइन्टिफिक वस्तु है। वह पुस्तकों से प्राप्त हो ऐसी वस्तु नहीं है। वह अपने गुणधर्मों सहित है, चेतन है और वही परमात्मा है। उसकी पहचान हो गई यानी हो चुका। कल्याण हो गया और फिर वह आप खुद ही हो!
मोक्ष मार्ग में तप-त्याग कुछ भी नहीं करना होता। केवल यदि ज्ञानी पुरुष मिल जाएँ तो ज्ञानी की आज्ञा ही धर्म और आज्ञा ही तप और यही ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है, जिसका प्रत्यक्ष फल मोक्ष है।
‘ज्ञानी पुरुष’ मिलें तभी मोक्ष का मार्ग आसान और सरल हो जाता है। खिचड़ी बनाने से भी आसान हो जाता है।
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