यदि हमें एयरपोर्ट जाना हो तो, बिना रास्ता जाने हमे पहुँचने में कठिनाई होगी। हालांकि, जब हमें किसी माध्यम से रास्ता पता चल जाता है, तो यात्रा सरल हो जाती है। इस प्रकार, सबसे पहले, हमें किसी ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ने की आवश्यकता है जो हमें सबसे छोटा और सरल मार्ग का विवरण (ज्ञान) दे सके। अगला स्टेप है की दिखाए गए मार्ग पर चलना। कलियुग में मोक्ष प्राप्त कैसे करें, यह इसका उत्तर है।
ज्ञानी वो हैं, जो इस जगत से मुक्ति प्राप्त करने के निमित्त हैं। उन्होंने आत्मा का अनुभव किया है और हमें वह मार्ग दिखा सकते हैं जिसका उन्होंने अनुसरण किया है। जिनके राग और द्वेष, साथ ही साथ क्रोध, मान, माया और लोभ सभी बिलकुल नहीं हैं। उन्हें कुछ भी पढ़ने या सीखने की आवश्यकता नहीं है, न ही उन्हें निरंतर भगवान के नाम का जाप करने की आवश्यकता है। उनके सभी दोष के एक एक परमाणु समाप्त हो गए हैं। वे मुक्त हैं और दूसरों को भी मुक्त करा सकते हैं। ज्ञानी हमेशा और केवल शुद्ध आत्मा की स्थिति में होते हैं। ऐसे महापुरुष, जो ज्ञानावतार हैं, वे बहुत दुर्लभ हैं। इसलिए उन्हें ढूंढना बेहद मुश्किल है!
श्रीमद् राजचंद्र, भारत के एक पूर्व ज्ञानी पुरुष, जिन्होंने कहा हैं की ज्ञान ज्ञानी के पास हैं, जिनके बिना कभी मुक्ति नहीं हो सकती। इसलिए, हम सबको केवल एक ज्ञानी की ही आवश्यकता है जो कलियुग में मोक्ष प्राप्त करने के बारे में हमें मार्गदर्शन दें सकें। चौबीस तीर्थंकरों ने कहा है कि आपको आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए केवल एक निमित्त की आवश्यकता है। ज्ञानीने आत्मा का अनुभव किया हैं और उनके पास दूसरों के आत्मा को जागृत करने की शक्ति है। वे वही हैं जो दिखा सकते हैं कि मोक्ष कैसे प्राप्त किया जाए।
जब मोक्ष प्राप्त करने की बात आती है, तो मोक्ष के दो मार्ग होते हैं। एक है कर्मिक मार्ग, जो एक-एक कदम ऊपर सीढ़ी चढ़ने का पारंपरिक तरीका है और दूसरा है अक्रम मार्ग, जो बिना सीढि़यों का रास्ता है। नीचे उसका विवरण दिया है।
क्रमिक मार्ग में सांसारिक जीवन और भौतिक वस्तुओं का त्याग करना पड़ता है। व्यक्ति को अहंकार को नष्ट करने के लिए खुद को नियंत्रित करने का प्रयास और आंतरिक कमज़ोरियों को दूर करने की आवश्यकता होती है तब अंत में अपने स्वयं को प्राप्त करता है। यह मोक्ष का सामान्य और शाश्वत तरीका है।
परन्तु इस कलियुग (वर्तमान कालचक्र) में मन, वाणी और क्रिया में एकता नहीं है, जिसके कारण संयम रखना कठिन है। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति एक दिन के लिए उपवास करने का निर्णय करता है, और यदि कोई उसे उस दिन एक केक देता है, तो वह कहेगा, "आज, मैं उपवास पर हूँ। इसे फ्रिज में रखें; मैं इसे कल खाऊंगा।" ऐसे में शरीर ने केक न खाकर उपवास में सहयोग किया, लेकिन मन ने खाना चाहा और वाणी ने व्यवस्था कर दी कि अगले दिन केक खाया जा सके। इसलिए व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। इस प्रकार, जब कलियुग में मोक्ष प्राप्त करने की बात आती है तो यह एक अत्यंत कठिन मार्ग है।
क्रम का अर्थ है एक-एक कदम से आगे बढ़ना। एक व्यक्ति एक समय में केवल एक ही कदम चढ़ सकता है, जबकि अक्रम मार्ग एक लिफ्ट का पथ है। यह तो कभी ही ईनामी रास्ता निकल जाता है। जो इस मार्ग का टिकट पाता है वह सदा के लिए धन्य हो जाता है। हालाँकि, यह रास्ता हमेशा खुला नहीं होता है। यह एक लाख साल में केवल एक बार खुलता है। चक्रवर्ती भरत, ऋषभदेव भगवान (इस कालचक्र के पहले तीर्थंकर) के पुत्र ने अक्रम मार्ग के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया।
यहाँ चक्रवर्ती भरत की एक छोटी कहानी है।
भगवान ऋषभदेव के सौ पुत्र थे। उन्होंने दीक्षा दी, जिससे उनके निन्यानवे पुत्र मोक्ष को प्राप्त हुए। उन्होंने अपना साम्राज्य अपने सबसे बड़े पुत्र भरत को सौंपा। चक्रवर्ती भरत युद्ध लड़ते-लड़ते थक चुके थे और राजभवन में वह अपनी तेरह सौ रानियाँ के साथ रहते थे। इसलिए, उन्होंने भगवान ऋषभदेव के पास पहुँचे और दीक्षा के साथ-साथ मोक्ष के लिए पूछा।
भगवान ने उनसे कहा, "यदि आप भी राज्य छोड़ देंगे, तो राज्य की देखभाल कौन करेगा? इसलिए आपको इसकी देखभाल करनी होगी , लेकिन मैं आपको 'अक्रम ज्ञान' दूंगा, जिससे आप युद्ध लड़ने या अपनी तेरह सौ रानियों के साथ साम्राज्य पर शासन करने पर भी अपना मोक्ष नहीं खोएंगे "। भगवान ने उन्हें अद्भुत अक्रम ज्ञान दिया।
इस युग में, वही ज्ञान श्री अम्बालालभाई एम. पटेल में प्रकट हुआ है, जो दादा भगवान के नाम से भी जाने जाते हैं। उन्होंने उसे दुनिया के सामने अक्रम विज्ञान (आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक विज्ञान) के रूप में प्रकट किया है। यह अद्भुत विज्ञान न केवल हमें मोक्ष की ओर ले जाएगा, बल्कि हमें अपने दैनिक जीवन के लिए व्यावहारिक समाधान खोजने में भी मदद करेगा, जिससे हमें सुख और शांति मिलेगी।
आइए ज्ञानीपुरुष दादा भगवान के साथ कलियुग में मोक्ष या आत्मज्ञान कैसे प्राप्त करें पर हुई बातचीत के माध्यम से समझें:
प्रश्नकर्ता : क्रोध-मान-माया-लोभ को छोड़ने का रास्ता, वह ‘ज्ञान’ ही है? और वह ‘ज्ञान’ इस काल के लिए समन्वित है?
दादाश्री : सच्चा ज्ञान तो वह कहलाता है कि जो क्रोध-मान-माया-लोभ को खत्म कर दे।
प्रश्नकर्ता : उसे प्राप्त कैसे करें?
दादाश्री : वही ज्ञान यहाँ आपको देता हूँ। इन सबके क्रोध-मान-माया-लोभ सारे खत्म ही हो गए हैं।
प्रश्नकर्ता : हृदय की सरलता आनी इतनी आसान है?
दादाश्री : सरलता आनी या नहीं आनी वह तो पूर्वजन्म का हिसाब है। उसका ‘डेवलपमेन्ट’ है। जितना सरल होगा उतना अधिक उत्तम कहलाएगा। परन्तु वह ‘क्रमिकमार्ग’ का है। उसमें सरल व्यक्ति धर्म को प्राप्त करता है, परन्तु उसमें करोड़ो जन्मों तक भी मोक्ष का ठिकाना नहीं पड़ता। और यह ‘अक्रमविज्ञान’ है। यह एक ही अवतारी ‘ज्ञान’ है। और यदि इस ‘ज्ञान’ की आराधना हमारी आज्ञापूर्वक की जाए न तो निरंतर समाधि रहेगी! आप डॉक्टर का व्यवसाय करो तो भी निरंतर समाधि रहेगी। कुछ भी बाधक होगा ही नहीं और स्पर्श भी नहीं करेगा। यह तो बहुत उच्च विज्ञान है।
प्रश्नकर्ता : शरणागति की आवश्यकता है, ऐसा?
दादाश्री : नहीं। यहाँ पर शरणागति जैसी कोई वस्तु ही नहीं है। यहाँ पर तो अभेदभाव है। मुझे आपमें से किसीके प्रति जुदाई लगती ही नहीं। और इस दुनिया के प्रति भी बिल्कुल जुदाई नहीं लगती।
प्रश्नकर्ता : आप तो बहुत उच्च कोटि के हैं, हम तो बहुत नीची कोटि के हैं।
दादाश्री : नहीं। ऐसा नहीं है। आप तो मेरी कोटि के ही हो। आप मुझे देखते ही रहो। उससे मेरे जैसे होते रहोगे। दूसरा कोई रास्ता नहीं है। जिसे आप देखते हो, उसी रूप होते जाते हो।
प्रश्नकर्ता : संसार के व्यवहार में शुद्धता, शुचि चाहिए न?
दादाश्री : शुद्धता इतनी अधिक आ जानी चाहिए कि आदर्श व्यवहार कहलाना चाहिए। ‘वल्र्ड’ में देखा ही नहीं हो, वैसा सबसे ऊँचा व्यवहार होना चाहिए। हमारा व्यवहार तो बहुत ऊँचा है। यह विज्ञान ऐसा है। मैं जो आपको दिखाता हूँ, वह केवलज्ञान (एब्सोल्यूट ज्ञान, कैवल्यज्ञान) का आत्मा है और इस जगत् के लोग जिसे आत्मज्ञान कहते हैं, वह शास्त्रीय आत्मज्ञान है।
प्रश्नकर्ता : पात्रता या अधिकार के बिना यह ‘ज्ञान’ किस तरह पचेगा?
दादाश्री : पात्रता या अधिकार की यहाँ पर ज़रूरत ही नहीं है। यह आचार की कक्षा पर आधारित नहीं है। बाह्याचार क्या है? पूरा जगत् बाह्याचार पर बैठा है। बाह्याचार, वह ‘इफेक्ट’ हैं, ‘कॉज़ेज़’ नहीं है। ‘कॉज़ेज़’ हम खत्म कर देते हैं। फिर ‘इफेक्ट’ तो अपने आप धुल जाएगा।
ज्ञानी मिलें तो मोक्ष आपके हाथ में है। अक्रम विज्ञान के प्रणेता ज्ञानीपुरुष दादा भगवान ने पूज्य नीरू माँ और पूज्य दीपकभाई को सत्संग करने और दूसरों को आत्मज्ञान कराने के लिए विशेष सिद्धियाँ दी हैं। पूज्य दीपकभाई अक्रम विज्ञान के वर्तमान आत्मज्ञानी हैं और आपको आत्मज्ञान और मोक्ष प्राप्त करा सकते हैं।
आप अगली ज्ञानविधि में ज्ञानी से मिल सकते हैं और आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं।
सिर्फ ‘ज्ञान’ ही मुक्ति देता है। बाकी सभी साधन बंधनरूपी हैं!
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